वर्णमाला की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

Hindi Varnamala

वर्णमाला की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण : Hindi Varnamala:- आज के इस लेख में हमनें ‘वर्णमाला’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप वर्णमाला से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

अनुक्रम दिखाएँ

वर्ण किसे कहते है?

वह मूल ध्वनियाँ जिनके टुकड़े नही किये जा सकते हैं, उन्हें वर्ण कहा जाता है। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है। इसके और अधिक टुकड़े नही किये जा सकते है। इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

वर्णमाला की परिभाषा

किसी भी भाषा में वर्णों के एक व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहा जाता है अर्थात किसी भाषा को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहा जाता है। इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

रामश्याम
सीतागीता
टेबलकुर्सी

हिंदी वर्णमाला : Hindi Varnamala

हिंदी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है। हिंदी भाषा को देवनागरी भाषा के नाम से भी जाना जाता हैं।

अंअः
क्षत्रज्ञ

अंग्रेजी भाषा में वर्णमाला को अल्फाबेट (Alphabet) कहते हैं। इसे अरबी, फ़ारसी, कुर्दी और मध्य पूर्व की अन्य भाषाओं में ‘अलिफ़-बेई’ अथवा ‘अलिफ़-बे’ कहते हैं।

वर्णमाला के प्रकार

हिंदी व्याकरण में हिंदी वर्णमाला के समस्त वर्णों को 2 भागों में बाँटा जाता है, जो कि निम्न प्रकार है:-

स्वर
व्यंजन

1. स्वर किसे कहते हैं?

जिन वर्णों को बिना किसी रुकावट या स्वतंत्र रूप से बोला जा सके, उसे स्वर कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस ‘कण्ठ’, ‘तालु’, आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है, उन्हें ‘स्वर’ कहा जाता है।

स्वर के प्रकार

स्वर के 2 प्रकार के होते है:-

मूल स्वर
संयुक्त स्वर

(1). मूल स्वर

(2). संयुक्त स्वर

अ + ए = ऐ
अ + ओ = औ

मूल स्वर के प्रकार

मूल स्वर 3 प्रकार के होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

ह्रस्व स्वर
दीर्घ स्वर
प्लुत स्वर
(i). ह्रस्व स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता हैं, उन्हें ह्रस्व स्वर कहा जाता हैं। ह्रस्व स्वर मुख्य रूप से 4 होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

(ii). दीर्घ स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व से अधिक या उससे भी दुगुना समय लगता हैं, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। दीर्घ स्वर मुख्य रूप से 7 होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

दीर्घ स्वर 2 शब्दों के मेल से बनते हैं, जिनके उदाहरण निम्नलिखित है:-

अ + आ = आ
इ + ई = ई
उ + ऊ = ऊ
अ + ई = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
(iii). प्लुत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में तिगुना समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्लुत स्वर का चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता हैं।

अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग

हिंदी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक रूप में होता हैं। अनुस्वार और विर्सग दोनों व्यंजन हैं, जो स्वर के बाद, स्वर से स्वतंत्र आते हैं। इनके सांकेतिक चिह्न निम्न प्रकार से हैं:-

अनुनासिक (ँ)

इन स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से किया जाता है और इनके उच्चारण में कम समय लगता है, जिनके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

गाँवदाँत
आँगनसाँचा
अनुस्वार ( ं)

यह स्वर के बाद आने वाले व्यंजन होते है। इनकी ध्वनि नाक से निकलती है, जिनके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

अंगूरअंगद
कंकनकंगन
निरनुनासिक

सिर्फ मुँह से बोले जाने वाले सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं, जिनके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

इधरउधर
आपअपना
विसर्ग ( ः)

अनुस्वार की भांति विसर्ग भी स्वर के बाद ही आते है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। संस्कृत भाषा में इसका काफी व्यवहार है।

हिंदी भाषा में धीरे-धीरे विसर्ग का उपयोग कम होता जा रहा है, लेकिन तत्सम शब्दों के प्रयोग में आज भी इसका उपयोग होता है, जिनके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

मनःकामनापयःपान
अतःस्वतः
टिप्पणी

अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर होते हैं और न ही व्यंजन होते है, लेकिन यह स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में ही इनका उपयोग किया जाता है, जिनके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

अंगदरंग

इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कथन है कि ”यह स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की भांति यह स्वरों के पूर्व नहीं अपितु पश्चात आते हैं, इसलिए व्यंजन नहीं है।

इसलिए इन दोनों ध्वनियों को ‘अयोगवाह’ कहते हैं। अयोगवाह का अर्थ है:- योग्य न होने पर भी जो साथ रहे।

अनुनासिक और अनुस्वार में अन्तर

अनुनासिकअनुस्वार
अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती है और मुँह से बहुत अधिक साँस निकलती है।
उदाहरण:- आँसू, आँत, गाँव, चिड़िया, आदि।
अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती हैं और मुँह से कम साँस निकलती हैं।
उदाहरण:- अंक, अंश, पंच, अंग, आदि।
अनुनासिक स्वर की विशेषता होती हैं।अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि हैं।
अनुनासिक स्वरों पर चन्द्रबिन्दु लगता हैं।अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। लेकिन, तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है और उनके तद्भव रूपों में चन्द्रबिन्दु लगता हैं।

2. व्यंजन किसे कहते हैं?

