अर्थालंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

अर्थालंकार की परिभाषा : Arthalankar in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘अर्थालंकार की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप अर्थालंकार से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
अर्थालंकार की परिभाषा : Arthalankar in Hindi
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता है, तो उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है। साधारण शब्दों में:- जहाँ ‘अलंकार’ अर्थ पर निर्भर होता है, उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है। अर्थालंकार में शब्द परिवर्तन कर देने पर भी अलंकारत्व नष्ट नहीं होता है।
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के सभी भेद निम्नलिखित है:-
अर्थालंकार के भेद |
---|
उपमा अलंकार |
रूपक अलंकार |
उत्प्रेक्षा अलंकार |
द्रष्टान्त अलंकार |
संदेह अलंकार |
अतिश्योक्ति अलंकार |
उपमेयोपमा अलंकार |
प्रतीप अलंकार |
अनन्वय अलंकार |
भ्रांतिमान अलंकार |
दीपक अलंकार |
अपन्हुति अलंकार |
व्यतिरेक अलंकार |
विभावना अलंकार |
विशेषोक्ति अलंकार |
अर्थान्तरन्यास अलंकार |
उल्लेख अलंकार |
विरोधाभाष अलंकार |
असंगति अलंकार |
मानवीकरण अलंकार |
अन्योक्ति अलंकार |
काव्यलिंग अलंकार |
कारणमाला अलंकार |
पर्याय अलंकार |
स्वभावोक्ति अलंकार |
समासोक्ति अलंकार |
1. उपमा अलंकार
उपमा शब्द का अर्थ ‘तुलना’ होता है। जब किसी व्यक्ति अथवा वस्तु की तुलना किसी अन्य व्यक्ति अथवा वस्तु से की जाती है, तो वहाँ पर ‘उपमा अलंकार’ होता है।
उपमा अलंकार के उदाहरण
उपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
उपमा अलंकार के अंग
उपमा अलंकार के कुल 4 अंग होते है, जो कि निम्नलिखित है:-
उपमा अलंकार के अंग |
---|
उपमान |
उपमेय |
वाचक शब्द |
साधारण धर्म |
(i). उपमेय
उपमेय का अर्थ ‘उपमा देने के योग्य’ होता है। यदि किसी वस्तु की समानता किसी अन्य वस्तु से की जाए, तो वहाँ पर ‘उपमेय’ होता है।
(ii). उपमान
उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है, उसे ‘उपमान’ कहते है। अर्थात उपमेय की जिसके साथ समानता बताई जाती है, उसे ‘उपमान कहते’ है।
(iii). वाचक शब्द
उपमेय और उपमान में समानता दिखाने के जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसे ‘वाचक शब्द’ कहते है।
(iv). साधारण धर्म
दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण अथवा धर्म की मदद ली जाती है, जो दोनों वस्तुओं में वर्तमान स्थिति में हो, तो उसी गुण अथवा धर्म को ‘साधारण धर्म’ कहते है।
उपमा अलंकार के भेद
उपमा अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
उपमा अलंकार के भेद |
---|
पूर्णोपमा अलंकार |
लुप्तोपमा अलंकार |
(i). पूर्णोपमा अलंकार
जहाँ पर उपमा अलंकार के सभी अंग:- ‘उपमेय, उपमान, वाचक शब्द और साधारण धर्म’ होते है, तो वहाँ पर ‘पूर्णोपमा अलंकार’ होता है।
पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण
पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
(ii). लुप्तोपमा अलंकार
जहाँ पर उपमा अलंकार के सभी चारों अंगों में से यदि एक, दो तथा तीन अंग नहीं होते है, तो वहाँ पर ‘लुप्तोपमा अलंकार’ होता है।
लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण
लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
कल्पना सी अतिशय कोमल।
स्पष्टीकरण:- उपरोक्त पंक्तियों में उपमेय नहीं है, तो इसलिए यह लुप्तोपमा अलंकार का उदहारण है।
2. रूपक अलंकार
जहाँ पर उपमेय तथा उपमान में कोई अंतर नहीं दिखाई देता है, तो वहाँ पर ‘रूपक अलंकार’ होता है अर्थात जहाँ पर उपमेय तथा उपमान के मध्य के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है, तो वहाँ पर ‘रूपक अलंकार’ होता है।
रूपक अलंकार के उदाहरण
रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
उदित उदय गिरी मंच पर,
रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत- सरोज सब,
हरषे लोचन भ्रंग।।
नोट:- रूपक अलंकार में ‘उपमेय को उपमान का रूप देना’, ‘वाचक शब्द का लोप होना’, ‘उपमेय का भी साथ में वर्णन होना’ आता है।
