छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

छंद की परिभाषा : Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
छंद की परिभाषा : Chhand in Hindi
मात्रा और वर्ण आदि के विचार से होने वाली वाक्य-रचना को ‘छंद’ कहते है। ‘छंद’ शब्द ‘चद्’ धातु से बना है। छंद शब्द का अर्थ ‘आह्लादित करना’ (खुश करना) है। यह आह्लाद वर्ण अथवा मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है।
साधारण शब्दों में, वर्णों अथवा मात्राओं की नियमित संख्या के विन्यास से जो आह्लाद पैदा होता है, उसे ‘छंद’ कहते है। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऋग्वेद’ में मिलता है।
जिस प्रकार ‘गद्य’ का नियामक ‘व्याकरण’ है, ठीक उसी प्रकार ‘पद्य’ का नियामक ‘छंद शास्त्र’ है। छंद में कुल 4 चरण होते है। छंद-शास्त्र प्रणेता ‘आचार्य पिंगल ऋषि’ माने जाते है। इसलिए, छंद को ‘पिंगल’ भी कहा जाता है।
आचार्य पिंगल ऋषि के ‘छंदसूत्र’ में छंद का सुसम्बद्ध वर्णन निहित है, इसलिए इसे छंदशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जाता है। ‘छंदशास्त्र’ आठ अध्यायों का एक सूत्र ग्रंथ है।
छंद के अंग
छंद के कुल 7 अंग है, जो कि निम्नलिखित है:-
छंद के अंग |
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चरण/पद/पाद |
वर्ण और मात्रा |
संख्या, क्रम और गण |
लघु और गुरु |
गति |
यति/विराम |
तुक |
1. चरण/पद/पाद
छंद में कुल 4 भाग होते हैं, प्रत्येक को चरण/पद/पाद कहते है। साधारण शब्दों में छंद के चतुर्थांश भाग को ‘चरण’ कहते है। एक छंद में 4 से अधिक भी चरण हो सकते है, लेकिन प्राय: 4 चरण ही होते है।
कुछ छंदों में 4 चरण होते है, लेकिन वह सिर्फ 2 पंक्तियों में ही लिखें जाते है। जैसे:- ‘दोहा’ एवं ‘सोरठा’। इस प्रकार के छंदों की प्रत्येक पंक्ति को ‘दल’ कहते है।
चरण के भेद
चरण के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
चरण के भेद |
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सम चरण |
विषम चरण |
(i). विषम चरण
छंद के प्रथम तथा तृतीय चरण को ‘विषम चरण’ कहते है।
(ii). सम चरण
छंद के द्वितीय तथा चतुर्थ चरण को ‘सम चरण’ कहते है।
2. वर्ण और मात्रा
स्वर मुख्य रूप से कुल 2 प्रकार के होते है:- ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर। दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दुगुना समय लगता है। ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर को छंदशास्त्र में ‘मात्रा’ कहते है।
यहाँ स्वर के साथ व्यंजन भी समाहित होते है, लेकिन गणना सिर्फ मात्राओं की होती है। जैसे:- ‘श्थ्य’ शब्द में ‘श्-थ्-य्’ तीन व्यंजन और ‘अ’ स्वर है।
यहाँ ‘अ’ स्वर के कारण एक मात्रा ही मानी जाएगी। इसी प्रकार दीर्घ स्वर वाले वर्णों की दो मात्राएँ मानी जाती है। जैसे:- ‘नाना’ शब्द में कुल दो व्यंजन और चार मात्राएँ है।
वर्ण को ‘अक्षर’ भी कहते है। स्वर की भांति वर्ण भी कुल 2 प्रकार के होते है:- ह्रस्व वर्ण और दीर्घ वर्ण। लेकिन, वर्णों की गणना करते समय दीर्घ वर्ण को एक ही माना जाता है। जैसे:- ‘चाचा’ शब्द में कुल दो वर्ण और चार मात्राएँ है।
3. संख्या, क्रम और गण
मात्राओं और वर्णों की गणना को ‘संख्या’ कहते है तथा लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को ‘क्रम’ कहते है। संख्या और लघु-गुरु के नियत क्रम से तीन वर्णों के समूह को ‘गण’ कहते है। गणों की कुल संख्या 8 है। गणों की पहचान निम्नलिखित सूत्र के द्वारा की जाती है:-
। ऽ ऽ ऽ । ऽ । । । ऽ ‘यमाताराजभानसलगा’ |
इसमें प्रथम 8 अक्षर गणों के परिचायक है तथा अंतिम 2 अक्षर ‘लघु गुरु’ के परिचायक है। इन्हीं गणों के आधार पर वर्णिक छंदों की पहचान की जाती है।
इस सूत्र के अंतिम वर्ण ‘ल’ तथा ‘ग’ छंदशास्त्र में ‘दशाक्षर’ कहलाते है। सूत्र के आधार पर 8 गण तथा लघु-गुरु क्रम निम्नलिखित है:-
गण | चिह्न | उदाहरण |
---|---|---|
यगण | ।ऽऽ | यशोदा |
मगण | ऽऽऽ | आजादी |
तगण | ऽऽ। | तालाब |
रगण | ऽ।ऽ | नीरजा |
जगण | ।ऽ। | जवान |
भगण | ऽ।। | भारत |
नगण | ।।। | कमल |
सगण | ।।ऽ | वसुधा |
यमाताराजभानसलगा
‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र से किसी भी गण की मात्रा अथवा चिह्न की जानकारी प्राप्त हो जाती है। यदि किसी गण के बारे में जानकारी प्राप्त करनी है, तो उस गण के आगे के दो अक्षरों को जोड़कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
जैसे:- ‘भगण’ गण का स्वरूप जानने के लिए ‘भा’ और उसके आगे के दो अक्षर ‘n स’ = भानस (ऽ।।) लेकर लघु-गुरु जाना जा सकता है।
4. लघु और गुरु
ह्रस्व को ‘लघु’ तथा दीर्घ को ‘गुरु’ कहते है। ह्रस्व मात्रा का चिह्न ‘लघु (।)’ तथा दीर्घ मात्रा का चिह्न ‘गुरु (ऽ)’ होता है।
लघु और गुरु की गणना के नियम
लघु और गुरु की गणना के नियम निम्नलिखित है:-
(i). लघु की गणना के नियम
लघु की गणना के समस्त नियम निम्नलिखित है:-
- ‘अ, इ, उ’ – ये सभी स्वर लघु है। जैसे:- कमल (।।।) में तीन लघु वर्ण है।
- ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु होते है। जैसे:- कि (।), कु (।), के (।), आदि।
- हलंत व्यंजन लघु माने जाते है। जैसे:- अहम् में ‘म्’ को लघु (।) माना जाएगा।
- चंद्र बिंदु वाले वर्ण लघु होते है। जैसे:- हँसना में ‘हँ’ को लघु (।) माना जाएगा।
- यदि किसी शब्द के संयुक्ताक्षर में दो अर्द्ध वर्ण होते है, तो दोनों अर्द्ध वर्णों को लघु माना जाता है। जैसे:- उज्ज्वल में ‘ज्ज्’ को लघु (।) माना जाएगा।
