अद्भुत रस की परिभाषा, भेद, अवयव और उदाहरण

अद्भुत रस की परिभाषा : Adbhut Ras in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘अद्भुत रस की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
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अद्भुत रस की परिभाषा : Adbhut Ras in Hindi
अद्भुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब किसी व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
अद्भुत रस में रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना, आँखें फाड़कर देखना, आदि भाव व्यक्त होते है।
साधारण शब्दों में:- विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उन्हीं भावों के विकसित रूप को ‘अद्भुत रस’ कहते है।
अद्भुत रस के उदाहरण
अद्भुत रस के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
इहाँ उहाँ दुह बालक देखा,
मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
देखि राम जननी अकलानी,
प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।
देखरावा मातहि निज,
अद्भुत रूप अखण्ड।
रोम-रोम प्रति लागे,
कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड।। – तुलसीदास
स्पष्टीकरण
स्थायी भाव | आश्चर्य |
आलंबन (विभाव) | राम |
उद्दीपन (विभाव) | राम का एक समय 2 स्थानों पर दिखाई देना तथा उनका अखण्ड रूप। |
अनुभाव | कौशल्या का पुलकित होना, वचन न निकलना तथा आँखें बन्द करके राम के चरणों में सिर झुकाना। |
संचारी भाव | भ्रान्ति, त्रास, वितर्क, आदि। |
व्याख्या:- बालक राम को एक समय ही 2 स्थानों पर देखकर माता कौशल्या के मन में उत्पन्न होने वाला आश्चर्य ही स्थायी भाव है। यहाँ राम ‘आलम्बन’ है। राम का एक समय 2 स्थानों पर दिखाई देना तथा उनका अखण्ड रूप ‘उद्दीपन’ है। कौशल्या का पुलकित होना, वचन न निकलना तथा आँखें बन्द करके राम के चरणों में सिर झुकाना ‘अनुभाव’ है। भ्रान्ति, त्रास, वितर्क, आदि ‘संचारी भाव’ है। इस प्रकार इन पंक्तियों में अद्भुत रस की पूर्ण अभिव्यक्ति हुई है।
अद्भुत रस के अवयव
अद्भुत रस के अवयव निम्न प्रकार है:-
स्थायी भाव | विस्मय/आश्चर्य |
आलंबन (विभाव) | आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ अथवा व्यक्ति। |
उद्दीपन (विभाव) | आलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन, आदि। |
अनुभाव | दांतों तले उंगली दवाना, आँखें फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना, आदि। |
संचारी भाव | उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि। |
अद्भुत रस का स्थायी भाव
अद्भुत रस का स्थायी भाव ‘आश्चर्य’ होता है। जब किसी व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
अद्भुत रस का आलम्बन विभाव
आलौकिकता से युक्त वाक्य, शील, कर्म एवं रूप अद्भुत रस के आलम्बन विभाव है।
अद्भुत रस का उद्दीनपन विभाव
आलौकिकता के गुणों का वर्णन अद्भुत रस का उद्दीनपन विभाव है।
अद्भुत रस का अनुभाव
आँखें फाड़ना, टकटकी लगाकर देखना, रोमांच, आँसू, स्वेद, हर्ष, साधुवाद देना, उपहार-दान, हा-हा करना, अंगों को घुमाना, कम्पित होना, गदगद वचन बोलना, उत्कण्ठित होना, आदि अद्भुत रस के अनुभाव है।
अद्भुत रस का व्यभिचारी भाव
वितर्क, आवेग, हर्ष, भ्रान्ति, चिन्ता, चपलता, जड़ता, औत्सुक्य प्रभृति, आदि अद्भुत रस के व्यभिचारी भाव है।
विभिन्न साहित्यकारों के द्वारा अद्भुत रस की परिभाषा
विभिन्न साहित्यकारों के स्द्वारा अद्भुत रस की परिभाषाएँ कुछ इस प्रकार है:-
हिंदी के आचार्य देव के द्वारा अद्भुत रस की परिभाषा
हिन्दी के आचार्य देव ने अद्भुत रस का निम्नलिखित लक्षण प्रदान किया है:-
‘आहचरज देखे सुने बिस्मै बाढ़त।
चित्त अद्भुत रस बिस्मय बढ़ै अचल सचकित निमित्त।’ – हिंदी के आचार्य देव