जिन वर्णों के उच्चारण के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है, उन वर्णों को व्यंजन कहते हैं अर्थात जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजन के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस ‘कण्ठ, तालु’ आदि स्थानों से रुककर निकलती है, उन्हें ‘व्यंजन’ कहा जाता है।

जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, उन वर्णों को व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर लगा होता है। अ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नही है। हिंदी वर्णमाला में कुल 45 व्यंजन होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़)
च, छ, ज, झ, ञ (ज़)
ट, ठ, ड, ढ, ण, (ड़, ढ़)
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म (फ़)
य, र, ल, व
श, श़, ष, स, ह
संयुक्त व्यंजन:- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

व्यंजन के प्रकार

व्यंजन 3 प्रकार होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

स्पर्श व्यंजन
अन्तःस्थ व्यंजन
उष्म व्यंजन

(1). स्पर्श व्यंजन

जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे:- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होंठ को स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।

इन्हें ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहा जाता है, क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त होते हैं। स्पर्श व्यंजन 5 प्रकार के होते हैं:-

प्रकारव्यंजन
क वर्ग(क, ख, ग, घ, ङ) ये व्यंजन कण्ठ का स्पर्श करते है।
च वर्ग(च, छ, ज, झ, ञ) ये व्यंजन तालु का स्पर्श करते है।
ट वर्गट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।
त वर्गत थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।
प वर्गप फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।
अंतस्थ य , र , ल , व
उष्मश , श़, ष , स , ह
संयुक्त व्यंजनक्ष , त्र , ज्ञ , श्र

वर्णों में ‘क’ से विसर्ग (:) तक सभी व्यंजन होते हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में मुख्य रूप से ‘अ’ की ध्वनि छिपी होती है। व्यंजन का उच्चारण ‘अ’ के बिना सम्भव नहीं है, इनके उदाहरण निम्नलिखित है:-

ख् + अ = ख
प् + अ = प

व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। स्वर वर्ण स्वतंत्र और व्यंजन वर्ण स्वर पर आश्रित होते है। हिन्दी में व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 33 होती है।

2. अन्तःस्थ व्यंजन

अन्तःस्थ व्यंजन में ‘अन्तः’ का अर्थ ‘भीतर’ होता हैं। वह व्यंजन जो उच्चारण के समय मुँह के भीतर ही रहे, उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं।

अन्तः = मध्य/बीच
स्थ = स्थित

अन्तःस्थ व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का होता है। इनके उच्चारण के समय जीभ मुँह के किसी भी भाग को स्पर्श नहीं करती है। अन्तःस्थ व्यंजन कुल चार होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

इन व्यंजनों का उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और होंठों के परस्पर सटाने से होता है, लेकिन कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता हैं। अतः इन चारों अन्तःस्थ व्यंजनों को ‘अर्द्धस्वर’ कहा जाता हैं।

(स). उष्म व्यंजन

उष्म शब्द का अर्थ ‘गर्म’ होता है। जिन वर्णों का उच्चारण करते समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँसों में गर्मी पैदा कर दें, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।

ऊष्म = गर्म

इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है अर्थात उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है। उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार के घर्षण से उत्पन्न उष्म वायु से होता है। उष्म व्यंजन भी 4 व्यंजन होते है।

उष्म व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुँह के अलग-अलग भागों से टकराती है। इसलिए, उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है:-

कंठ्य (गले से)क, ख, ग, घ, ङ
तालव्य (कठोर तालु से)च, छ, ज, झ, ञ, य, श
मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से)ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष
दंत्य (दाँतों से)त, थ, द, ध, न
वर्त्सय (दाँतों के मूल से)स, ज, र, ल
ओष्ठय (दोनों होंठों से)प, फ, ब, भ, म
दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से)व, फ
स्वर यंत्र से

श्वास अर्थात प्राण-वायु की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद

उच्चारण करते समय जिन व्यंजनों में वायुप्रक्षेप होता है, उस दृष्टि से व्यंजनों के 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

अल्पप्राण
महाप्राण

(i). अल्पप्राण

जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास पुरव से अल्प मात्रा में निकलती है और जिनमें ‘हकार’ जैसी ध्वनि नहीं होती है, उन्हें अल्पप्राण कहते है।

आसान भाषा में, जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, वे अल्पप्राण कहलाते है। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पांचवां वर्ण अल्पप्राण व्यंजन होता है, अल्पप्राण व्यंजन के उदाहरण निम्नलिखित है:-

पहला वर्गतीसरा वर्षपांचवा वर्ग

अन्तःस्थ (य, र, ल, व) भी अल्पप्राण ही हैं।

(ii). महाप्राण

जिन व्यंजनों के उच्चारण में ‘हकार’ जैसी ध्वनि विशेष रूप से उत्पन्न होती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती है, उन्हें महाप्राण कहते है।

