अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Alankar Ki Paribhasha in Hindi

अलंकार की परिभाषा : Alankar in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘अलंकार की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप अलंकार से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

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अलंकार की परिभाषा : Alankar in Hindi

अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ होता है। अलंकार शब्द ‘अलम + कार’ शब्दों से मिलकर बनता है। यहाँ पर ‘अलम’ शब्द का अर्थ आभूषण होता है। जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषणों से होती है, उसी प्रकार काव्य की शोभा ‘अलंकार’ से होती है।

साधारण शब्दों में:- जो शब्द आपके वाक्यांश को अलंकृत करता है, वह ‘अलंकार’ कहलाता है। अलंकार किसी काव्यांश तथा वाक्यांश की सुंदरता को बढ़ाने वाले शब्द होते है।

जैसे अपने शब्दों के माध्यम से किसी की सुंदरता को चाँद की उपाधि देना अलंकार के बिना संभव नहीं है। भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुंदर बनाने का कार्य अलंकार ही करता है।

अलंकरोति इति अलंकार

भारतीय साहित्य में किसी वाक्य को जिन शब्दों के द्वारा सजाया जाता है, उन्हें ‘अलंकार’ कहते है। ‘अलंकरोति इति अलंकार:’ का अर्थ है:- ‘जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।’ भारतीय साहित्य के प्रमुख अलंकार निम्नलिखित है:-

अलंकरोति इति अलंकार
अनुप्रास अलंकार
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
अनन्वय अलंकार
यमक अलंकार
श्लेष अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
संदेह अलंकार
अतिशयोक्ति अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार

अलंकार के भेद

व्याकरण शास्त्रियों ने अलंकार को गुणों के आधार पर कुल 3 भागों में विभाजित किया है, जो कि निम्नलिखित है:-

अलंकार के भेद
शब्दालंकार
अर्थालंकार
उभयालंकार

1. शब्दालंकार

अलंकार का वह रूप, जिसमें शब्दों का प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी शब्द को रखने से वह चमत्कार समाप्त हो जाए, तो वहाँ ‘शब्दालंकार’ अथवा ‘शब्द अलंकार’ होता है।

शब्दालंकार ‘शब्द+अलंकार‘ इन 2 शब्दों से मिलकर बनता है। शब्द के 2 रूप होते है:- ध्वनि तथा अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टि होती है।

जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द के स्थान पर कोई अन्य पर्यायवाची शब्द को रख देने से उस शब्द का अस्तित्व नहीं रहे, तो उसे ‘शब्दालंकार’ कहते है।

शब्दालंकार के भेद

शब्दालंकार के कुल 6 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

शब्दालंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
वीप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष अलंकार

(i). अनुप्रास अलंकार

अनुप्रास शब्द ‘अनु+प्रास’ इन 2 शब्दों से मिलकर बना है। यहाँ पर ‘अनु’ शब्द का अर्थ ‘बार-बार‘ तथा ‘प्रास’ शब्द का अर्थ ‘वर्ण‘ होता है। जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर जो चमत्कार होता है, उसे ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

अनुप्रास अलंकार के उपभेद

अनुप्रास अलंकार के कुल 5 उपभेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

अनुप्रास अलंकार के उपभेद
छेकानुप्रास अलंकार
वृत्यानुप्रास अलंकार
लाटानुप्रास अलंकार
अन्त्यानुप्रास अलंकार
श्रुत्यानुप्रास अलंकार
१. छेकानुप्रास अलंकार

जब स्वरुप तथा क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार होती है, तो उसे ‘छेकानुप्रास अलंकार’ कहते है।

छेकानुप्रास अलंकार के उदाहरण

छेकानुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।

२. वृत्यानुप्रास अलंकार

जब एक व्यंजन की आवृत्ति अनेक बार होती है, तो उसे वृत्यानुप्रास अलंकार कहते है।

वृत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण

वृत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

चामर- सी ,चन्दन – सी, चंद – सी, चाँदनी चमेली चारु चंद- सुघर है।

३. लाटानुप्रास अलंकार

जहाँ शब्दों तथा वाक्यों की आवृत्ति हो तथा प्रत्येक स्थान पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाए, तो उसे ‘लाटानुप्रास अलंकार’ कहते है है।

