सर्कस पर निबंध

सर्कस पर निबंध : Essay on Circus in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘सर्कस पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप सर्कस पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
सर्कस पर निबंध : Essay on Circus in Hindi
प्रस्तावना:-
सर्कस एक मनोरंजन का साधन है, जिसमें अलग-अलग प्रकार के खेल दिखाकर मनोरंजन किया जाता है। इसमें जानवरों व इंसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है और तब वह विभिन्न प्रकार के खेल दिखाते है।
सर्कस में प्रशिक्षित लोग ही कार्य करते है और अपनी कला लोगों को दिखाते है। इसमें आप टिकट लेकर ही अंदर जा सकते है।
इसमें अलग-अलग जगहों पर टेंट लगाकर सर्कस का आयोजन किया जाता है। इसमें लोग जोकर व अलग-अलग प्रकार के कपड़ें पहनकर करतब दिखाते है। यह बच्चो का सबसे पसंदीदा होता है।
भारत में सर्कस का इतिहास:-
भारत में सर्कस का इतिहास काफी पुराना है। भारत में आधुनिक सर्कस का आयोजन 20 मार्च 1980 को मुम्बई में किया गया था, जिसका नाम ‘द ग्रेट इंडियन सर्कस’ था।
किल्लेरी कुन्हिकन्नन को भारतीय सर्कस का जनक कहा जाता है, जो कि मार्शल आर्ट और जिमनास्टिक्स सिखाया करते थे। उन्होंने सन 1901 में अपना एक सर्कस विद्यालय भी खोला था। इसमें उन्होंने कईं लोगों को सर्कस के बारे में सिखाया।
मनोरंजन का साधन:-
सर्कस एक मनोरंजन का साधन है। ज्यादातर लोग मनोरंजन करने के लिए सर्कस में जाना काफी पसंद करते है।
अब कुछ समय से तकनीकी के विकास होने से लोगों के पास मनोरंजन के साधन बढ़ गए है, लेकिन पहले के समय में लोगों के पास मनोरंजन के साधन सीमित ही हुआ करते थे।
उस समय सर्कस काफी प्रसिद्ध हुआ करते थे और लोग वहाँ जाकर मनोरंजन किया करते थे। अब यह धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है।
इनका स्थान मोबाइल फ़ोन और कम्प्यूटरों ने ले लिया है। अब लोग इन कलाओं को देखने की बजाय मोबाइल फ़ोन से ही अपना मनोरंजन करते है।
सर्कस में मेरा अनुभव:-
यह काफी समय पहले की बात है, जब मेरी आयु 10 वर्ष थी। उस समय मैं अपने गाँव गया था, जहाँ पर बहुत विशाल मेलें का आयोजन किया गया था।
वहाँ पर सर्कस भी था। जिसमें मैं और मेरे मित्र टिकिट लेकर अन्दर गए। वहाँ पर एक जोकर अलग-अलग तरह के करतब दिखा रहा था, जो कि काफी शानदार था।
इसके अलावा भी कईं रंग-बिरंगे कपड़ें पहने हुए लोग आये, जिन्होंने हमें अतरंगी करतब दिखाए, जो करने में काफी कठिन दिख रहे थे।
वह काफी मजेदार था। हमने उस दिन काफी मजे किये। हम काफी देर तक सर्कस ही देखते रहे। इसमें हमें कईं नई चीज़ें देखी और सीखी। वह दिन मैं कभी भी नहीं भूल सकता हूँ।
उपसंहार:-
सर्कस काफी मनोरंजक होते है, जिसमें बच्चों को जाना काफी पसंद होता है। लेकिन, आज यह काफी हद तक लुप्त हो गए है, जिससे इनकी कलाएँ भी खोती जा रही है। लोग इन्हें भूलते जा रहे है। आज बच्चे दिनभर मोबाइल फ़ोन में ही लगे रहते है।
हमें इन्हें लुप्त होने से रोकने का प्रयास करना चाहिए और अपने बच्चों को सर्कस दिखाने ले जाना चाहिए, ताकि वह इसका आनंद ले सके और इनसे कईं चीज़ें भी सीख सकते है।
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।