- यदि किसी शब्द का संयुक्ताक्षर आरंभ में आता है, तो संयुक्ताक्षर के अर्द्ध वर्ण की मात्रा नहीं गिनी जाएगी। जैसे:- ‘व्यवहार’ में ‘व्य’ को लघु (।) माना जाएगा।
- यदि दो गुरु वर्णों के मध्य में कोई अर्द्ध वर्ण आता है, तो उस अर्द्ध वर्ण की मात्रा नहीं गिनी जाएगी। जैसे:- ‘आत्मा’ (ऽऽ) में ‘त्’ की कोई भी मात्रा नहीं गिनी जाएगी।
(ii). गुरु की गणना के नियम
गुरु की गणना के समस्त नियम निम्नलिखित है:-
- ‘आ, ई, ऊ, ऋ’ – ये सभी स्वर गुरु है। जैसे:- ‘दादी’ (ऽऽ) में ‘दा’ और ‘दी’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्णों को गुरु माना जाता है। जैसे:- ‘कौन’ में ‘कौ’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- ‘ए, ऐ, ओ, औ’ – ये सभी संयुक्त स्वर गुरु है। जैसे:- ‘ऐसा’ में ‘ऐ’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- संयुक्त मात्राओं से युक्त वर्णों को गुरु माना जाता है। जैसे:- ‘नौका’ में ‘नौ’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- यदि किसी शब्द के मध्य अथवा अंत में संयुक्ताक्षर आता है, तो संयुक्ताक्षर के पहले वाला वर्ण ‘गुरु’ माना जाता है। जैसे:- ‘भक्त’ में ‘भ’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- अनुस्वार से युक्त वर्ण गुरु माने जाते है। जैसे:- ‘अंत’ में ‘अं’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- विसर्ग चिह्न से युक्त वर्ण गुरु माने जाते है। जैसे:- ‘दुःख’ में ‘दु:’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा।
- रेफ के पहले का वर्ण गुरु माने जाता है, लेकिन यदि ‘र’ किसी शब्द में नीचे जुड़ा है, तो वह लघु माना जाता है। जैसे:- ‘मर्म’ में ‘र्म’ को गुरु (ऽ) माना जाएगा, जबकि ‘नक्षत्र’ में ‘त्र’ को लघु (।) माना जाएगा।
5. गति
छंद के ‘पढ़ने के प्रवाह’ अथवा ‘लय’ को गति कहते है। गति का महत्त्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है।
इनकी महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्णिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित रहता है, लेकिन मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नहीं रहता है।
पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश नहीं रहता है। मात्राओं की संख्या ठीक होने पर भी चरण की गति (प्रवाह) में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जैसे:- ‘दिवस का अवसान था समीप’ वाक्य में गति नहीं है, जबकि ‘दिवस का अवसान समीप था’ वाक्य में गति है।
चौपाई, अरिल्ल व पद्धरि:- इन तीनों छंदों के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है, लेकिन गति भेद से ये छंद परस्पर भिन्न हो जाते है।
इसलिए, मात्रिक छंदों के निर्दोष प्रयोग के लिए गति का परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। गति का परिज्ञान भाषा की प्रकृति, नाद के परिज्ञान एवं अभ्यास पर निर्भर करता है।
6. यति/विराम
छंद में नियमित वर्ण अथवा मात्रा पर साँस लेने के लिए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान को ‘यति’ अथवा ‘विराम’ कहते है। छोटे छंदों में साधारणतः ‘यति’ चरण के अंत में होती है, लेकिन बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक ‘यति’ अथवा ‘विराम’ होते है।
‘यति’ का निर्देश प्रायः छंद के लक्षण (परिभाषा) में ही कर दिया जाता है। जैसे:- मालिनी छंद में पहली यति 8 वर्णों के बाद तथा दूसरी यति 7 वर्णों के बाद पड़ती है।
7. तुक
छंद के चरण के अंत की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को ‘तुक’ कहते है।
जिस छंद के अंत में ‘तुक’ होता है, उसे ‘तुकान्त छंद’ कहते है, जबकि जिस छंद के अन्त में ‘तुक’ नहीं होता है, उसे ‘अतुकान्त छंद’ कहते है। अतुकान्त छंद को अंग्रेज़ी भाषा में ‘ब्लैंक वर्स’ कहते है।
तुक के भेद
तुक के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
तुक के भेद |
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तुकांत कविता |
अतुकांत कविता |
(i). तुकांत कविता
जब चरण के अंत में वर्णों की आवृति होती है, तो उसे ‘तुकांत कविता’ कहते है। पद्य प्राय: ‘तुकांत’ होते हैं।
तुकांत कविता के उदाहरण
तुकांत कविता के उदाहरण निम्नलिखित है:-
हमको बहुत ई भाती हिंदी।
हमको बहुत है प्यारी हिंदी।
(ii). अतुकांत कविता
जब चरण के अंत में वर्णों की आवृति नहीं होती है, तो उसे ‘अतुकांत कविता’ कहते है। नई कविता ‘अतुकांत’ होती है।
अतुकांत कविता के उदाहरण
अतुकांत कविता के उदाहरण निम्नलिखित है:-
काव्य सर्जक हूँ
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।
छंद के भेद
छंद के कुल 4 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
छंद के भेद |
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वर्णिक छंद |
मात्रिक छंद |
वर्णित वृत्त छंद |
मुक्त छंद |
1. वर्णिक छंद
वह छंद, जो वर्णों के आधार पर बनते है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते है। वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
मात्रिक छंद में मात्राओं का निश्चित क्रम होता है, जबकि वर्णिक छंद में वर्णों का निश्चित क्रम होता है।
वर्णिक छंद के भेद
वर्णिक छंद के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
वर्णिक छंद के भेद |
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साधारण वर्णिक छंद |
दंडक वर्णिक छंद |
(i). साधारण वर्णिक छंद
