दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Drishtant Alankar Ki Paribhasha in Hindi

दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा : Drishtant Alankar in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप दृष्टान्त अलंकार से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा : Drishtant Alankar in Hindi

जहाँ पर दो सामान्य अथवा दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, तो वहाँ पर ‘दृष्टान्त अलंकार’ होता है।

दृष्टान्त अलंकार में उपमेय रूप में कही गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में अन्य वाक्य में होती है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-

उदाहरण 1

एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ पति का क्या सह सकती है।

स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त दोहे में एक म्यान में दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है, जैसे कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना असंभव है। अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है। इसलिए, यह दृष्टान्त अलंकार का उदाहरण है।

उदाहरण 2

परी प्रेम नंदलाल के,
हमहिं न भावत जोग।
मधुप राजपद पाय के,
भीख न मांगत लोग।।

स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त दोहे में कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त होकर गोपियों को योग का न भाना वैसा ही है, जैसा राजपद पाकर भीख न माँगना है। यहाँ पर प्रथम वाक्य ‘उपमेय’ है, जबकि द्वितीय वाक्य ‘उपमान’ है। प्रथम वाक्य की सत्यता के निश्चय के लिए दूसरे वाक्य की योजना हुई है। इसलिए, यह दृष्टान्त अलंकार का उदाहरण है।

उदाहरण 3

पापी मनुज भी आज मुख से राम-नाम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते

उदाहरण 4

मनुष जनम दुरलभ अहै,
होय न दूजी बार।
पक्का फल जो गिरि परा,
बहुरि न लागै डार।।

उदाहरण 5

श्रम ही सों सब मिलत है,
निन श्रम मिलै न काहि।
सीधी अंगुरी घी जम्यो,
क्यों हू निकसत नांहि।।

उदाहरण 6

कन-कन जोरै मन जुरै,
खावत निबरे सोय।
बूँद-बूँद तें घट भरै,
टपकत रीतो होय।।

उदाहरण 7

कुलहिं प्रकासै एक सुत,
नहिं अनेक सुत निंद।
चंद एक सब तम हरै,
नहिं ठडगन के वृन्द।।

उदाहरण 8

बिगरी बात बने नहीं,
लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को,
मथै न माखन होय।।

उदाहरण 9

करत-करत अभ्यास के,
जङमति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते,
सिल पर परत निसान।।

उदाहरण 10

रूप नंदलाल को,
दृगानि रचै नहि आन।
तजि पीयूष कोउ करत,
कटु औषधि को पान।।

उदाहरण 11

सिव औरंगहि जिति सकै,
और न राजा-राव।
हत्थि-मत्थ पर सिंह बिनु,
आन न घालै घाव।।

उदाहरण 12

रहिमन अँसुवा नयन ढरि,
जिय दुख प्रकट करेइ।
जाहि निकारौ गेह तें,
कस न भेद कहि देइ।।

उदाहरण 13

सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
परस परसि कु-धातु सुहाई।।

उदाहरण 14

भरतहिं होइ न राजमदु,
विधि हरि पद पाय।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि,
छीर सिन्धु विनसाय।।

दृष्टान्त अलंकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा क्या है?

    जहाँ पर दो सामान्य अथवा दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, तो वहाँ पर ‘दृष्टान्त अलंकार’ होता है।
    दृष्टान्त अलंकार में उपमेय रूप में कही गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में अन्य वाक्य में होती है। यह अलंकार ‘उभयालंकार’ का भी एक अंग है।

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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