बहुव्रीहि समास की परिभाषा, भेद और उदाहरण

बहुव्रीहि समास की परिभाषा : Bahuvrihi Samas in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘बहुव्रीहि समास की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप बहुव्रीहि समास की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
बहुव्रीहि समास की परिभाषा : Bahuvrihi Samas in Hindi
समास का वह रूप, जिसमें दो पद (प्रथम पद तथा द्वितीय पद) मिलकर तीसरा पद (तृतीय पद) का निर्माण करते है, तब वह तीसरा पद (तृतीय पद) प्रधान होता है, वह ही ‘बहुव्रीहि समास’ कहलाता है।
बहुव्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर ‘वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह‘ आदि आते है।
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
समास | समास-विग्रह |
---|---|
गजानन | गज का आनन है जिसका (गणेश) |
त्रिनेत्र | तीन नेत्र है जिसके (शिव) |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिसका (शिव) |
लम्बोदर | लम्बा है उदर जिसका (गणेश) |
दशानन | दश है आनन जिसके (रावण) |
चतुर्भुज | चार भुजाओं वाला (विष्णु) |
पीताम्बर | पीले है वस्त्र जिसके (कृष्ण) |
चक्रधर | चक्र को धारण करने वाला (विष्णु) |
वीणापाणी | वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती) |
श्वेताम्बर | सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती) |
त्रिलोचन | तीन आँखों वाला (शिव) |
चतुरानन | वह जिसके चतुर (चार) आनन है (ब्रह्मा) |
पंचानन | वह जिसके पाँच आनन है (शिव) |
षडानन | वह जिसके षट् आनन है (कार्तिकेय) |
सुग्रीव | वह जिसकी ग्रीवा सुन्दर है (वानरराज) |
चक्षुश्रवा | वह जो चक्षु से श्रवण करता है (साँप) |
दशानन | दस है आनन जिसके (रावण) |
षण्मुख | वह जिसके षट् मुख है (कार्तिकेय) |
मुरलीधर | मुरली धारण करने वाला (कृष्ण) |
दशमुख | वह जिसके दस मुख है (रावण) |
चतुर्मुख | चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा) |
पीताम्बर | वह जिसके पीत अम्बर (वस्त्र) है (कृष्ण/विष्णु) |
लम्बोदर | लंबा है उदर जिसका (गणेश) |
मनोज | वह जो मन से जन्म लेता है (कामदेव) |
एकदंत | एक दंत वाले (श्री गणेश) |
वीणापाणि | वह जिसके पाणि (हाथ) में वीणा है (सरस्वती) |
वक्रतुण्ड | वक्र है तुण्ड जिनके (श्री गणेश) |
वज्रपाणि | वह जिसके पाणि में शूल है (शिव) |
निशाचर | निशा अर्थात रात में विचरण करने वाला (राक्षस) |
शूलपाणि | वह जिसके पाणि में शूल है (शिव) |
गौरीपुत्र | गौरी पुत्र है जो (श्री गणेश) |
आशुतोष | वह जो आशु (शीघ्र) तुष्ट हो जाते है (शिव) |
शैलजा/शैलतनाया गिरिजा | शेल से जननी है जो (माँ पार्वती) |
त्रिनेत्र | वह जिसके तीन नेत्र है (शिव) |
जनकतनया | जनक की पुत्री है जो (माँ सीता) |
चन्द्रचूङ | वह जिसके चूङ (सिर) पर चन्द्र है (शिव) |
वृषभानुजा | वृषभानु कि पुत्री है जो माँ राधा |
लम्बोदर | वह जिसका उदर लम्बा है (गणेश) |
हृषीकेश | वह जो हृषीक (इन्द्रियों) के ईश है (विष्णु/कृष्ण) |
युधिष्ठिर | वह जो युद्ध में स्थिर रहता है (धर्मराज) |
पंजाब | पाँच आबों (नदियों) का क्षेत्र (एक राज्य) |
पतझङ | पत्ते झङ जाते है जिस ऋतु में |
त्रिवेणी | वह स्थान जो तीन वेणियों (नदियों) का संगम स्थल है (प्रयाग) |
शाखामृग | शाखाओं पर दौङने वाला मृग (बन्दर) |
पंचवटी | पाँच वटवृक्षों के समूह वाला स्थान (मध्यप्रदेश का एक स्थान) |
नवरात्र | नव रात्रियों के चार माह (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन) |
महावीर | महान् है जो वीर वह (हनुमान) |
त्रिशूल | तीन हैं शूल जिसमें वह (शिव का अस्त्र) |
चौमासा | वर्षा ऋतु के चार माह (आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन) |
अनुचर | अनु (पीछे) चर (चलने) वाला (सेवक) |
रत्नगर्भा | रत्न हैं गर्भ में जिसके वह (पृथ्वी) |