साधारण शब्दों में:- जब एक शब्द अथवा वाक्य खंड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, तो वहाँ ‘लाटानुप्रास अलंकार’ होता है।

लाटानुप्रास अलंकार के उदाहरण

लाटानुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।

४. अन्त्यानुप्रास अलंकार

जहाँ अंत में तुक मिलती है, वहाँ पर ‘अन्त्यानुप्रास अलंकार’ होता है।

अन्त्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण

अन्त्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग?

५. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्णों की आवृत्ति होती है, वहाँ पर ‘श्रुत्यानुप्रास अलंकार’ होता है।

श्रुत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण

श्रुत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

(ii). यमक अलंकार

यमक शब्द का अर्थ ‘दो‘ होता है। जब एक ही शब्द का प्रयोग बार-बार होता है और प्रत्येक बार शब्द का अर्थ अलग-अलग आये, तो वहाँ पर ‘यमक अलंकार’ होता है।

साधारण शब्दों में:- जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृत्ति होती है, ठीक उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है।

यमक अलंकार के उदाहरण

यमक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।

यमक अलंकार के भेद

यमक अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

यमक अलंकार के भेद
अभंग पद यमक
सभंग पद यमक
१. अभंग पद यमक

जब किसी शब्द को बिना तोड़े-मरोड़े एक ही रूप में अनेक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है, तो वह ‘अभंग पद यमक’ कहलाता है।

अभंग पद यमक के उदाहरण

अभंग पद यमक के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

जगती जगती की मुक प्यास।

स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्ति में ‘जगती’ शब्द की आवृत्ति बिना तोड़े-मरोड़े भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुई है। अतः यह ‘अभंग पद यमक’ का उदाहरण है।

२. सभंग पद यमक

जब एक जैसे वर्ण समूह (शब्द) की आवृत्ति जोड़-तोड़कर आवृत्ति की जाती है और उसे भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रकृति होती है अथवा वह निरर्थक होता है, तो वह ‘सभंग पद यमक’ होता है।

सभंग पद यमक के उदाहरण

सभंग पद यमक के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

पास ही रे हीरे की खान, खोजता कहां और नादान?

स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्ति में ‘ही रे’ वर्ण-समूह की आवृत्ति हुई है। पहली बार वही ‘ही + रे’ को जोड़कर बनाया है। अतः यह ‘सभंग पद यमक’ का उदाहरण है।

(iii). पुनरुक्ति अलंकार

पुनरुक्ति अलंकार ‘पुन:+उक्ति’ इन दो शब्दों से मिलकर बनता है। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है, तो वहाँ पर ‘पुनरुक्ति अलंकार’ होता है।

पुनरुक्ति अलंकार के उदाहरण

पुनरुक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

मधुर वचन कहि-कहि परितोषीं।

उपरोक्त पंक्ति में ‘कहि‘ शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार किया गया है। जिसके कारण काव्य में सुंदरी की वृद्धि हुई है। अतः यह पुनरुक्ति अलंकार का उदाहरण है।

(iv). वीप्सा अलंकार

आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक, आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए जिन शब्दों की पुनरावृत्ति होती है, तो उसे ‘वीप्सा अलंकार’ कहते है।

वीप्सा अलंकार के उदाहरण

वीप्सा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।

(v). वक्रोक्ति अलंकार

जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकालता है, तो उसे ‘वक्रोक्ति अलंकार’ कहते है।

वक्रोक्ति अलंकार के भेद

वक्रोक्ति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

वक्रोक्ति अलंकार के भेद
काकु वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
१. काकु वक्रोक्ति अलंकार

जब वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का उसकी कंठ-ध्वनि के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकालता है, तो वहाँ पर ‘काकु वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।

काकु वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण

काकु वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।

२. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार

‘श्लेष’ का अर्थ ‘मिला हुआ’ अथवा ‘चिपका हुआ’ होता है। श्लेष अलंकार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनके एक नहीं अपितु अनेक अर्थ होते है।

जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाता है, तो वहाँ ‘श्लेष वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।

श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण

श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो ।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।

(vi). श्लेष अलंकार

जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आता है, लेकिन उस शब्द के अर्थ भिन्न-भिन्न निकलते है, तो वहाँ पर ‘श्लेष अलंकार’ होता है।

श्लेष अलंकार के उदाहरण

श्लेष अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।

श्लेष अलंकार के भेद

श्लेष अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

श्लेष अलंकार
अभंग श्लेष
सभंग श्लेष
१. अभंग श्लेष

जिन शब्दों को बिना तोड़े अनेक अर्थ निकलते है, उन्हें ‘अभंग श्लेष’ कहते है।

अभंग श्लेष के उदाहरण

अभंग श्लेष के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

चरण धरत चिंता करत, चितवत चारहूँ ओर।
सुबरन को खोजत फिरत, कवी, व्यभिचारी, चोर।।

स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त दोहे की द्वितीय पंक्ति में सुबरन का प्रयोग किया गया है, जिसे कवि, व्यभिचारी और चोर तीनों ढूँढ रहे है। इस प्रकार एक ही शब्द ‘सुबरन’ के यहाँ पर तीन अर्थ है। कवि के लिए ‘सुबरन’ शब्द का अर्थ ‘अच्छे शब्द’ है। व्यभिचारी के लिए ‘सुबरन’ शब्द का अर्थ ‘अच्छा रूप रंग’ और ‘यौवन’ है। चोर के लिए ‘सुबरन’ शब्द का अर्थ ‘स्वर्ण’ अर्थात ‘सोना’ है। अतः यह अभंग श्लेष अलंकार का उदाहरण है।

२. सभंग श्लेष

जब शब्द विशेष से श्लेष का अर्थ निकालने के लिए शब्द को जोड़ा-तोड़ा जाता है, तो उसे ‘सभंग श्लेष’ कहते है।

सभंग श्लेष के उदाहरण

सभंग श्लेष के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

चिर जीवो जोरी जुरै,
क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये बृसभानुजा,
वे हलधर के बीर।।

स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त दोहे में ‘वृषभानुजा’ तथा ‘हलधर’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिनके दो अर्थ है। ‘वृषभानुजा’ शब्द का प्रथम अर्थ ‘वृषभानु की पुत्री – राधा’ से है तथा द्वितीय अर्थ ‘वृषभ की अनुजा – गाय’ से है। ‘हलधर’ शब्द का प्रथम अर्थ ‘हल को धारण करने वाला – बलराम’ से है, तथा द्वितीय अर्थ ‘हल को धारण करने वाला – बैल’ से है। अतः यह श्लेष अलंकार का उदाहरण है।

2. अर्थालंकार

जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता है, तो उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है।

अर्थालंकार के भेद

अर्थालंकार के सभी भेद निम्नलिखित है:-

अर्थालंकार के भेद
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
द्रष्टान्त अलंकार
संदेह अलंकार
अतिश्योक्ति अलंकार
उपमेयोपमा अलंकार
प्रतीप अलंकार
अनन्वय अलंकार
भ्रांतिमान अलंकार
दीपक अलंकार
अपन्हुति अलंकार
व्यतिरेक अलंकार
विभावना अलंकार
विशेषोक्ति अलंकार
अर्थान्तरन्यास अलंकार
उल्लेख अलंकार
विरोधाभाष अलंकार
असंगति अलंकार
मानवीकरण अलंकार
अन्योक्ति अलंकार
काव्यलिंग अलंकार
कारणमाला अलंकार
पर्याय अलंकार
स्वभावोक्ति अलंकार
समासोक्ति अलंकार

(i). उपमा अलंकार

उपमा शब्द का अर्थ ‘तुलना’ होता है। जब किसी व्यक्ति अथवा वस्तु की तुलना किसी अन्य व्यक्ति अथवा वस्तु से की जाती है, तो वहाँ पर ‘उपमा अलंकार’ होता है।