अद्भुत रस की उत्पत्ति वीर रस से हुई है तथा इसका वर्ण पीला एवं देवता ब्रह्मा माना है। – भरतमुनि
अद्भुत रस के देवता गन्धर्व है। – विश्वनाथ
‘विस्मय‘ की परिभाषा ‘सरस्वतीकण्ठाभरण’ में प्रदान की गई है – ‘विस्मयश्चित्तविस्तार: पदार्थातिशयादिभि:‘ किसी आलौकिक पदार्थ के गोचरीकरण से उत्पन्न चित्त का विस्तार विस्मय है।
विश्वनाथ ने ‘साहित्यदर्पण’ में इस परिभाषा को दोहराते हुए विस्मय को चमत्कार का पर्याय बताया है:- ‘चमत्कारश्चित्तविस्तार रूपो विस्मयापरपर्याय:।’ इसलिए, चित्त की वह चमत्कृत अवस्था, जिसमें वह सामान्य की परिधि से बाहर उठकर विस्तार लाभ करता है, ‘विस्मय’ कहलाएगी। वास्तव में यह विस्मय अथवा चमत्कार प्रत्येक गहरी अनुभूति का आवश्यक अंग है और इसीलिए, यह प्रत्येक रस की प्रतीति में वर्तमान रहता है।
विस्मय सभी रसों में संचार करता है। – भानुदत्त
विश्वनाथ रसास्वाद के प्रकार को समझाते हुए कहते है कि रस का प्राण ‘लोकोत्तर चमत्कार’ है और इस प्रकार सर्वत्र, सम्पूर्ण रसगर्भित स्थानों में अद्भुत रस माना जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में उन्होंने कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की है, जो कि निम्नलिखित है:-
‘रसे सारश्चमत्कार: सर्वत्राप्यनुभुयते।
तच्चमत्कारसारत्वे सर्वत्राप्यद्भुतो रस:।
तस्मादद्भुतमेवाह कृती नारायणो रसम्।।’
स्पष्टीकरण:- सभी रसों में चमत्कार साररूप से (स्थायी) होने से सर्वत्र अद्भुत रस ही दिखाई देता है। इसलिए, नारायण पण्डित सिर्फ एक अद्भुत रस ही मानते है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार विस्मय
- मनोवैज्ञानिकों ने भी विस्मय को प्रधान भावों में गृहीत किया है तथा उसकी प्रवृत्ति ‘जिज्ञासा’ से बताई है। असल में आदिमानव को प्रकृति की क्रीड़ास्थली के संसर्ग में भय एवं आश्चर्य अथवा विस्मय, इन 2 भावों की ही मुख्यतया प्रतीति हुई होगी।
- कला एवं काव्य के आकर्षण में विस्मय की भावना सबसे अधिक महत्त्व रखती है।
- कवि एवं कलाकार जिस वस्तु का सौन्दर्य चित्रण करना चाहते है, उसमें कोई लोक को अतिक्रान्त करने वाला तत्व वर्तमान रहता है, जो अपनी असाधारणता से भाव को अभिभूत कर लेता है।
- अंग्रेज़ी साहित्य के रोमांटिक कवियों ने काव्य की आत्मा विस्मय को ही स्वीकार किया था।
रस के विरोध एवं अविरोध
इसलिए, अद्भुत रस का महत्त्व स्वयं सिद्ध है। साहित्य शास्त्रियों ने रस के विरोध एवं अविरोध का व्याख्यान किया है, जो कि निम्न प्रकार है:-
पण्डितराज ने अद्भुत रस श्रृंगार रस एवं वीर रस का अविरोधी स्वीकार किया है अर्थात श्रृंगार रस तथा वीर रस के साथ अद्भुत रस की अवस्थिति हो सकती है। – पण्डितराज
विश्वनाथ ने सम्बद्ध प्रसंग में अद्भुत रस के विरोध अथवा अविरोध के विषय में कोई उल्लेख नहीं किया है। असल में, उन्होंने रसास्वाद के निरूपण के प्रकरण में अपने प्रपितामह की सम्मति उद्धृत करते हुए अपना मत भी व्यक्त कर दिया है कि अद्भुत रस की पहुँच सर्वत्र सम्पूर्ण रसों में हो सकती है। – विश्वनाथ
भानुदत्त ने अत्युक्ति, भ्रमोक्ति, चित्रोक्ति, विरोधाभास इत्यादि को अद्भुत रस में ही अन्तर्भूत कर दिया है। सामान्यतया अद्भुत रस एवं हास्य रस में आपातत: साम्य लक्षित होता है, क्योंकि दोनों रसों में लोक से वैपरीत्य भाव वर्तमान रहता है। लेकिन, इन दोनों में अन्तर यह है कि हास्य रस में यह वैपरीत्य साधारण होता है और उसका कारण भी यत्किंचित ज्ञात रहता है। जबकि, अद्भुत रस में वैपरीत्य का परिमाण अपेक्षाकृत अधिक होता है और उसका कारण भी अज्ञात रहता है। वस्तुत: दो विपरीत वस्तुओं के संयोग पर विचार करना ही विस्मय का मूल है। सूरदास का ‘अद्भुत एक अनुपम बाग़’ वाला प्रसिद्ध पद अद्भुत रस का सुन्दर उदाहरण है।