महाविद्यालय | महान है जो विद्यालय |
प्रधानमंत्री | प्रधान है जो मंत्री |
महाकाव्य | महान है जो काव्य |
कापुरूष | कायर है जो पुरूष |
महापुरूष | महान है जो पुरूष |
सज्जन | सत् है जो पुरूष |
सदाचार | सत् है जो आचार |
पद्मासन | पद्म पर आसित है जो (सरस्वती) |
सहस्राक्ष | सहस्त्र अक्ष (हाथ) है (इन्द्र) |
श्रीश | श्री (लक्ष्मी) के ईश (पति) है जो (विष्णु) |
रेवतीरमण | रेवती के साथ रमण करते है (बलराम) |
कुसुमसर | कुसुम के समान तीर है जिसके (कामदेव) |
पुष्पधन्वा | पुष्पों से निर्मित धनुष है जिसका वह (कामदेव) |
वज्रांग | वज्र के समान अंग हैं जिसके वह (बजरंग बली) |
वक्रतुण्ड | वक्र (टेढ़ा) है तुंड (मुख) जिसका वह (गणेश) |
सूतपुत्र | सूत (सारथि) का पुत्र है जो वह (कर्ण) |
त्र्यम्बक | त्रि (तीन) अम्बक (नेत्र) हैं जिसके वह (शिव) |
हलधर | वह जो हल को धारण करता है (बलराम) |
रघुनन्दन | रघु का नंदन है जो वह (विष्णु) |
पंचामृत | पाँच है अमृत जो वे (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) |
रमेश | रमा का ईश है जो वह (विष्णु) |
विश्वंभर | विश्व का भरण करता है जो वह (विष्णु) |
हरफनमौला | हर फन (कला) में है जो मौला (निपुण) |
त्रिदोष | तीन दोष हैं जो वे (वात्त, पित्त, कफ) |
षट्पद | छह हैं पैर जिसके वह (भ्रमर) |
तिरंगा | तीन है रंग जिसके वह (राष्ट्रीय ध्वज) |
माधव | मधु, राक्षस को मारने वाला (कृष्ण) |
गोपाल | गायों का पालन करने वाला है वह (कृष्ण) |
लोहागढ़ | लोहे के समान अजेय गढ़ है जो वह (भरतपुर का किला) |
राजपूत | राजा का है पूत जो (एक जाति विशेष) |
चौपाई | चार हैं पद जिसमें वह (एक छन्द विशेष) |
नकटा | नाक है कटी जिसकी वह (बेशर्म) |
विमल | मल से रहित है जो वह (स्वच्छ) |
षाण्मातुर | छह हैं माताएँ जिसकी वह |
दिनेश | दिन है ईश जो वह (सूर्य) |
उमेश | उमा है ईश जो वह (शिव जी) |
तिरंगा | तीन है रंग जिसमें वह (राष्ट्रध्वज) |
आशुतोष | आशु (शीघ्र) हो जाता है तोष |
बहुव्रीहि समास के भेद
बहुव्रीहि समास के कुल 5 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
बहुव्रीहि समास के भेद |
---|
समानाधिकरण बहुव्रीहि समास |
व्यधिकरण बहुव्रीहि समास |
तुल्ययोग बहुव्रीहि समास |
व्यतिहार बहुव्रीहि समास |
प्रादी बहुव्रीहि समास |
1. समानाधिकरण बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास का वह रूप, जिसमें सभी पद कर्ता-कारक की विभक्ति के होते है, लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण, आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है, उसे ‘समानाधिकरण बहुव्रीहि समास’ कहते है।
समानाधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण
समानाधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
समास | समास-विग्रह |
---|---|
प्रप्तोद्क | प्राप्त है उदक जिसको |
दत्तभोजन | दत्त है भोजन जिसके लिए |
निर्धन | निर्गत है धन जिससे |
नेकनाम | नेक है नाम जिसका |
सतखंडा | सात है खण्ड जिसमें |
जितेंद्रियां | जीती गई इंद्रियां है जिसके द्वारा |
दत्तधन | दिया गया है धन जिसके लिए |
पीताम्बर | पीत है अम्बर जिसका |
दत्तचित | दे दिया है चित्त जिसने |
प्राप्तोदक | प्राप्त कर लिया है उदक (जल) जिसने |
कलहप्रिय | कलह है प्रिय जिसको |
चौलङी | चार हैं लङियाँ जिसमें |
गोपाल | गौ का पालन करता है जोे |
दिगम्बर | दिक (दिशाएँ) है अम्बर (वस्त्र) जिसका |
पंकज | पंक (कीचङ) में जन्म लेने वाला अर्थात् कमल |
चन्द्रभाल | चन्द्रमा है माथे पर जिसके अर्थात् शंकर |
मृत्युजंय | मृत्यु को जीतने वाला अर्थात् शंकर |
2. व्यधिकरण बहुव्रीहि समास
समानाधिकरण बहुव्रीहि समास में दोनों पद (प्रथम पद तथा द्वितीय पद) कर्ता-कारक की विभक्ति के होते है, लेकिन यहाँ पर पहला पद (प्रथम पद) तो कर्ता-कारक की विभक्ति का होता है, लेकिन दूसरा पद (द्वितीय पद) सम्बन्ध अथवा अधिकरण कारक का होता है, उसे ‘व्यधिकरण बहुव्रीहि समास’ कहते है।