उपमा अलंकार के उदाहरण

उपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।

उपमा अलंकार के अंग

उपमा अलंकार के कुल 4 अंग होते है, जो कि निम्नलिखित है:-

उपमा अलंकार के अंग
उपमान
उपमेय
वाचक शब्द
साधारण धर्म
१. उपमेय

उपमेय का अर्थ ‘उपमा देने के योग्य’ होता है। यदि किसी वस्तु की समानता किसी अन्य वस्तु से की जाए, तो वहाँ पर ‘उपमेय’ होता है।

२. उपमान

उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है, उसे ‘उपमान’ कहते है। अर्थात उपमेय की जिसके साथ समानता बताई जाती है, उसे ‘उपमान कहते’ है।

३. वाचक शब्द

उपमेय और उपमान में समानता दिखाने के जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसे ‘वाचक शब्द’ कहते है।

४. साधारण धर्म

दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण अथवा धर्म की मदद ली जाती है, जो दोनों वस्तुओं में वर्तमान स्थिति में हो, तो उसी गुण अथवा धर्म को ‘साधारण धर्म’ कहते है।

उपमा अलंकार के भेद

उपमा अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

उपमा अलंकार के भेद
पूर्णोपमा अलंकार
लुप्तोपमा अलंकार
१. पूर्णोपमा अलंकार

जहाँ पर उपमा अलंकार के सभी अंग:- ‘उपमेय, उपमान, वाचक शब्द और साधारण धर्म’ होते है, तो वहाँ पर ‘पूर्णोपमा अलंकार’ होता है।

पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण

पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।

२. लुप्तोपमा अलंकार

जहाँ पर उपमा अलंकार के सभी चारों अंगों में से यदि एक, दो तथा तीन अंग नहीं होते है, तो वहाँ पर ‘लुप्तोपमा अलंकार’ होता है।

लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण

लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

कल्पना सी अतिशय कोमल।

स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्तियों में उपमेय नहीं है, तो इसलिए यह लुप्तोपमा अलंकार का उदहारण है।

(ii). रूपक अलंकार

जहाँ पर उपमेय तथा उपमान में कोई अंतर नहीं दिखाई देता है, तो वहाँ पर ‘रूपक अलंकार’ होता है अर्थात जहाँ पर उपमेय तथा उपमान के मध्य के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है, तो वहाँ पर ‘रूपक अलंकार’ होता है।

रूपक अलंकार के उदाहरण

रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत- सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।

नोट:- रूपक अलंकार में ‘उपमेय को उपमान का रूप देना’, ‘वाचक शब्द का लोप होना’, ‘उपमेय का भी साथ में वर्णन होना’ आता है।

रूपक अलंकार के भेद

रूपक अलंकार के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

रूपक अलंकार के भेद
सांग रूपक अलंकार
निरंग रूपक अलंकार
परंपरिक रूपक अलंकार
१. सांग रूपक अलंकार

जहाँ उपमेय के अंगों अथवा अवयवों पर उपमान के अंगों अथवा अवयवों का आरोप किया जाता है, तो उसे ‘सांग रूपक अलंकार’ कहते है।

सांग रूपक अलंकार के उदाहरण

सम रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

उदित उदयगिरि मंच पर,
रघुवर बाल पतंग।
विकसे सन्त सरोज सब,
हरषै लोचन भृंग।।

१. निरंग रूपक अलंकार

जिसमें उपमेय पर उपमान का आरोप होता है और अंगों का आरोप नहीं होता है, तो उसे ‘निरंग रुपक अलंकार’ कहते है।

निरंग रूपक अलंकार के उदाहरण

निरंग रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

है शत्रु भी यों मग्न जिसके शौर्य पारावार में

३. परंपरिक रूपक अलंकार

अलंकार का वह रूप, जिसमें एक आरोप, दूसरे आरोप का कारण होता है, उसे ‘परंपरिक रुपक अलंकार’ कहते है।

परंपरिक रूपक अलंकार के उदाहरण

परंपरिक रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

महिमा-मृगी कौन सुकृति की,
खल-वच-विसिख न बाँची?