1 से 26 वर्ण तक के चरण रखने वाले को छंदों को ‘साधारण वर्णिक छंद’ कहते है।
साधारण वर्णिक छंद के उदाहरण
साधारण वर्णिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
11 वर्णों वाले | इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, शालिनी, भुजंगी, आदि। |
12 वर्णों वाले | द्रुतविलम्बित, तोटक, वंशस्थ, आदि। |
14 वर्ण वाला | वसंततिलका |
15 वर्ण वाला | मालिनी |
17 वर्ण वाले | मंद्रक्रांता, शिखरिणी, आदि। |
19 वर्ण वाला | शार्दूलविक्रीडित |
22 से 26 वर्ण वाला सवैया | मत्तगयंद, मदिरा, सुमुखी, मुक्तहरा, द्रुमिल, गंगोदक, किरीट, सुंदरी, अरविंद, आदि। |
(ii). दंडक वर्णिक छंद
26 वर्ण से अधिक चरण रखने वाले छंदों को दंडक वर्णिक छंद’ कहते है।
दंडक वर्णिक छंद के उदाहरण
दंडक वर्णिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
26 वर्ण से अधिक वाले | मनहरण, घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, आदि। |
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प्रमुख वर्णिक छंद
सभी प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित है:-
(i). सवैया छंद
सवैया छंद एक ‘वर्णिक संवृत्त छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ‘लयमूलक छंद’ है। इस छंद में आरंभ से अंत तक कोई एक गण दोहराया जाता है। चरणों में अंत के 2 वर्णों में प्रथम वर्ण लघु (।) तथा द्वितीय वर्ण गुरु (ऽ) होता है।
सवैया छंद अनेक प्रकार के होते है और इनके नाम भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। सवैया छंद में एक ही वर्णिक गण को बार-बार आना चाहिए। इनका निर्वाह नहीं होता है।
सवैया छंद के उदाहरण
सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
लोरी सरासन संकट कौ,
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।
सवैया छंद के भेद
सवैया के सभी भेद निम्नलिखित है:-
सवैया छंद के भेद |
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मदिरा सवैया छंद |
मत्तगयंद सवैया छंद |
सुमुखी सवैया छंद |
मुक्तहरा सवैया छंद |
दुर्मिल सवैया छंद |
गंगोदक सवैया छंद |
किरीट सवैया छंद |
सुंदरी सवैया छंद |
अरविंद सवैया छंद |
(१). मदिरा सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते है। इस छंद में 7 भगण (ऽ।।) तथा अंत में गुरु (ऽ) होता है।
मदिरा सवैया छंद के उदाहरण
मदिरा सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
भासत गौरि गुसांइन को वर राम दुह धनु खंड कियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
मालिन को जयमाल गुहौ हरि के हिय जानकि मेल दियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ
रावण की उतरी मदिरा चुपचाप पयान जु लंक कियो।
ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ
राम वरी सिय मोद-भरी नभ में सुर जै जयकार कियो॥
(२). मत्तगयंद सवैया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद को ‘मालती’ तथा ‘इन्दव’ भी कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते है। मत्तगयंद छंद में 7 भगण (ऽ।।) तथा अंत में 2 गुरु (ऽऽ) होते है। इसके चारों चरणों में तुकांत होता है।
मत्तगयंद सवैया छंद के उदाहरण
मत्तगयंद छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽऽ
सेस महेस गणेस सुरेस दिनेसहु जाहि निरंतर गावैं।
ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽऽ
जाहि अनादि, अनंत, अखंड, अछेद अभेद, सुवेद बतावैं।
ऽ। ।ऽ। । ऽ।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। । ऽ। ।ऽऽ
ताहि अहीर कि छोहरियाँ छछिया भरि छाछ प नाच नचावैं।
(३). सुमुखी सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के आदि में एक लघु (।) वर्ण जोड़ने से सुमुखी सवैया छंद बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते है। इसमें 11वें और 12वें वर्ण पर यति होती है। इसमें 7 जगण (।ऽ।) और चरणों के अंत के वर्णों में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
सुमुखी सवैया छंद के उदाहरण
सुमुखी सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ
हिये बनमाल रसाल धरे, सिर मोर-किरीट महा लसिबो।
।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कसे कटि पीत-पटी, लकुटी कर आनन पै मुरली रसिबो।
।ऽ। । ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ
कलिंदि के तीर खड़े बल-वीर अहीरन बाँह गये हँसिबो।
।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
सदा हमारे हिय-मंदिर में यह बानक सों करिये बसिबो॥
(४). मुक्तहरा सवैया छंद
मुक्तहरा सवैया छंद को ‘मोतियदाम’ भी कहते है। मत्तगयंद छंद के आदि-अंत में एक-एक लघु (।) वर्ण जोड़ने से ‘मुक्तहरा सवैया छंद’ बनता है।
इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। मुक्तहरा छंद में 8 जगण (।ऽ।) होते है। इसमें 11वें और 13वें वर्ण पर यति होती है।
मुक्तहरा सवैया छंद के उदाहरण
मुक्तहरा सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न भूमि महान, न व्योम महान,
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। । ऽ।
न तीर्थ महान, न पुण्य, न दान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न शैल महान, न सिंधु महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न गंग, न संगम स्नान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न ग्रंथ महान, न पंथ महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न काव्य, न दर्शन ज्ञान।