रूपक अलंकार के भेद
रूपक अलंकार के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
रूपक अलंकार के भेद |
---|
सांग रूपक अलंकार |
निरंग रूपक अलंकार |
परंपरिक रूपक अलंकार |
(i). सांग रूपक अलंकार
जहाँ उपमेय के अंगों अथवा अवयवों पर उपमान के अंगों अथवा अवयवों का आरोप किया जाता है, तो उसे ‘सांग रूपक अलंकार’ कहते है।
सांग रूपक अलंकार के उदाहरण
सम रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
उदित उदयगिरि मंच पर,
रघुवर बाल पतंग।
विकसे सन्त सरोज सब,
हरषै लोचन भृंग।।
(ii). निरंग रूपक अलंकार
जिसमें उपमेय पर उपमान का आरोप होता है और अंगों का आरोप नहीं होता है, तो उसे ‘निरंग रुपक अलंकार’ कहते है।
निरंग रूपक अलंकार के उदाहरण
निरंग रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
है शत्रु भी यों मग्न जिसके शौर्य पारावार में
(iii). परंपरिक रूपक अलंकार
अलंकार का वह रूप, जिसमें एक आरोप, दूसरे आरोप का कारण होता है, उसे ‘परंपरिक रुपक अलंकार’ कहते है।
परंपरिक रूपक अलंकार के उदाहरण
परंपरिक रूपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
महिमा-मृगी कौन सुकृति की,
खल-वच-विसिख न बाँची?
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ पर उपमान के नहीं होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में:- मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों, आदि शब्द आते है।
साधारण शब्दों में:- जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सखि सोहत गोपाल के,
उर गुंजन की माल।
बाहर सोहत मनु पिये,
दावानल की ज्वाल।।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
उत्प्रेक्षा अलंकार के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद |
---|
वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार |
हेतुत्प्रेक्षा अलंकार |
फलोत्प्रेक्षा अलंकार |
(i). वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई देती है, तो वहाँ पर ‘वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सखि सोहत गोपाल के,
उर गुंजन की माल।
बाहर सोहत मनु पिये,
दावानल की ज्वाल।।
(ii). हेतुत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ पर अहेतु में हेतु की संभावना दिखाई देती है, तो वहाँ पर हेतुत्प्रेक्षा अलंकार होता है। साधारण शब्दों में:- जहाँ पर वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘हेतुप्रेक्षा अलंकार’ होता है।
(iii). फलोत्प्रेक्षा अलंकार
वाहन पर वास्तविक फल के नहीं होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है, तो वहाँ पर ‘फलोत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
फलोत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
फलोत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।
4. दृष्टान्त अलंकार
जहाँ पर दो सामान्य अथवा दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, तो वहाँ पर ‘दृष्टान्त अलंकार’ होता है।
दृष्टान्त अलंकार में उपमेय रूप में कही गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में अन्य वाक्य में होती है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।
दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण
दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ पति का क्या सह सकती है।
5. संदेह अलंकार
जहाँ पर उपमेय तथा उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं कर पाने की दुविधा उत्पन्न होती है कि उपमान वास्तव में ‘उपमेय’ है अथवा नहीं, तो वहाँ पर ‘संदेह अलंकार’ होता है।
साधारण शब्दों में:- जहाँ पर किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर संशय बना रहता है, तो वहाँ पर ‘संदेह अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।
संदेह अलंकार के उदाहरण
संदेह अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
नोट:- संदेह अलंकार में विषय का अनिश्चित ज्ञान होता है, यह अनिश्चित समानता पर निर्भर होता है तथा अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है।
6. अतिश्योक्ति अलंकार
