भयानक रस की परिभाषा, भेद, अवयव और उदाहरण

Bhayanak Ras Ki Paribhasha in Hindi

भयानक रस की परिभाषा : Bhayanak Ras in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘भयानक रस की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप भयानक रस की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

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भयानक रस की परिभाषा : Bhayanak Ras in Hindi

जब किसी भयानक व्यक्ति अथवा वस्तु को देखने तथा उससे सम्बंधित वर्णन सुनने, किसी दुखद घटना का स्मरण करने व किसी बलवान शत्रु को देखने से मन में जो व्याकुलता और भय उत्पन्न होता है, उसे भयानक रस कहते है। भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय’ है।

साधारण शब्दों में, जब किसी भयानक अथवा अनिष्टकारी व्यक्ति व वस्तु को देखने व उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है, उसे भय कहते है।

उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसे भयानक रस कहते है। इसके अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिन्ता, आदि के भाव उत्पन्न होते है।

  • हिन्दी काव्य के मान्य नवरसों में से एक रस ‘भयानक रस’ है।
  • भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ व ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। अर्थात भयोत्पादक वस्तुओं के दर्शन अथवा श्रवण से व शत्रु आदि के विद्रोहपूर्ण आचरण से है, तब वहाँ भयानक रस होता है।
  • हिन्दी के आचार्य सोमनाथ ने ‘रसपीयूषनिधि’ में भयानक रस की निम्नलिखित परिभाषा दी है:-

‘सुनि कवित्त में व्यंगि भय जब ही परगट होय।
तहीं भयानक रस बरनि कहै सबै कवि लोय।।’

भयानक रस के अवयव (उपकरण)

भयानक रस के अवयव निम्न प्रकार है:-

स्थाई भावभय
आलंबन (विभाव)भयावह जंगली जानवर अथवा बलवान शत्रु, पाप अथवा पाप-कर्म, सामाजिक तथा अन्य बुराइयां, हिंसक जीव-जंतु, प्रबल अन्यायकारी व्यक्ति, भयंकर अनिष्टकारी वस्तु, देवी संकट, भूत-प्रेत, आदि।
उद्दीपन (विभाव)निस्सहाय और निर्भय होना, शत्रुओं अथवा हिंसक जीवों की चेष्टाएँ, आश्रय की असहाय अवस्था, आलंबन की भयंकर चेष्टाएँ, निर्जन स्थान, अपशगुन, बद-बंध, आदि।
अनुभावस्वेद, कंपन, रोमांच, हाथ-पैर कांपना, नेत्र विस्फार, भागना, स्वर भंग, उंगली काटना, जड़ता, स्तब्धता, रोमांच, कण्ठावरोध, घिग्घी बंधना, मूर्छा, चित्कार, वैवर्ण्य, सहायता के लिए इधर-उधर देखना, शरण ढूंढना, दैन्य-प्रकाशन रुदन, आदि।
संचारी भावत्रास, ग्लानि, शंका, चिंता, आवेग, अमर्ष, स्मृति, अपस्मार, मरण, घृणा, शोक, भरम, दैन्य, चपलता, किंकर्तव्यमूढ़ता, निराशा, आशा, आदि।

भयानक रस का स्थायी भाव

भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय‘ है।

भयानक रस के वर्ण तथा देवता

  • भरतमुनि ने भयानक रस का रंग ‘काला’ तथा देवता ‘कालदेव’ को माना है।
  • भानुदत्त ने भयानक रस का वर्ण ‘श्याम’ और देवता ‘यम’ को माना है।
  • ‘नाट्यशास्त्र’ में भयानक रस को प्रधान रसों में न परिगणित कर, वीभत्स रस से उत्पत्ति बताई है। वीभत्स रस का स्थायी भाव ‘जुगुत्सा’ है।
  • अप्रिय वस्तु के दर्शन, स्पर्शन व स्मरण से उत्पन्न घृणा का भाव ‘जुगुत्सा’ कहलाता है। अपराध, विकृत रव अथवा विकृत प्राणी से उत्पन्न मनोविकार भय कहा गया है।