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
महान सुकर्म, महान सुभाव,
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
सुदृष्टि महान, चरित्र महान।
(५). दुर्मिल सवैया छंद
दुर्मिल सवैया छंद को ‘चंद्रकला’ कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। दुर्मिल सवैया छंद में 12-12 वर्ण पर यति होती है। इसमें 8 सगण (।।ऽ) होता है।
दुर्मिल सवैया छंद के उदाहरण
दुर्मिल सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ
सखि नील-नभस्सर में उतरा,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
यह हंस अहा तरता तरता।
।। ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
अब तारक-मौक्तिक शेष नहीं,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
निकला जिनको चरता चरता।
।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ
अपने हिम-बिन्दु बचे तब भी,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
चलता उनको धरता धरता,
।। ऽ। । ऽ।। ऽ।। ऽ
गड़ जायँ न कंटक भूतल के,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कर डाल रहा डरता डरता।
(६). गंगोदक सवैया छंद
गंगोदक सवैया छंद को ‘लक्ष्मी’ छंद’ भी कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। गंगोदक सवैया छंद में 8 रगण (ऽ।ऽ) होता है।
गंगोदक सवैया छंद के उदाहरण
गंगोदक सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
राम राजान के राज आये इहाँ,
ऽ। ऽऽ ।ऽऽ। ऽऽ ।ऽ
धाम तेरे महाभाग जागे अबै।
ऽ। ऽऽ।ऽ ऽ।ऽऽ। ऽ
देवि मंदोदरी कुम्भकर्णादि दै,
ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
मित्र मंत्री जिते पूछि देखो सबै।
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
राखिये जाति को, पाँति को वंश को,
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ
साधिये लोक मैं लोक पर्लोक को।
ऽ। ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
आनि कै पाँ परौ देस लै, कोस लै,
ऽ।ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽ
आसुहीं ईश सीताहि लै ओक को।
(७). किरीट सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के अंत में 2 लघु (।) वर्ण जोड़ने से ‘किरीट सवैया छंद’ बनता है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। इसमें 12-12 वर्णों पर यति होती है। इस छंद में 8 भगण (ऽ।।) होता है।
किरीट सवैया छंद के उदाहरण
किरीट सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
चूनर छीन गयो कित मोहन,
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ।।
ढूंढत हूँ तुझको मुरलीधर
ऽ। ।ऽ।। ऽ।। ऽ।।
बांह मरोरत गागर फोड़त,
ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।
आज उलाहन दूँ जसुदा घर
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
बोलत बाल सखा घर भीतर,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।।
श्याम रहो इत ही नट नागर
ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।
दर्शन पाकर धन्य भई अब,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।ऽ।।
रीझ गई प्रभु हे करुणाकर।
(८). सुंदरी सवैया छंद
सुंदरी सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते है। इसमें 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। सुंदरी सवैया छंद में 8 सगण (।।ऽ) तथा अंत में 1 गुरु (।) होता है।
सुंदरी सवैया छंद के उदाहरण
सुंदरी सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
सुख शान्ति रहे सब ओर सदा,
।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
अविवेक तथा अघ पास न आवैं।
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
गुण शील तथा बल बुद्धि बढ़ें,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽऽ
हठ बैर विरोध घटै मिटि जावैं।
।। ऽ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ
सब उन्नति के पथ पे विचरे,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽऽ
रति पूर्ण परस्पर पुण्य कमावैं।
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।।
दृढ़ निश्चय और निरापद,
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ ।। ऽऽ
होकर निर्भय जीवन में जय पावैं।
(९). अरविंद सवैया छंद
अरविंद सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते है। इसमें 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। अरविंद सवैया छंद में 8 सगण (।।ऽ) तथा अंत में 1 लघु (।) होता है।
अरविंद सवैया छंद के उदाहरण
अरविंद सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।।ऽ ।। ऽ।। ऽ।। ऽ
सबसों लघु आपुहिं जानिय जू,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।
यह धर्म सनातन जान सुजान।
।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
जबहीं सुमती अस आनि वसै,
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ।
उर संपत्ति सर्व विराजत आन।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
प्रभु व्याप करौं सचराचर में,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ।
तजि-बैर सुभक्ति सजौ मतिमान।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
नित राम पदै अरविंदन को,
।।ऽ। ।ऽ ।।ऽ। ।ऽ।
मकरंद पियो सुमिलिंद समान॥
(ii). कवित्त छंद
यह वर्णिक ‘सम छंद’ होता है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31से 33 वर्ण होते है तथा अंत में 3 लघु वर्ण होते है। इस छंद में 16वें तथा 17वें वर्ण पर विराम होता है।