जहाँ पर किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का वर्णन करने में लोक-समाज की सीमा अथवा मर्यादा भंग (टूट) हो जाती है, तो वहाँ पर अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण
अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।
7. उपमेयोपमा अलंकार
जहाँ पर उपमेय तथा उपमान को परस्पर उपमान तथा उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है और उपमेय तथा उपमान की एक-दूसरे से उपमा दी जाती है, तो वहाँ पर ‘उपमेयोपमा अलंकार’ होता है।
उपमेयोपमा अलंकार के उदाहरण
उपमेयोपमा अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
तौ मुख सोहत है ससि सो
अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
8. प्रतीप अलंकार
प्रतीप का अर्थ ‘उल्टा’ होता है। जहाँ पर उपमा के अंगों में उलटफेर करने से अर्थात उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलटकर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है, तो वहाँ पर ‘प्रतीप अलंकार’ होता है।
प्रतीप अलंकार में 2 वाक्य ‘उपमेय वाक्य’ तथा द्वितीय ‘उपमान वाक्य’ होते है। लेकिन, इन दोनों वाक्यों में सदृश्य का साफ कथन नहीं होता है और वह व्यंजित रहता है। इन दोनों में साधारण धर्म एक ही होता है, लेकिन उसे भिन्न-भिन्न प्रकार से कहा जाता है।
प्रतीप अलंकार के उदाहरण
प्रतीप अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
नेत्र के समान कमल है।
9. अनन्वय अलंकार
जब कवि को उपमेय की समानता के लिए कोई अन्य उपमान नहीं मिलता है, तो वह उपमेय की समानता के लिए उपमेय को ही उपमान बना डालता है, तो वहाँ ‘अनन्वय अलंकार’ होता है।
साधारण शब्दों में:- एक ही वस्तु को उपमेय तथा उपमान दोनों बना देना ही ‘अनन्वय अलंकार’ कहलाता है।
अनन्वय अलंकार के उदाहरण
अनन्वय अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
यद्यपि अति आरत-मारत है,
भारत के सम भारत है।
10. भ्रांतिमान अलंकार
जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर ‘भ्रांतिमान अलंकार’ होता है अर्थात जहाँ पर उपमान तथा उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है।
साधारण शब्दों में:- जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, तो वहाँ पर ‘भ्रांतिमान अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी अंग माना जाता है।
भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण
भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
पायें महावर देन को नाईन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।।
11. दीपक अलंकार
जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है, तो वहाँ पर ‘दीपक अलंकार’ होता है।
दीपक अलंकार के उदाहरण
दीपक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
चंचल निशि उदवस रहें,
करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा,
सुन्दरि नैनन लाज।।
12. अपन्हुति अलंकार
अपन्हुति शब्द का अर्थ ‘छिपाव’ होता है। जब किसी सच्ची बात अथवा वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है, तो वहाँ पर ‘अपन्हुति अलंकार’ होता है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।
अपन्हुति अलंकार के उदाहरण
अपन्हुति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला,
बन्धु न होय मोर यह काला।
अपन्हुति अलंकार के भेद
अपन्हुति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
अपन्हुति अलंकार के भेद |
---|
शाब्दी अपन्हुति अलंकार |
आर्थी अपन्हुति अलंकार |
(i). शाब्दी अपन्हुति अलंकार
जहाँ पर शब्दों का निषेध किया जाता है, वहाँ पर ‘शाब्दी अपन्हुति अलंकार’ होता है।
(ii). आर्थी अपन्हुति अलंकार
जहाँ पर छल, बहाना, आदि के द्वारा निषेध किया जाता है, वहाँ पर ‘आर्थी अपन्हुति अलंकार’ होता है।
13. व्यतिरेक अलंकार
व्यतिरेक शब्द का अर्थ ‘आधिक्य’ होता है। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। इसलिए, जहाँ पर उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष होता है, तो वहाँ पर ‘व्यतिरेक अलंकार’ होता है।
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू।
चांद कलंकी वह निकलंकू।।
स्पष्टीकरण:- मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?