भयानक रस की उत्पत्ति

भरतमुनि ने वीभत्स के दर्शन से भयानक की उत्पत्ति स्वीकार की है। लेकिन, आधुनिक मनोविज्ञान ने भय एवं जुगुत्सा, दोनों को प्रवृत्ति प्रेरित प्रधान भावों में परिगणित किया है।

असल में, भयानक को वीभत्स से उत्पन्न होने का कोई समीचीन मनोवैज्ञानिक आधार दिखाई नहीं देता है। बल्कि, भय घृणा की तुलना में अधिक आदिम मनोवृत्ति का दिखाई देता है।

नृतत्त्वविदों ने मानव विकास का अध्ययन करते हुए भय को मानवीय संस्कृति के एक बहुत बड़े भाग का प्रधान कारण सिद्ध किया है।

भरतमुनि ने भयानक के कारणों में विकृत शब्द वाले प्राणियों का दर्शन, गीदड़, उलूक, व्याकुलता, ख़ाली घर, वन-प्रदेश, मरण, सम्बन्धियों की मृत्यु अथवा बंधन का दर्शन, श्रवण अथवा कथन, आदि को निर्दिष्ट किया है।

जबकि, वीभत्स रस के विभावों में अमनोहर तथा अप्रिय का दर्शन, अनिष्टा का श्रवण, दर्शन व कथन, आदि को परिगणित किया है। इस उल्लेख से ही स्पष्ट होता है कि भय के उद्रेक के लिए, जुगुत्सा की अपेक्षा, अधिक अवसर तथा परिस्थितियां उपलब्ध है।

अर्थात, भय का क्षेत्र जुगुत्सा की तुलना में अधिक व्यापक है। इसीलिए, भय जुगुत्सा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली मनोविकार सिद्ध होता है। पुन: भय के मूल में संरक्षण की प्रवृत्ति कार्यशील होती है।

प्राणिमात्र में भय वर्तमान रहता है तथा मन पर भय का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए, भयानक रस को वीभत्स रस से उत्पन्न बताना युक्तिसंगत नहीं है।

‘साहित्यदर्पण’ में भयानक रस को ‘स्त्रीनीचप्रकृति:’ माना गया है। इसका अर्थ यह है कि:- भयानक रस के आश्रय स्त्री, नीच प्रकृति वाले व्यक्ति, बालक तथा कोई भी कातर प्राणी होते है:- ‘भयानको भवेन्नेता बाल: स्त्रीकातर: पुन:’।

अपराध करने वाला व्यक्ति भी अपने अपराध के ज्ञान से भयभीत होता है। भयानक के आलम्बन व्याघ्र आदि हिंसक जीव, शत्रु, निर्जन प्रदेश, स्वयं किया गया अपराध, आदि है।

शत्रु की चेष्टाएँ, असहायता, आदि उद्दीपन है तथा स्वेद, विवर्णता, कम्प, अश्रु, रोमांच, आदि अनुभाव है। त्रास, मोह, जुगुत्सा, दैन्य, संकट, अपस्मार, चिन्ता, आवेग, आदि भयानक रस के व्यभिचारी भाव है।

कुलपति का वर्णन

हिन्दी के आचार्य कुलपति ने इन सभी उपादानों को एक जगह समेटकर भयानक रस का निम्न प्रकार वर्णन किया है:-

‘बाघ ब्याल विकराल रण,
सूनो बन गृह देख।
जे रावर अपराध पुनि,
भय विभाव यह लेख।
कम्प रोम प्रस्वेद पुनि,
यह अनुभाव बखानि।
मोह मूरछा दीनता,
यह संचारी जानि।’

भयानक रस के भेद

भानुदत्त ने ‘रसतरंगिणी’ में भयानक रस के कुल 2 भेद किये है, जो कि निम्न प्रकार है:-

भयानक रस के भेद
स्वनिष्ठ
परनिष्ठ

1. स्वनिष्ठ भयानक रस

जहाँ पर भय का आलम्बन स्वयं आश्रय में रहता है, वहाँ स्वनिष्ठ भयानक होता है।

स्वनिष्ठ भयानक रस का उदाहरण

स्वनिष्ठ भयानक रस का उदाहरण निम्न प्रकार है:-

‘कर्तव्य अपना इस समय होता न मुझको ज्ञात है।
कुरुराज चिन्ताग्रस्त मेरा जल रहा सब गात है।
अतएव मुझको अभय देकर आप रक्षित कीजिए।
या पार्थ-प्रण करने विफल अन्यत्र जाने दीजिए।’