कवित्त छंद के उदाहरण
कवित्त छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।
(iii). द्रुत विलम्बित छंद
द्रुत विलम्बित छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण, एक नगण, दो भगण तथा एक सगण होते है।
द्रुत विलम्बित छंद के उदाहरण
द्रुत विलम्बित छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।
(iv). मालिनी छंद
मालिनी छंद एक ‘वर्णिक सम वृत्त छंद’ है। इस छंद में 15 वर्ण होते हैं। इसमें दो तगण, एक मगण तथा दो यगण होते है। इसमें 8वें और 7वें वर्ण पर विराम होता है।
मालिनी छंद के उदाहरण
मालिनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।
(v). मंदाक्रांता छंद
मंदाक्रांता छंद के प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है। इसमें एक भगण, एक नगण, दो तगण और दो गुरु होते है। इसमें 5वें, 6वें तथा 7वें वर्ण पर विराम होता है।
मंदाक्रांता छंद के उदाहरण
मंदाक्रांता छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।
(vi). इन्द्रव्रजा छंद
इन्द्रव्रजा छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, 2 जगण और बाद में 2 गुरु होते है।
इन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण
इन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
माता यशोदा हरि को जगावै।
प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
गोविन्द, दामोदर माधवेति।।
(vii). उपेन्द्रव्रजा छंद
उपेन्द्रव्रजा छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, 1 नगण, 1 तगण, 1 जगण और बाद में 2 गुरु होते है।
उपेन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण
उपेन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
पखारते हैं पद पद्म कोई,
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।
(viii). अरिल्ल छंद
अरिल्ल छंद के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है। इस छंद के अंत में लघु अथवा यगण होता है।
अरिल्ल छंद के उदाहरण
अरिल्ल छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मन में विचार इस विधि आया।
कैसी है यह प्रभुवर माया।
क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।
(ix). लावनी छंद
लावनी छंद के प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती है और चरण के अंत में गुरु होते है।
लावनी छंद के उदाहरण
लावनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
धरती के उर पर जली अनेक होली।
पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।
(x). राधिका छंद
राधिका छंद के प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती हैं। इसमें 13वें और 9वें वर्ण पर विराम होता है।
राधिका छंद के उदाहरण
राधिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
बैठी है वसन मलीन पहिन एक बाला।
बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।
(xi). त्रोटक छंद
त्रोटक छंद के प्रत्येक चरण में 12 मात्राएँ और 4 सगण होते है।
त्रोटक छंद के उदाहरण
त्रोटक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।
(xii). भुजंगी छंद
भुजंगी छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, तीन सगण, एक लघु और एक गुरु होता है।
भुजंगी छंद के उदाहरण
भुजंगी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।
(xiii). वियोगिनी छंद
वियोगिनी छंद के सम चरण में 11-11 वर्ण और विषम चरण में 10 वर्ण होते है। विषम चरणों में दो सगण, एक जगण, एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते है।
वियोगिनी छंद के उदाहरण
वियोगिनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
विधि ना कृपया प्रबोधिता,
सहसा मानिनि सुख से सदा
करती रहती सदैव ही
करुण की मद-मय साधना।।
(xiv). वंशस्थ छंद
वंशस्थ छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण, एक नगण, एक तगण, एक जगण और एक रगण होते है।
वंशस्थ छंद के उदाहरण
वंशस्थ छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
गिरिन्द्र में व्याप्त विलोकनीय थी,
वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।
(xv). शिखरिणी छंद
शिखरिणी एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है। 6वें वर्ण पर यति होती है। शिखरिणी छंद में 1 यगण (।ऽऽ), 1 मगण (ऽऽऽ), 1 नगण (।।।), 1 सगण (।।ऽ), 1 भगण (ऽ।।) तथा लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
शिखरिणी छंद के उदाहरण
शिखरिणी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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अनूठी आभा से सरस सुषमा से सुरस से।
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बना जो देती थी बहु गुणमयी भू-विपिन को॥
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निराले फूलों की विविध दल वाली अनुपमा।
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जड़ी-बूटी नाना बहु फलवती थी विलसती॥
(xvi). शार्दुल विक्रीडित छंद
शार्दुल विक्रीड़ित एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते है। 12वें और 7वें वर्ण पर यति होती है। शार्दुल विक्रीड़ित छंद में 1 मगण (ऽऽऽ), 1 सगण (।।ऽ), 1 जगण (।ऽ।), 1 सगण (।।ऽ), 2 तगण (ऽऽ।) और एक गुरु (ऽ) होता है।
शार्दुल विक्रीडित छंद के उदाहरण