14. विभावना अलंकार
जहाँ पर कारण नहीं होने पर भी कार्य का होना पाया जाता है, तो वहाँ पर विभावना अलंकार होता है।
विभावना अलंकार के उदाहरण
विभावना अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।।
15. विशेषोक्ति अलंकार
काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य का नहीं होना पाया जाता है, तो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
नेह न नैनन को कछु,
उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें,
तऊ न प्यास बुझाई।।
16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाता है, तो वहाँ पर ‘अर्थान्तरन्यास अलंकार’ होता है।
अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण
अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
बड़े न हूजे गुनन बिनु,
बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक,
गहनो गढ़ो न जाए।।
17. उल्लेख अलंकार
जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण किया जाता है, तो उसके अलग-अलग भागों में विभाजित होने को ‘उल्लेख अलंकार’ कहते है। साधारण शब्दों में:- जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाए, वहाँ पर ‘उल्लेख अलंकार’ होता है।
उल्लेख अलंकार के उदाहरण
उल्लेख अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।
18. विरोधाभास अलंकार
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध नहीं होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।
19. असंगति अलंकार
जहाँ पर आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए कार्य तथा कारण का वैयाधिकरन्य रणित होता है, तो वहाँ पर ‘असंगति अलंकार’ होता है।
असंगति अलंकार के उदाहरण
असंगति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
काव्य में जहाँ पर जड़ में चेतन का आरोप होता है, तो वहाँ पर ‘मानवीकरण अलंकार’ होता है। साधारण शब्दों में:- जहाँ पर जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है, वहाँ पर ‘मानवीकरण अलंकार’ होता है।
मानवीकरण अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
बीती विभावरी जागरी,
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नगरी।
21. अन्योक्ति अलंकार
जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाती है, तो वहाँ पर ‘अन्योक्ति अलंकार’ होता है।
अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण
अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
फूलों के आस-पास रहते है,
फिर भी काँटे उदास रहते है।
22. काव्यलिंग अलंकार
जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई न कोई युक्ति अथवा कारण अवश्य दिया जाता है, क्योंकि बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जाएगी, तो वहाँ पर ‘काव्यलिंग अलंकार’ होता है।
साधारण शब्दों में:- जब किसी युक्ति से समर्थित की गई बात होती है, तो उसे को ‘काव्यलिंग अलंकार’ कहते है।
काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण
काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
कनक कनक ते सौगुनी,
मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर,
इहि पाए बौराए।।
23. स्वभावोक्ति अलंकार
जब किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन होता है, तो उसे ‘स्वभावोक्ति अलंकार’ कहते है।
स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण
स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
सीस मुकुट कटी काछनी,
कर मुरली उर माल।
इहि बानिक मो मन बसौ,
सदा बिहारीलाल।।
अर्थालंकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
-
अर्थालंकार की परिभाषा क्या है?
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता है, तो उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है। साधारण शब्दों में:- जहाँ ‘अलंकार’ अर्थ पर निर्भर होता है, उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है। अर्थालंकार में शब्द परिवर्तन कर देने पर भी अलंकारत्व नष्ट नहीं होता है।
-
अर्थालंकार के कितने भेद है?
अपन्हुति अलंकार के सभी भेद निम्नलिखित है:-
1. उपमा अलंकार
2. रूपक अलंकार
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
4. द्रष्टान्त अलंकार
5. संदेह अलंकार
6. अतिश्योक्ति अलंकार
7. उपमेयोपमा अलंकार
8. प्रतीप अलंकार
9. अनन्वय अलंकार
10. भ्रांतिमान अलंकार
11. दीपक अलंकार
12. अपन्हुति अलंकार
13. व्यतिरेक अलंकार
14. विभावना अलंकार
15. विशेषोक्ति अलंकार
16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
17. उल्लेख अलंकार
18. विरोधाभाष अलंकार
19. असंगति अलंकार
20. मानवीकरण अलंकार
21. अन्योक्ति अलंकार
22. काव्यलिंग अलंकार
23. कारणमाला अलंकार
24. पर्याय अलंकार
25. स्वभावोक्ति अलंकार
26. समासोक्ति अलंकार
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
अगर इस लेख के द्वारा आपको किसी भी प्रकार की जानकारी पसंद आई हो तो, इस लेख को अपने मित्रों व परिजनों के साथ फेसबुक पर साझा अवश्य करें और हमारे वेबसाइट को सबस्क्राइब कर ले।

नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।