स्पष्टीकरण

स्थायी भावभय
आलंबन (विभाव)अभिमन्यु का अपराध
उद्दीपन (विभाव)अर्जुन का प्रण
अनुभावजयद्रथ का चिन्तित होना
संचारी भावत्रास

अपने वध के लिए अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ ने यह वचन दुर्योधन से कहे है। इन सभी उपादानों से पुष्ट होकर भयानक रस की निष्पत्ति में समर्थ हुआ है।

2. परनिष्ठ भयानक रस

जहाँ पर भय का आलम्बन आश्रय में वर्तमान न होकर उससे बाहर पृथक होता है अर्थात आश्रय स्वयं अपने किये अपराध से ही डरता है, तो वहाँ पर परनिष्ठ भयानक रस होता है।

परनिष्ठ भयानक रस का उदाहरण

परनिष्ठ भयानक रस का उदाहरण निम्न प्रकार है:-

‘एक ओर अजगरहि लखि,
एक ओर मृगराय।
बिकल बटोही बीच ही,
परयौ मूरछा खाय।।’

स्पष्टीकरण

स्थायी भावभय
आलंबन (विभाव)अजगर व सिंह
उद्दीपन (विभाव)अजगर व सिंह की भयानक आकृति तथा चेष्टाएँ।
अनुभावमूर्च्छा, विकलता, आदि।
संचारी भावस्वेद, कम्प, रोमांच, आदि।

उपरोक्त सभी उपादानों से पुष्ट होकर भयानक रस की निष्पत्ति में समर्थ हुआ है।

कहीं-कहीं भय स्थायी होने पर भी भयानक रस नहीं होता है। क्योंकि, वहाँ पर कवि का अभीष्ट कुछ और भी होता है। जैसे:-

‘सूवनि साजि पढ़ावतु है निज फौज लखे मरहट्ठन केरी।
औरंग आपुनि दुग्ग जमाति बिलोकत तेरिए फौज दरेरी।।
साहि-तनै सिवसाहि भई भनि भूषन यों तुव धाक घनेरी।
रातहु द्योस दिलीस तकै तुव सेन कि सूरति सूरति घेरी।।’

स्पष्टीकरण

स्थायी भावभय
आलंबन (विभाव)शिवाजी
उद्दीपन (विभाव)शिवाजी के पराक्रम का स्मरण।
अनुभावऔरंगज़ेब को अपनी ही सेना में शिवाजी की सेना का भ्रम होना।
संचारी भावचिन्ता, त्रास, आदि।

उपरोक्त सभी सभी अवयवों से भय स्थायी की अभिव्यक्ति होती है। लेकिन, कवि का अभीष्ट यहाँ शिवाजी की प्रशंसा करना है।

इसलिए, यहाँ पर भय ‘राजविषयक रतिभाव’ में मिल गया है और गौण बन गया है। इसीलिए, यहाँ पर भयानक रस की निष्पत्ति नहीं मानी जाएगी।

भयानक रस का वर्णन

भयानक रस का वर्णन कुछ इस प्रकार है:-

  • भयानक रस का श्रृंगार रस, वीर रस, रौद्र रस, हास्य रस व शान्त रस के साथ विरोध बताया गया है।
  • वीरगाथात्मक रासों ग्रन्थों में युद्ध, रण, प्रयाण, विजय, आदि अवसरों पर भयानक रस का काफी सुन्दर वर्णन मिलता है।
  • ‘रामचरितमानस’ में लंका काण्ड में भयानक रस के प्रभावशील चित्र अंकित है। हनुमानजी द्वारा लंका दहन का प्रसंग भयानक रस की प्रतीति के लिए पठनीय है।
  • रीतिकालीन वीर काव्यों में भी भय का संचार करने वाले काफी प्रसंग है। भूषण की रचनाएँ इस सम्बन्ध में विशेष महत्त्वपूर्ण है।