शार्दुल विक्रीडित छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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काले कुत्सित कीट का कुसुम में कोई नहीं काम था।
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काँटे से कमनीय कंज कृति में क्या है न कोई कमी।
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पोरों में कब ईख की विपुलता है ग्रंथियों की भली।
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हा! दुर्दैव प्रगल्भते! अपटुता तूने कहाँ की नहीं॥
(xvii). मत्तगयंग छंद
मत्तगयंग छंद में 23 वर्ण होते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में सात सगण और दो गुरु होते है।
2. मात्रिक छंद
वह छंद, जो मात्रा की गणना के आधार पर बनते है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है। मात्रिक छंद में वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, लेकिन उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।
मात्रिक छंद में वर्णों की गणना होती है। इसमें 4 चरण होते है और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु-गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। मात्रिक छंद को ‘सम छंद’ भी कहा जाता है।
मात्रिक छंद के भेद
मात्रिक छंद के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
मात्रिक छंद के भेद |
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सममात्रिक छंद |
अर्द्धसममात्रिक छंद |
विषममात्रिक छंद |
(i). सममात्रिक छंद
वह छंद, जिनके चारों चरणों की संख्या तथा उनका नियोजन क्रम समान होता है, उन्हें ‘सममात्रिक छंद’ कहते है। जैसे- चौपाई, गीतिका, रोला, सरसी, हरिगीतिका, रूपमाला, तोमर, आल्हा आदि।
सममात्रिक छंद के उदाहरण
सममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
सममात्रिक छंद के उदाहरण |
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अहीर (11 मात्रा) |
तोमर (12 मात्रा) |
मानव (14 मात्रा) |
अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा) |
पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा) |
राधिका (22 मात्रा) |
रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा) |
गीतिका (26 मात्रा) |
सरसी (27 मात्रा) |
सार (28 मात्रा) |
हरिगीतिका (28 मात्रा) |
तांटक (30 मात्रा) |
वीर या आल्हा (31 मात्रा) |
(ii). अर्द्धसममात्रिक छंद
वह छंद, जिनकी सम-सम तथा विषम-विषम चरणों की मात्राएँ समान होती है, उन्हें ‘अर्द्धसममात्रिक छंद’ कहते है।
अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण
अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण |
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बरवै (विषम चरण में – 12 मात्रा, सम चरण में – 7 मात्रा) |
दोहा (विषम चरण में – 13 मात्रा, सम चरण में 11 मात्रा) |
सोरठा (दोहा का उल्टा) |
उल्लाला (विषम चरण में – 15 मात्रा, सम चरण में – 13 मात्रा) |
(iii). विषममात्रिक छंद
वह छंद, जिनकी सभी चरणों की मात्राएँ भिन्न-भिन्न होती है, उन्हें ‘विषममात्रिक छंद’ कहते है।
विषममात्रिक छंद के उदाहरण
विषममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
विषममात्रिक छंद के उदाहरण |
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कुंडलिया, छप्पय, आदि। |
मात्रा की गणना के आधार पर की गई पद की रचना को ‘मात्रिक छंद’ कहते है अर्थात वह छंद, जिनकी रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है।
साधारण शब्दों में:- वह छंद, जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु -गुरु, यति-गति के आधार पर पद रचना की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है। जैसे:-
बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।
प्रमुख मात्रिक छंद
सभी प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित है:-
(i). दोहा छंद
दोहा छंद ‘अर्द्धसम मात्रिक छंद’ होता है। यह छंद ‘सोरठा छंद’ के विपरीत होता है। इसमें प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 13-13 और द्वितीय चरण तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती है। दोहा छंद में चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है।
दोहा छंद के उदाहरण
दोहा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
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“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
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समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर।।
उदाहरण 2
तेरो मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय॥
श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
(ii). सोरठा छंद
सोरठा छंद ‘अर्धसममात्रिक छंद’ होता है। यह ‘दोहा छंद’ के विपरीत होता है। सोरठा छंद में प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 11-11 और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती है।
यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। तुक प्रथम तथा तृतीय चरणों में होता है।
सोरठा छंद के उदाहरण
सोरठा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
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कहै जु पावै कौन, विद्या धन उद्दम बिना।
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ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।
उदाहरण 2