अद्भुत रस का वर्णन
हिन्दी के आचार्य कुलपति ने ‘रस-रहस्य’ नामक ग्रन्थ में अद्भुत रस का वर्णन किया है, जो कुछ इस प्रकार है:-
जहँ अनहोने देखिए, बचन रचन अनुरूप,
अद्भुत रस के जानिये, ये विभाव स्रु अनूप।
बचन कम्प अरु रोम तनु, यह कहिये अनुभाव,
हर्श शक चित मोह पुनि, यह संचारी भाव।
जेहि ठाँ नृत्य कवित्त में, व्यंग्य आचरज होय,
ताँऊ रस में जानियो, अद्भुत रस है सोय।
अद्भुत रस के भेद
अद्भुत रस के कुल 4 भेद है, जो कि निम्न प्रकार है:-
दृष्ट |
श्रुत |
अनुमति |
संकीर्तित |
अद्भुत रस के उदाहरण
अद्भुत रस के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
उदाहरण:- 1
‘ब्रज बछरा निज धाम करि फिरि ब्रज लखि फिरि धाम।
फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम।।’ (पोद्दार : ‘रसमंजरी’)
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्ति में वत्सहरण के समय ब्रह्मा द्वारा गोप बालकों तथा बछड़ों को ब्रह्मधाम में छोड़ आने पर भी वही गोप और बछड़े देखकर ब्रह्मा को विस्मय हुआ। इसलिए, यहाँ दृष्ट अद्भुत रस की प्रतीति हो रही है।
उदाहरण:- 2
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास।
विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्ति में अनुमिति अद्भुत की प्रतीति हो रही है। विकच कुसुमों में ईश्वर की प्रभा के अनुमानज ज्ञान से उत्पन्न ‘विस्मय’ पुष्ट होकर अद्भुत रस में व्यक्त हो गया है।
उदाहरण:- 3
देख यशोदा शिशु के मुख में,
सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन,
हिल न सकी कोमल काया।
उदाहरण:- 4
देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड,
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।
अद्भुत रस से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
-
भरतमुनि ने कौनसे रस को आनंद प्रदान करने वाला रस बताया है?
(अ). शृंगार रस
(ब). अद्भुत रस
(स). हास्य रस
(द). वीर रस
उत्तर:- अद्भुत रस -
अद्भुत रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ). रति
(ब). हास
(स). विस्मय
(द). शोक
उत्तर:- विस्मय -
सर्वप्रथम रस की चर्चा किसने की थी?
(अ). भरतमुनि
(ब). नंदिकेश्वर
(स). पतंजलि
(द). चरक
उत्तर:- नंदिकेश्वर -
अद्भुद रस के 2 भेद किसने दिए?
(अ). पतंजलि
(ब). चरक
(स). भरतमुनि
(द). नंदिकेश्वर
उत्तर:- भरतमुनि -
‘विस्मय’ कौनसे रस का स्थाई भाव है?
(अ). अद्भुत रस
(ब). वात्सल्य रस
(स). भयानक रस
(द). हास्य रस
उत्तर:- अद्भुत रस -
अद्भुत रस की परिभाषा किसने दी?
(अ). भरतमुनि
(ब). विश्वनाथ
(स). नंदिकेश्वर
(द). पतंजलि
उत्तर:- भरतमुनि -
‘आश्चर्य’ कौनसे रस का स्थाई भाव है?
(अ). वात्सल्य रस
(ब). करुण रस
(स). हास्य रस
(द). अद्भुत रस
उत्तर:- अद्भुत रस -
‘आवेग’ क्या है?
(अ). विभाव
(ब). अनुभाव
(स). संचारी भाव
(द). उद्दीपन विभाव
उत्तर:- संचारी भाव -
‘रोमांच’ क्या है?
(अ). आलंबन
(ब). अनुभाव
(स). संचारी भाव
(द). उद्दीपन विभाव
उत्तर:- अनुभाव -
निम्नलिखित में से आलम्बन की अद्भुत चेष्टाएँ है:-
(अ). आलंबन
(ब). अनुभाव
(स). संचारी भाव
(द). उद्दीपन विभाव
उत्तर:- उद्दीपन विभाव -
अद्भुत रस की परिभाषा क्या है?
अद्भुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब किसी व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
अद्भुत रस में रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना, आँखें फाड़कर देखना, आदि भाव व्यक्त होते है।
साधारण शब्दों में:- विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उन्हीं भावों के विकसित रूप को ‘अद्भुत रस’ कहते है।
अंतिम शब्द
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