(iii). उत्प्रेक्षा अलंकार

जहाँ पर उपमान के नहीं होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में:- मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों, आदि शब्द आते है।

साधारण शब्दों में:- जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सखि सोहत गोपाल के,
उर गुंजन की माल।
बाहर सोहत मनु पिये,
दावानल की ज्वाल।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद

उत्प्रेक्षा अलंकार के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार
हेतुत्प्रेक्षा अलंकार
फलोत्प्रेक्षा अलंकार
१. वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार

जहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई देती है, तो वहाँ पर ‘वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।

वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सखि सोहत गोपाल के,
उर गुंजन की माल।
बाहर सोहत मनु पिये,
दावानल की ज्वाल।।

२. हेतुत्प्रेक्षा अलंकार

जहाँ पर अहेतु में हेतु की संभावना दिखाई देती है, तो वहाँ पर हेतुत्प्रेक्षा अलंकार होता है। साधारण शब्दों में:- जहाँ पर वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘हेतुप्रेक्षा अलंकार’ होता है।

३. फलोत्प्रेक्षा अलंकार

वाहन पर वास्तविक फल के नहीं होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘फलोत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।

फलोत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

फलोत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।

(iv). दृष्टान्त अलंकार

जहाँ पर दो सामान्य अथवा दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, तो वहाँ पर ‘दृष्टान्त अलंकार’ होता है।

दृष्टान्त अलंकार में उपमेय रूप में कही गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में अन्य वाक्य में होती है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ पति का क्या सह सकती है।

(v). संदेह अलंकार

जहाँ पर उपमेय तथा उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं कर पाने की दुविधा उत्पन्न होती है कि उपमान वास्तव में ‘उपमेय’ है अथवा नहीं, तो वहाँ पर ‘संदेह अलंकार’ होता है।

साधारण शब्दों में:- जहाँ पर किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर संशय बना रहता है, तो वहाँ पर ‘संदेह अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।

संदेह अलंकार के उदाहरण

संदेह अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।

नोट:- संदेह अलंकार में विषय का अनिश्चित ज्ञान होता है, यह अनिश्चित समानता पर निर्भर होता है तथा अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है।

(vi). अतिश्योक्ति अलंकार

जहाँ पर किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का वर्णन करने में लोक-समाज की सीमा अथवा मर्यादा भंग (टूट) हो जाती है, तो वहाँ पर अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण

अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।

(vii). उपमेयोपमा अलंकार

जहाँ पर उपमेय तथा उपमान को परस्पर उपमान तथा उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है और उपमेय तथा उपमान की एक-दूसरे से उपमा दी जाती है, तो वहाँ पर ‘उपमेयोपमा अलंकार’ होता है।

उपमेयोपमा अलंकार के उदाहरण

उपमेयोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

तौ मुख सोहत है ससि सो
अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।

(viii). प्रतीप अलंकार

प्रतीप का अर्थ ‘उल्टा’ होता है। जहाँ पर उपमा के अंगों में उलटफेर करने से अर्थात उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलटकर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है, तो वहाँ पर ‘प्रतीप अलंकार’ होता है।

प्रतीप अलंकार में 2 वाक्य ‘उपमेय वाक्य’ तथा द्वितीय ‘उपमान वाक्य’ होते है। लेकिन, इन दोनों वाक्यों में सदृश्य का साफ कथन नहीं होता है और वह व्यंजित रहता है। इन दोनों में साधारण धर्म एक ही होता है, लेकिन उसे भिन्न-भिन्न प्रकार से कहा जाता है।

प्रतीप अलंकार के उदाहरण

प्रतीप अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

नेत्र के समान कमल है।

(ix). अनन्वय अलंकार

जब कवि को उपमेय की समानता के लिए कोई अन्य उपमान नहीं मिलता है, तो वह उपमेय की समानता के लिए उपमेय को ही उपमान बना डालता है, तो वहाँ ‘अनन्वय अलंकार’ होता है।