व्यधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण
व्यधिकरण बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
समास | समास-विग्रह |
---|---|
शूलपाणी | शूल है पाणी में जिसके |
वीणापाणी | वीणा है पाणी में जिसके |
सूर्यपुत्र | वह जो सूर्य का पुत्र है (कर्ण) |
नकटा | कट गई है नाक जिसकी |
दीर्घबाहु | लम्बी है भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
मोदकप्रिय | लड्डू है प्रिय जिसको (गणेश) |
कामारि | कामदेव का है शत्रु जो (शिव) |
मकरध्वज | वह जिसके मकर का ध्वज है (कामदेव) |
ब्रजवल्लभ | वह जो ब्रज का वल्लभ है (कृष्ण) |
रावनारि | रावण का है शत्रु जो (राम) |
दीर्घबाहु | लम्बी है भुजाएं जिसकी (विष्णु) |
3. तुल्ययोग बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास का ववाह रूप, जिसमें पहला पद (प्रथम पद) ‘सह’ होता है, उसे ‘तुल्ययोग बहुव्रीहि समास’ कहते है।
‘तुल्ययोग बहुव्रीहि समास’ को ‘सहबहुव्रीहि समास’ भी कहते है। जिसमें ‘सह’ का अर्थ:- ‘साथ होता है और समास होने के कारण ‘सह’ के स्थान पर सिर्फ ‘स’ शेष रह जाता है।
तुल्ययोग बहुव्रीहि समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि विग्रह करते समय जो ‘सह’ दूसरा पद (द्वितीय पद) प्रतीत होता है, वह समास में पहला पद (प्रथम पद) हो जाता है।
तुल्ययोग बहुव्रीहि समास के उदाहरण
तुल्ययोग बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
समास | समास-विग्रह |
---|---|
सबल | जो बल के साथ है |
सदेह | जो देह के साथ है |
सपरिवार | जो परिवार के साथ है |
सचेत | चेतना के साथ है जो |
4. व्यतिहार बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास का वह रूप, जिससे घात अथवा प्रतिघात की सूचना प्राप्त होती है, उसे ‘व्यतिहार बहुव्रीहि समास’ कहते है। व्यतिहार बहुव्रीहि समास में यह प्रतीत होता है कि ‘इस वस्तु से और उस वस्तु से लड़ाई हुई।
व्यतिहार बहुव्रीहि समास के उदाहरण
व्यतिहार बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
पद | अर्थ |
---|---|
मुक्का-मुक्की | मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई |
बाताबाती | बातों-बातों से जो लड़ाई हुई |
गालागाली | गलियों से जो झगङा हुआ हो |
धक्काधुक्की | बात बात से जो झगङा हुआ हो |
5. प्रादी बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास का वह रूप, जिसमें पूर्वपद ‘उपसर्ग’ होता है, उसे ‘प्रादी बहुव्रीहि समास’ कहते है।
प्रादी बहुव्रीहि समास के उदाहरण
प्रादी बहुव्रीहि समास के उदाहरण निम्नलिखित है:-
पद | अर्थ |
---|---|
बेरहम | नहीं है रहम जिसमें |
निर्जन | नहीं है जन जहाँ |
बहुव्रीहि समास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
-
बहुव्रीहि समास की परिभाषा क्या है?
समास का वह रूप, जिसमें दो पद (प्रथम पद तथा द्वितीय पद) मिलकर तीसरा पद (तृतीय पद) का निर्माण करते है, तब वह तीसरा पद (तृतीय पद) प्रधान होता है, वह ही ‘बहुव्रीहि समास’ कहलाता है।
बहुव्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर ‘वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह‘ आदि आते है। -
बहुव्रीहि समास के कितने भेद है?
बहुव्रीहि समास के कुल 5 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. समानाधिकरण बहुव्रीहि समास
2. व्याधिकरण बहुव्रीहि समास
3. तुल्ययोग बहुव्रीहि समास
4. व्यतिहार बहुव्रीहि समास
5. प्रादी बहुव्रीहि समास
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
अगर इस लेख के द्वारा आपको किसी भी प्रकार की जानकारी पसंद आई हो तो, इस लेख को अपने मित्रों व परिजनों के साथ फेसबुक पर साझा अवश्य करें और हमारे वेबसाइट को सबस्क्राइब कर ले।