बरवै छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Barvai Chhand Ki Paribhasha in Hindi

बरवै छंद की परिभाषा : Barvai Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘बरवै छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप बरवै छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

बरवै छंद की परिभाषा : Barvai Chhand in Hindi

बरवै छंद एक ‘अर्द्धसममात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते है। इसके प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ होती है।

बरवै छंद के द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण के अंत में जगण (121) अथवा तगण (221) आकर छंद को सुरीला बना देता है।

बरवै ‘अवधी भाषा’ का व्यक्तिगत छन्द है, जो सदैव श्रृंगार रस के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें कुल 19 मात्राएँ होती है, जिसमें 12 एवं 7 पर यति अर्थात विराम होता है।

बरवै छंद के उदाहरण

बरवै छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

वाम अंग शिव शोभित,
शिवा अदार।
सरद सुवारिद में जनु,
तड़ित विहार।।

स्पष्टीकरण:-

वाम अंग शिव शोभित, शिवा अदार।
S I    S I    I I    S I I       I S     I S I = 12 + 7 = 19

अतः उपरोक्त पंक्तियाँ ‘बरवै छंद’ का उदाहरण है।

उदाहरण 2

चितवनि बसति करनखियनु,
अखियनु बीच।

स्पष्टीकरण:-

चितवनि बसति करखियनु, अखियनु बीच।
I I I I      I I I      I I I I I         I I I I     S I = 12 + 7 = 19

अतः उपरोक्त पंक्तियाँ ‘बरवै छंद’ का उदाहरण है।

उदाहरण 3

अवधि शिला का उर पर,
था गुरुभार।
तिल-तिल काट रही थी,
दृग जल धार।।

स्पष्टीकरण:-

अवधि शिला का उर पर, था गुरुभार।
I I I    I S     S   I I  I I     S  I I S I = 12 + 7 = 19

अतः उपरोक्त पंक्तियाँ ‘बरवै छंद’ का उदाहरण है।

उदाहरण 4

काम कष्ट में आता,
सच्चा मित्र।
आँखें मोहित करता,
अच्छा चित्र।।

उदाहरण 5

सुनके संगीत मधुर,
बनो निरोग।
सौंदर्य बढ़ाए वय,
करो प्रयोग।।

उदाहरण 6

बोलो शब्द तोलकर,
बनो सुजान।
वापिस तीर न आए,
छुटा कमान।।

उदाहरण 7

आँख मिलेंगी सबसे,
रख व्यवहार।
फूल सभी जन चाहें,
एक न ख़ार।।

बरवै छंद से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. बरवै छंद की परिभाषा क्या है?

    बरवै छंद एक ‘अर्द्धसममात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते है। इसके प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ होती है।
    बरवै छंद के द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण के अंत में जगण (121) अथवा तगण (221) आकर छंद को सुरीला बना देता है।
    बरवै ‘अवधी भाषा’ का व्यक्तिगत छन्द है, जो सदैव श्रृंगार रस के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें कुल 19 मात्राएँ होती है, जिसमें 12 एवं 7 पर यति अर्थात विराम होता है।

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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