भयानक रस का लेखकों द्वारा प्रयोग

  • भारतेन्दु द्वारा प्रणीत ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक में शमशान वर्णन के प्रसंग में भयानक रस का सजीव प्रतिफलन हुआ है। इस सम्बन्ध में “रुरुआ चहुँ दिसि ररत डरत सुनिकै नर-नारी” से प्रारम्भ होने वाला पद्य-खण्ड द्रष्टव्य है।
  • वर्तमानकाल में मैथिलीशरण गुप्त, श्यामनारायण पांडेय, ‘दिनकर,’ आदि की अनेक रचनाओं में भयानक रस का उल्लेखनीय प्रयोग हुआ है।
  • छायावादी काव्य की प्रकृति के भयानक रस प्रतिकूल है लेकिन, नवीन काव्य में वैचित्र्य के साथ कुछ-कुछ भयानक रस की भी झलक दिखाई देती है।

भयानक रस के उदाहरण

भयानक रस के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

उदाहरण:- 1

‘अखिल यौवन के रंग उभार,
हड्डियों के हिलाते कंकाल।
कचो के चिकने काले, व्याल,
केंचुली, काँस, सिबार।।’

उदाहरण:- 2

‘एक ओर अजगर हिं लखि,
एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही,
पद्यो मूर्च्छा खाय।।’

उदाहरण:- 3

‘उधर गरजती सिंधु लहरिया,
कुटिल काल के जालो सी।
चली आ रही फेन उंगलिया,
फन फैलाए ब्यालो सी।।’

उदाहरण:- 4

‘विनय न मानत जलधि जड़,
गये तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब,
भय बिनु होहि न प्रीति।।’

भयानक रस से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. भयानक रस की परिभाषा क्या है?

    जब किसी भयानक व्यक्ति अथवा वस्तु को देखने तथा उससे सम्बंधित वर्णन सुनने, किसी दुखद घटना का स्मरण करने व किसी बलवान शत्रु को देखने से मन में जो व्याकुलता और भय उत्पन्न होता है, उसे भयानक रस कहते है। भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय’ है।
    साधारण शब्दों में, जब किसी भयानक अथवा अनिष्टकारी व्यक्ति व वस्तु को देखने व उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है, उसे भय कहते है।

  2. भयानक रस का स्थाई भाव क्या है?

    (अ). घृणा
    (ब). रति
    (स). हास
    (द). भय
    उत्तर:- भय

  3. निम्नलिखित में से ‘हाथ पैर काँपना’ क्या है?

    (अ). अनुभाव
    (ब). विभाव
    (स). संचारी भाव
    (द). उद्दीपन विभाव
    उत्तर :- अनुभाव

  4. ‘भय’ कौनसे रस का स्थाई भाव है?

    (अ). करुण रस
    (ब). वीर रस
    (स). अदभूत रस
    (द). भयानक रस
    उत्तर:- भयानक रस

  5. निम्नलिखित में से ‘चिंता’ क्या है?

    (अ). उद्दीपन विभाव
    (ब). आलंबन
    (स). संचारी भाव
    (द). अनुभाव
    उत्तर:- संचारी भाव

  6. निम्नलिखित में से ‘भूत-प्रेत’ क्या है?

    (अ). अनुभाव
    (ब). संचारी भाव
    (स). विभाव
    (द). आलंबन
    उत्तर:- आलंबन

  7. ‘शत्रुओं अथवा हिंसक जीवों की चेस्टाएँ’ में कौनसा भाव है?

    (अ). आलंबन
    (ब). उद्दीपन विभाव
    (स). अनुभाव
    (द). विभाव
    उत्तर:- उद्दीपन विभाव

  8. निम्नलिखित में से ‘मूर्छा’ क्या है?

    (अ). अनुभाव
    (ब). उद्दीपन विभाव
    (स). आलंबन
    (द). विभाव
    उत्तर:- अनुभाव

  9. भयानक वस्तुओं को देखकर अथवा भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों व घटनाओं को देखकर मन में कौनसा भाव उत्पन्न होता है?

    (अ). हास
    (ब). रति
    (स). शोक
    (द). भय
    उत्तर:- भय

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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