साधारण शब्दों में:- एक ही वस्तु को उपमेय तथा उपमान दोनों बना देना ही ‘अनन्वय अलंकार’ कहलाता है।

अनन्वय अलंकार के उदाहरण

अनन्वय अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

यद्यपि अति आरत-मारत है,
भारत के सम भारत है।

(x). भ्रांतिमान अलंकार

जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर ‘भ्रांतिमान अलंकार’ होता है अर्थात जहाँ पर उपमान तथा उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है।

साधारण शब्दों में:- जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर ‘भ्रांतिमान अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी अंग माना जाता है।

भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण

भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

पायें महावर देन को नाईन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।।

(xi). दीपक अलंकार

जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है, तो वहाँ पर ‘दीपक अलंकार’ होता है।

दीपक अलंकार के उदाहरण

दीपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

चंचल निशि उदवस रहें,
करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा,
सुन्दरि नैनन लाज।।

(xii). अपन्हुति अलंकार

अपन्हुति शब्द का अर्थ ‘छिपाव’ होता है। जब किसी सच्ची बात अथवा वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है, तो वहाँ पर ‘अपन्हुति अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।

अपन्हुति अलंकार के उदाहरण

अपन्हुति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला,
बन्धु न होय मोर यह काला।

अपन्हुति अलंकार के भेद

अपन्हुति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

अपन्हुति अलंकार के भेद
शाब्दी अपन्हुति अलंकार
आर्थी अपन्हुति अलंकार
१. शाब्दी अपन्हुति अलंकार

जहाँ पर शब्दों का निषेध किया जाता है, वहाँ पर ‘शाब्दी अपन्हुति अलंकार’ होता है।

२. आर्थी अपन्हुति अलंकार

जहाँ पर छल, बहाना, आदि के द्वारा निषेध किया जाता है, वहाँ पर ‘आर्थी अपन्हुति अलंकार’ होता है।

(xiii). व्यतिरेक अलंकार

व्यतिरेक शब्द का अर्थ ‘आधिक्य’ होता है। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। इसलिए, जहाँ पर उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष होता है, तो वहाँ पर ‘व्यतिरेक अलंकार’ होता है।

व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण

व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

का सरवरि तेहिं देउं मयंकू।
चांद कलंकी वह निकलंकू।।

स्पष्टीकरण:- मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?

(xiv). विभावना अलंकार

जहाँ पर कारण नहीं होने पर भी कार्य का होना पाया जाता है, तो वहाँ पर विभावना अलंकार होता है।

विभावना अलंकार के उदाहरण

विभावना अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।।

(xv). विशेषोक्ति अलंकार

काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य का नहीं होना पाया जाता है, तो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।

विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण

विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

नेह न नैनन को कछु,
उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें,
तऊ न प्यास बुझाई।।

(xvi). अर्थान्तरन्यास अलंकार

जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाता है, तो वहाँ पर ‘अर्थान्तरन्यास अलंकार’ होता है।

अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण

अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

बड़े न हूजे गुनन बिनु,
बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक,
गहनो गढ़ो न जाए।।

(xvii). उल्लेख अलंकार

जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण किया जाता है, तो उसके अलग-अलग भागों में विभाजित होने को ‘उल्लेख अलंकार’ कहते है। साधारण शब्दों में:- जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाए, वहाँ पर ‘उल्लेख अलंकार’ होता है।

उल्लेख अलंकार के उदाहरण

उल्लेख अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।

(xviii). विरोधाभास अलंकार

जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध नहीं होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।

विरोधाभास अलंकार के उदाहरण

विरोधाभास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।

(xix). असंगति अलंकार

जहाँ पर आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए कार्य तथा कारण का वैयाधिकरन्य रणित होता है, तो वहाँ पर ‘असंगति अलंकार’ होता है।

असंगति अलंकार के उदाहरण

असंगति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।

(xx). मानवीकरण अलंकार

काव्य में जहाँ पर जड़ में चेतन का आरोप होता है, तो वहाँ पर ‘मानवीकरण अलंकार’ होता है। साधारण शब्दों में:- जहाँ पर जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है, वहाँ पर ‘मानवीकरण अलंकार’ होता है।