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
(iii). रोला छंद
रोला छंद एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से कुल 24 मात्राएँ होती है। इसके अंत में 2 गुरु तथा 2 लघु वर्ण होते है।
रोला छंद के उदाहरण
रोला छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
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नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।
उदाहरण 2
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
(iv). गीतिका छंद
गीतिका छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 14 और 12 के क्रम से कुल 26 मात्राएँ होती है। इसके अंत में लघु तथा गुरु स्वर होता है।
गीतिका छंद के उदाहरण
गीतिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।
(v). हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें कुल चार चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में 16 और 12 के क्रम से कुल 28 मात्राएँ होती है। इसके अंत में लघु तथा गुरु वर्ण का प्रयोग किया जाता है।
हरिगीतिका छंद के उदाहरण
हरिगीतिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।
(vi). उल्लाला छंद
उल्लाला छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसके प्रत्येक चरण में 15 और 13 के क्रम से कुल 28 मात्राएँ होती है।
उल्लाला छंद के उदाहरण
उल्लाला छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।
(vii). चौपाई छंद
चौपाई छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में कुल 16 मात्राएँ होती है। इसमें चरण के अंत में गुरु अथवा लघु वर्ण नहीं होता है, लेकिन दो गुरु तथा दो लघु हो सकते है। अंत में गुरु वर्ण के होने से छंद में रोचकता आती है।
चौपाई छंद के उदाहरण
चौपाई छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
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“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।
उदाहरण 2
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
(viii). विषम छंद
विषम छंद के प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 12 और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 7 मात्राएँ होती है। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढ़ती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है।
विषम छंद के उदाहरण
विषम छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।
(ix). छप्पय छंद
छप्पय एक ‘संयुक्त मात्रिक छंद’ है। इस छंद का निर्माण ‘मात्रिक छंद’ के ‘रोला छंद’ और ‘उल्लाला छंद’ के योग से होता है। छप्पय छंद में कुल 6 चरण होते है।
इसमें प्रथम 4 चरण ‘रोला छंद’ के होते है, जबकि अंतिम 2 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते हैं। प्रथम 4 चरणों में कुल 24 मात्राएँ होती है, जबकि अंतिम 2 चरणों में 26-26 अथवा 28-28 मात्राएँ होती है।
जिस प्रकार तुलसी की चौपाइयाँ, बिहारी के दोहे, रसखान के सवैये, पद्माकर के कविता तथा गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार नाभादास के छप्पय प्रसिद्ध है।
छप्पय छंद के उदाहरण
छप्पय छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
(x). कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ छंद ‘विषममात्रिक छंद’ होता है। इसमें कुल 6 चरण होते है। इसके प्रथम 2 चरण दोहा छंद तथा अंतिम 4 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।
कुंडलियाँ छंद के उदाहरण
कुंडलियाँ छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध, उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा, घर का जोगी।।
उदाहरण 2
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
उदाहरण 3
रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
(xi). दिगपाल छंद
दिगपाल छंद के प्रत्येक चरण में 12-12 के विराम से कुल 24 मात्राएँ होती है।
दिगपाल छंद के उदाहरण
दिगपाल छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।
(xii). आल्हा या वीर छंद
आल्हा छंद एक ‘सममात्रिक छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में कुल 31 मात्राएँ होती है। इसमें 16-15 की यति से कुल 31 मात्राएँ होती है। इस छंद में अंतिम वर्ण ‘लघु’ होता है।
आल्हा छंद को ‘वीर छंद’ भी कहते है। वीर रस की रचनाओं के लिए यह छंद अधिक उपयुक्त होता है। जगनिक ने ‘आल्हा खंड’ को आल्हा या वीर छंद में लिखा है।
आल्हा या वीर छंद के उदाहरण
आल्हा या वीर छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
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हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
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एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
(xiii). सार छंद
सार छंद को ‘ललित पद’ भी कहते है। सार छंद में कुल 28 मात्राएँ होती है। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में 2 गुरु होते है।
(xiv). ताटंक छंद
तांटक छंद के प्रत्येक चरण में 16-14 की यति से कुल 30 मात्राएँ होती है।
(xv). रूपमाला छंद
रूपमाला छंद एक ‘सममात्रिक छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसमें 14वीं तथा 10वीं मात्रा पर यति होती है। इस छंद के प्रारंभ में रगण (ऽ।ऽ) तथा अंतिम वर्ण गुरु-लघु (ऽ।) होता है।
(xvi). त्रिभंगी छंद
