चौरी चौरा कांड कब हुआ? व किसके द्वारा द्वारा किया गया? [पूरी जानकारी]

चौरी चौरा कांड : Chauri Chaura Kand:- आज के इस लेख में हमनें Chauri Chaura Kand से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की है।
यदि आप Chauri Chaura Kand से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
चौरी चौरा कांड : Chauri Chaura Kand
चौरी चौरा कांड कब हुआ? किसने किया? कैसे हुआ? इन सभी प्रश्नों के जवाब जानने से पहले आपको इससे जुड़ी कुछ बातें अवश्य जान लेनी चाहिए।
इसके लिए हम आपको इतिहास में थोड़ा और पीछे लेकर चलते है। तो यह बात प्रथम विश्व युद्ध के समय की है। इसकी शुरुआत सन 1914 में हुई।
इसमें अंग्रेज, मित्र राष्ट्र की तरफ से भाग ले रहे थे। उस समय भारत ब्रिटिश राष्ट्र का हिस्सा हुआ करता था। उस समय अंग्रेजों ने भारत के लोगों को प्रथम विश्व युद्ध मे हिस्सा लेने के लिए कहा।
इस समय भारत के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना अपने चरम पर थी। भारत के लोग ये मानते थे कि यदि उन्होंने इस युद्ध मे अंग्रेजों का साथ दिया, तो शायद अंग्रेजी हुकूमत भारत के लोगों के प्रति उदारवादी हो जाये।
अंग्रेजी हुकूमत से लोकतंत्र के वायदे मिलने के बाद भारत के सैनिकों ने इसमें हिस्सा लिया। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भारत के लोगों को अंग्रेजों से काफी उम्मीद थी।
लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के लोगों पर अत्याचार कम नहीं किया। बल्कि रोलेट एक्ट से भारत के लोगों पर और अधिक अत्याचार किया।
रॉलेक्ट एक्ट के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत बिना कोई मुकदमा चलाये किसी भी व्यक्ति को जेल मे डाल सकती थी।
इन सभी बातों से भारत के लोगों मे असंतोष की भावना उत्पन होने लगी। इस कारण से महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन की शुरुआत 4 सितंबर 1920 के दिन महात्मा गाँधी जी के द्वारा कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन से शुरू किया गया।
यह सबसे पहला व सबसे बड़ा जन-आंदोलन था। गाँधीजी ने अहिंसा को इस आंदोलन का सबसे बड़ा हथियार बताया था।
उनके अनुसार अगर इस आंदोलन को अहिंसापूर्ण तरीके से चलाया जाये तो समय आने पर अंग्रेज स्वयं ही वापस चले जायेंगे।
इस आंदोलन में भारतीयों ने अंग्रेजों का किसी भी काम मे सहयोग न देने का प्रण लिया गया। सन 1922 तक यह आंदोलन सम्पूर्ण भारत देश में आग की तरह फैल गया।
चौरी चौरा कांड
असहयोग आंदोलन को सबसे बड़ा झटका उस समय लगा, जब 4 फरवरी 1922 के दिन गोरखपुर के चौरी चौरा नामक स्थान पर पुलिस ने क्रांतिकारियों की एक भीड़ पर लाठी चार्ज कर दिया।
इस लाठी चार्ज में 3 लोगों की मृत्यु हो गयी। इससे गुस्साई भीड़ ने उस पुलिस स्टेशन को चारों तरफ से घेर कर उसमे आग लगा दी।
इसमें 23 पुलिस वालों की आग से जलकर मौत हो गई। जब यह खबर गाँधीजी को पता चली तो उन्हें इसका बहुत दुःख हुआ।
इस घटना के बाद उन्होंने 12 फरवरी 1922 के दिन असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया। इसके लिए गाँधीजी को पूरे भारत के लोगों के साथ-साथ कांग्रेस के लोगों का भी विरोध सहना पड़ा।
गाँधीजी ने उन सभी लोगों से स्वयं को पुलिस के हवाले करने का आग्रह किया। गाँधीजी पर भी देशद्रोह का मुकदमा चला।
गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने की बाद उन्होंने अपने एक लेख “चोरा चोरी का अपराध” में लिखा था कि यदि वह इस आंदोलन को वापस नहीं लेते, तो देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी घटनाएं हो सकती थी।
इसके लिए उन्होंने उन पुलिस वालों को जिम्मेदार ठहराया। उनके अनुसार पुलिस वालों ने ही भीड़ को उत्तेजित कर दिया था। जिसकी वजह से यह घटना हुई।
सभी लोगों ने गाँधीजी के कहने पर अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। इन सभी का मुकदमा मदन मोहन मालवीय ने लड़ा।
इनमें से 151 लोगों को फांसी से बचा लिया गया। 19 लोगों को 2 जुलाई से 11 जुलाई 2023 के मध्य समय में फांसी दे दी गयी।
14 लोगों को आजीवन कारावास व 10 लोगों को सश्रम कारावास दे दिया गया। इसका नेतृत्व महान सेनानी महावीर यादव ने किया।
चौरी चौरा शहीद स्मारक
गोरखपुर ज़िले के लोगों ने सन 1971 में चौरी चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया। इस समिति ने वर्ष 1973 में यह 12.2 मीटर ऊंची एक मीनार का निर्माण किया।
इस मीनार के दोनों तरफ शहीदों को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया है। इसे उस समय 13,500 रूपये में बनाया गया था।
जिससे वहाँ के लोगों से चंदा लेकर बनाया गया था। उसके बाद भारत सरकार ने वहाँ एक नया स्मारक बनाया। इसे हम अब मुख्य स्मारक के नाम से जानते है।
इस स्मारक में शहीदों का नाम लिखा गया है। आज भारत में इन शहीदों के नाम पर 2 रेलगाड़ी भी चलायी गयी है। जिनका नाम शहीद एक्सप्रेस और चौरी चौरा एक्सप्रेस है।
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान कि गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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