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

बीती विभावरी जागरी,
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नगरी।

(xxi). अन्योक्ति अलंकार

जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाती है, तो वहाँ पर ‘अन्योक्ति अलंकार’ होता है।

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

फूलों के आस-पास रहते है,
फिर भी काँटे उदास रहते है।

(xxii). काव्यलिंग अलंकार

जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई न कोई युक्ति अथवा कारण अवश्य दिया जाता है, क्योंकि बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जाएगी, तो वहाँ पर ‘काव्यलिंग अलंकार’ होता है।

साधारण शब्दों में:- जब किसी युक्ति से समर्थित की गई बात होती है, तो उसे को ‘काव्यलिंग अलंकार’ कहते है।

काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण

काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

कनक कनक ते सौगुनी,
मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर,
इहि पाए बौराए।।

(xxiii). स्वभावोक्ति अलंकार

जब किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन होता है, तो उसे ‘स्वभावोक्ति अलंकार’ कहते है।

स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण

स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सीस मुकुट कटी काछनी,
कर मुरली उर माल।
इहि बानिक मो मन बसौ,
सदा बिहारीलाल।।

3. उभयालंकार

अलंकार का वह रूप, जिसमें ‘शब्दालंकार’ तथा ‘अर्थालंकार’ दोनों अलंकारों का योग होता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।

साधारण शब्दों में:- वह अलंकार, जो ‘शब्द’ तथा ‘अर्थ’ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी बनाता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।

उभयालंकार के उदाहरण

उभयालंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।

स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्तियों में शब्द और अर्थ दोनों है। अतः यहाँ पर ‘उभयालंकार’ है।

उभयालंकार के भेद

उभयालंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

उभयालंकार के भेद
संसृष्टि उभयालंकार
संकर उभयालंकार

(i). संसृष्टि उभयालंकार

तिल-तंडुल-न्याय से परस्पर-निरपेक्ष अनेक अलंकारों की स्थिति ‘संसृष्टि उभयालंकार’ कहलाती है। (एषां तिलतंडुल न्यायेन मिश्रत्वे संसृष्टि:- रुय्यक : अलंकारसर्वस्व)।

जिस प्रकार तिल और तंडुल (चावल) मिलकर भी पृथक दिखाई देते है, उसी प्रकार संसृष्टि उभयालंकार में कईं अलंकार मिले रहते है, लेकिन उनकी पहचान करने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है।

संसृष्टि उभयालंकार में कईं शब्दालंकार, कईं अर्थालंकार अथवा कईं शब्दालंकार और अर्थालंकार एक साथ रह सकते है।

दो अर्थालंकारों की संसृष्टि उभयालंकार का उदाहरण

दो अर्थालंकारों की संसृष्टि उभयालंकार का उदाहरण निम्न प्रकार है:-

भूपति भवनु सुभायँ सुहावा।
सुरपति सदनु न परतर पावा।
मनिमय रचित चारु चौबारे।
जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।।

उपरोक्त पंक्तियों के प्रथम दो चरणों में ‘प्रतीप अलंकार’ है तथा अंतिम दो चरणों में ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है। इसलिए, यहाँ पर प्रतीप अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार की संसृष्टि है।

(ii). संकर उभयालंकार

नीर-क्षीर-न्याय से परस्पर मिश्रित अलंकार ‘संकर उभयालंकार’ कहलाता है। (क्षीर-नीर न्यायेन तु संकर:- रुय्यक : अलंकारसर्वस्व)। जिस प्रकार नीर-क्षीर अर्थात पानी और दूध मिलकर एक हो जाते है, ठीक उसी प्रकार, संकर उभयालंकार में कईं अलंकार इस प्रकार मिल जाते है, जिनका पृथक्क़रण संभव नहीं होता है।

संकर उभयालंकार के उदाहरण

संकर उभयालंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
पारस-परस कुधातु सुहाई।।

तुलसीदास:- ‘पारस-परस’ में ‘अनुप्रास अलंकार’ तथा ‘यमक अलंकार’ दोनों इस प्रकार मिले है कि इनका पृथक्करण करना संभव नहीं है। अतः यहाँ ‘संकर उभयालंकार’ है।

अलंकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. अलंकार की परिभाषा क्या है?

    अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ होता है। अलंकार शब्द ‘अलम + कार’ शब्दों से मिलकर बनता है। यहाँ पर ‘अलम’ शब्द का अर्थ आभूषण होता है। जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषणों से होती है, उसी प्रकार काव्य की शोभा ‘अलंकार’ से होती है।
    साधारण शब्दों में:- जो शब्द आपके वाक्यांश को अलंकृत करता है, वह ‘अलंकार’ कहलाता है। अलंकार किसी काव्यांश तथा वाक्यांश की सुंदरता को बढ़ाने वाले शब्द होते है।
    जैसे अपने शब्दों के माध्यम से किसी की सुंदरता को चाँद की उपाधि देना अलंकार के बिना संभव नहीं है। भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुंदर बनाने का कार्य अलंकार ही करता है।

  2. अलंकार के कितने भेद है?

    अलंकार के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. शब्दालंकार
    2. अर्थालंकार
    3. उभयालंकार

  3. शब्दालंकार की परिभाषा क्या है?

    अलंकार का वह रूप, जिसमें शब्दों का प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी शब्द को रखने से वह चमत्कार समाप्त हो जाए, तो वहाँ ‘शब्दालंकार’ अथवा ‘शब्द अलंकार’ होता है।
    शब्दालंकार ‘शब्द+अलंकार‘ इन 2 शब्दों से मिलकर बनता है। शब्द के 2 रूप होते है:- ध्वनि तथा अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टि होती है।
    जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द के स्थान पर कोई अन्य पर्यायवाची शब्द को रख देने से उस शब्द का अस्तित्व नहीं रहे, तो उसे ‘शब्दालंकार’ कहते है।

  4. अर्थालंकार की परिभाषा क्या है?

    जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता है, तो उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है।

  5. उभयालंकार की परिभाषा क्या है?

    अलंकार का वह रूप, जिसमें ‘शब्दालंकार’ तथा ‘अर्थालंकार’ दोनों अलंकारों का योग होता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।
    साधारण शब्दों में:- वह अलंकार, जो ‘शब्द’ तथा ‘अर्थ’ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी बनाता है, तो वह ‘उभयालंकार’ कहलाता है।

  6. शब्दालंकार के कितने भेद है?

    शब्दालंकार के कुल 6 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. अनुप्रास अलंकार
    2. यमक अलंकार
    3. पुनरुक्ति अलंकार
    4. वीप्सा अलंकार
    5. वक्रोक्ति अलंकार
    6. श्लेष अलंकार

  7. अर्थालंकार के कितने भेद है?

    अर्थालंकार के सभी भेद निम्नलिखित है:-
    1. उपमा अलंकार
    2. रूपक अलंकार
    3. उत्प्रेक्षा अलंकार
    4. द्रष्टान्त अलंकार
    5. संदेह अलंकार
    6. अतिश्योक्ति अलंकार
    7. उपमेयोपमा अलंकार
    8. प्रतीप अलंकार
    9. अनन्वय अलंकार
    10. भ्रांतिमान अलंकार
    11. दीपक अलंकार
    12. अपन्हुति अलंकार
    13. व्यतिरेक अलंकार
    14. विभावना अलंकार
    15. विशेषोक्ति अलंकार
    16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
    17. उल्लेख अलंकार
    18. विरोधाभाष अलंकार
    19. असंगति अलंकार
    20. मानवीकरण अलंकार
    21. अन्योक्ति अलंकार
    22. काव्यलिंग अलंकार
    23. कारणमाला अलंकार
    24. पर्याय अलंकार
    25. स्वभावोक्ति अलंकार
    26. समासोक्ति अलंकार

  8. उभयालंकार के कितने भेद है?

    उभयालंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. संसृष्टि
    2. संकर

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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