त्रिभंगी छंद के प्रत्येक चरण में 32 मात्राएँ होती है। इसमें 10, 8, 8, 6 पर यति होती है और अंत में ‘गुरु’ होता है।
3. वर्णिक वृत्त छंद
‘वर्णिक वृत्त छंद’ वर्णिक छंद का एक रूप है। वर्णिक वृत्त उस सम छंद को कहते है, जिसमें चार समान चरण होते है और प्रत्येक चरण में आने वाले वर्णों का लघु-गुरु क्रम सुनिश्चित रहता है।
वर्णिक वृत्त छंद के उदाहरण
वर्णिक वृत्त छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
वर्णिक वृत्त छंद के उदाहरण |
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इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, मालिनी, मत्तगयंद, द्रुतविलम्बित, आदि। |
4. मुक्त छंद
जिस विषय छंद में वर्णित अथवा मात्रिक प्रतिबंध नहीं होता है और न ही प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान होते है और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था होती है तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह होता है, वह ‘मुक्त छंद’ कहलाता है।
मुक्त छंद के उदाहरण
मुक्त छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मुक्त छंद के उदाहरण |
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निराला की कविता ‘जूही की कली’ आदि। |
मुक्त छंद को आधुनिक युग की देन माना जाता है। वह छंद, जिनमें वर्णों तथा मात्राओं का बंधन नहीं होता है, उन्हें ‘मुक्तक छंद’ कहते हैं अर्थात वर्तमान समय में हिंदी में स्वतंत्र रूप से लिखे जाने वाले छंद ‘मुक्त छंद’ होते है।
चरणों की अनियमित, असमान, स्वछन्द गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही ‘मुक्त छंद’ की विशेषता है। इसे रबर अथवा केंचुआ छंद भी कहा जाता है। इसमें वर्णों और मात्राओं की गिनती नहीं होती है।
जैसे:-
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
चल रहा लकुटिया टेक ,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता।
काव्य में छंद का महत्व
छंद से ह्रदय का संबंध बोध होता है। छंद से मानवीय भावनाएं झंकृत होती है। छंदों में स्थायित्व होता है। छंद के सरस होने के कारण छंद मन को भाते है।
जैसे:-
भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।
अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥
छंद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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छंद कितने प्रकार के होते है?
छंद के कुल 4 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. वर्णिक छंद
2. मात्रिक छंद
3. वर्णिक वृत्त छंद
4. मुक्त छंद -
छंद की परिभाषा क्या है?
मात्रा और वर्ण आदि के विचार से होने वाली वाक्य-रचना को ‘छंद’ कहते है। ‘छंद’ शब्द ‘चद्’ धातु से बना है। छंद शब्द का अर्थ ‘आह्लादित करना’ (खुश करना) है। यह आह्लाद वर्ण अथवा मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है।
साधारण शब्दों में, वर्णों अथवा मात्राओं की नियमित संख्या के विन्यास से जो आह्लाद पैदा होता है, उसे ‘छंद’ कहते है। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऋग्वेद’ में मिलता है।
जिस प्रकार ‘गद्य’ का नियामक ‘व्याकरण’ है, ठीक उसी प्रकार ‘पद्य’ का नियामक ‘छंद शास्त्र’ है। छंद में कुल 4 चरण होते है। छंद-शास्त्र प्रणेता ‘आचार्य पिंगल ऋषि’ माने जाते है। इसलिए, छंद को ‘पिंगल’ भी कहा जाता है।
आचार्य पिंगल ऋषि के ‘छंदसूत्र’ में छंद का सुसम्बद्ध वर्णन निहित है, इसलिए इसे छंदशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जाता है। ‘छंदशास्त्र’ आठ अध्यायों का एक सूत्र ग्रंथ है। -
मात्रिक छंद के कितने भेद है?
मात्रिक छंद के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. सममात्रिक छंद
2. अर्द्धसममात्रिक छंद
3. विषममात्रिक छंद -
वर्णिक छंद के कितने भेद है?
वर्णिक छंद के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. साधारण वर्णिक छंद
2. दंडक वर्णिक छंद -
दोहा छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
दोहा छंद के विषम चरणों में 13-13 तथा सम चरणों में 11-11 मात्राएँ होती है।
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चौपाई छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती है।
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सोरठा छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
सोरठा छंद के विषम चरणों में 11-11 तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती है।
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उल्लाला छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
उल्लाला छंद के विषम चरणों में 15-15 तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती है।
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छप्पय छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
छप्पय छंद के प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्राएँ तथा अंतिम दो चरणों में 28-28 मात्राएँ होती है।
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सवैया छंद में कितने वर्ण होते है?
सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 वर्ण होते है।
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कवित्त छंद में कितने वर्ण होते है?
कवित्त छंद के प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है।
अंतिम शब्द
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।