आसान भाषा में, जिन वर्णों का उच्चारण करते समय वायु की मात्रा अधिक होती है, वे महाप्राण कहलाते है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण है, सभी महाप्राण के उदाहरण निम्नलिखित है:-

दूसरा वर्गचौथा वर्ग

(द). संयुक्त व्यंजन

जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों से मिलकर बनते हैं, वह संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। ये कुल 4 व्यंजन होते हैं, जो कि निम्नलिखित है:-

क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)
त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण)
ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन)
श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण)

संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

(य). द्वित्व व्यंजन

जब एक व्यंजन का मेल अपने ही समरूप व्यंजन से होता है, तो वह द्वित्व व्यंजन कहलाता हैं, द्वित्व व्यंजन के उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

क् + क = पक्का
च् + च = कच्चा
म् + म = चम्मच
त् + त = पत्ता

द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

(र). संयुक्ताक्षर

जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तो वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।

क् + त = क्त = संयुक्त
स् + थ = स्थ = स्थान
स् + व = स्व = स्वाद
द् + ध = द्ध = शुद्ध

प्रत्येक वर्णमाला में 2 प्रकार के वर्ण होते हैं, जो कि ‘स्वर वर्ण’ तथा ‘व्यंजन वर्ण’ होते है। व्यंजनों के साथ स्वर लगाने के अलग-अलग तरीक़ों के आधार पर वर्णमालाओं को 3 वर्गों में बांटा जाता हैं, जो कि निम्न प्रकार से है:-

1. रूढ़ी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला जिसमें स्वर भिन्न अक्षरों के साथ ही लगते हैं। उदाहरण के लिए यूनानी वर्णमाला में ‘पेमिर’ शब्द को ‘πεμιρ’ लिखा जाता हैं। (जिसमें ε और ι के स्वर वर्ण स्पष्ट रूप से जोड़ने होते हैं।)

2. आबूगिदा

देवनागरी में मात्रा के चिह्नों के जरिये व्यंजनों के साथ स्वर जोड़े जाते हैं। इसलिए, इसमें ‘पेमिर’ शब्द को ‘प​एमइर’ नहीं लिखते है। बल्कि, ‘प’ के साथ चिह्न लगाकर उसे ‘पे’ और ‘म’ के साथ चिह्न लगाकर उसे ‘मि’ कर देते हैं। इन मात्रा चिह्नों को अंग्रेज़ी में ‘डायाक्रिटिक’ (Diacritic) कहा जाता हैं।

3. अबजद

फ़ोनीशियाई वर्णमाला एक ऐसी वर्णमाला है, जिसमें व्यंजनों के साथ स्वरों के न तो वर्ण लगते हैं और न ही मात्रा चिन्ह लगते है। इसमें पढ़ने वाले को सन्दर्भ देखकर अंदाजा लगाना पड़ता है कि कौनसे स्वर इस्तेमाल करें।

जैसे अरबी-फ़ारसी लिपि में मात्रा चिह्नों की व्यवस्था होती है, लेकिन कभी-कभी उन्हें नहीं लिखा जाता है। जिससे वे लिपियाँ प्रयोग में कुछ हद तक अबजदों जैसी बन जाती हैं, जिसके उदाहरण निम्न प्रकार से है:-

‘بنتی‎’ को ‘बिनती’ भी पढ़ा जा सकता है और ‘बुनती’ भी पढ़ा जा सकता है, क्योंकि शुरू के ‘ب‎’ (‘ब’) व्यंजन के साथ कोई भी स्वर चिह्न का प्रयोग नहीं हुआ हैं।

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Hindi Varnamala in English

वर्तमान में हिंदी वर्णमाला के शब्दों को भी अंग्रेज़ी में टाइप करके ही लिखा जाता है। इसलिए हिंदी वर्णमाला को अंग्रेज़ी में भी जानना आवश्यक है। यहाँ हमनें हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को अंग्रेजी में लिखना बताया हैं। आप नीचे दी गई तस्वीर में देख सकते है:-

Hindi Varnamala Vyanjan
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हिंदी वर्णमाला से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न

  1. हिंदी वर्णमाला में कुल कितने वर्ण होते है?

    हिंदी वर्णमाला में कुल 44 वर्ण होते है।

  2. हिंदी वर्णमाला में कुल कितने स्वर होते है?

    हिंदी वर्णमाला में कुल 11 स्वर होते है।

  3. हिंदी वर्णमाला में कुल कितने व्यंजन होते है?

    हिंदी वर्णमाला में कुल 39 व्यंजन होते हैं। जिनमें 33 व्यंजन मानक हिंदी व्यंजन होते हैं, 4 संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) होते हैं और 2 उत्क्षिप्त व्यंजन होते हैं।

  4. हिंदी वर्णमाला में क से ज्ञ तक कुल कितने अक्षर होते है?

    हिंदी वर्णमाला में क से ज्ञ तक कुल 36 अक्षर होते है।

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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