कवित्त छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण
कवित्त छंद की परिभाषा : Kavitt Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘कवित्त छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप कवित्त छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
कवित्त छंद की परिभाषा : Kavitt Chhand in Hindi
कवित्त छंद ‘वर्णिक सम छंद’ होता है, लेकिन इसमें गणों का नियम लागू नहीं होता है। इसमें कुल 4 चरण होते है और प्रत्येक चरण में 16 तथा 15 के विराम से 31 वर्ण होते है। प्रत्येक चरण के अंत में ‘गुरु’ वर्ण होना चाहिए। छंद की गति को सही रखने के लिए 8, 8, 8, और 7 वर्णों पर यति रहना आवश्यक है, यही कवित्त छंद कहलाता है।
कवित्त छंद के उदाहरण
कवित्त छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
हरित हरित हार, हेरत हियो हेरात – 16 वर्ण
हरि हाँ हरिन नैनी, हरि न कहूँ लहाँ। – 15 वर्ण
बनमाली ब्रज पर, बरसत बनमाली,
बनमाली दूर दुख, केशव कैसे सहौं।
हृदय कमल नैन, देखि कै कमल नैन,
होहुँगी कमल नैनी, और हौं कहा कहौं।
आप घने घनस्याम, घन ही ते होते घन,
सावन के द्यौंस धन, स्या बिनु कौन रहौं।
आते जो यहाँ हैं बज्र भूमि की छटा को देख,
नेक न अघाते होते मोद-मद माते हैं।
जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य,
लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
पल भर अपने को वे भूल जाते सदा,
सुखद अतीत–सुधा–सिंधु में समाते हैं।।
जान पड़ता हैं उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,
मैंया मैंया–टेरते हैं गैंया को चराते हैं।।
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगुला सौहें तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै केकी कीर बतरावे ’देव’
कोकिल हलावे हुलसावे कर तारी दै।
पूरित पराग सो उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर मारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि, आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती, छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा, हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा, पूछ्न सबै लगी।।
कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में, कयारिन में कलिन कलीन किलकंत है।
कहै पझाकर परागन में, पौनहू में, पातन में, पिक में, पलासन पगंत है।
द्वारे में, दिसान में दुनी में, देस देसन में, देखी दीप दीपन में, दीपत दिगंत है।
बीथिन में, ब्रज में, नबेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है।
बिरह बिथा की कथा अकथ अथाह महा
कहत बनै न जौ प्रवीन सुकवीनि सौं।
कहै ’रत्नाकर’ बुझावन लगै ज्यों कान्ह
ऊधौ कौं कहन हेतु व्रज जुव तीनि सौं।
गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं
प्रेम पर्यौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं।
नैकु कही बैननि अनेक कही नैननि सौं
रही सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनि सौं।
सच्चे हो पुजारी तुम प्यारे प्रेम मंदिर के,
उचित नही है तुम्हे दुःख से कराहना,
करना पड़े जो आत्म त्याग अनुराग वश,
तो तुम सहर्ष निज भाग्य की सराहना।
प्रीति का लगाना कुछ कठिन नहीं है, सखे,
किन्तु हैं कठिन नित्य नेह का निबाहना,
चाहना जिसे हैं तुम्हें चाहिए सदैव उसे,
तन मन प्राण से प्रमोद युत चाहना।।
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडव सुअंभ पर
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर संभु रतिनाह पर
ज्यों सहस्त्र बाहु पर राम द्विजराज है।
दावा दु्रमदंड पर चीता मृग झुंड पर
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर
त्यों मलेच्छ वंस पर सेर सिवराज है।
कवित्त छंद से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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कवित्त छंद की परिभाषा क्या है?
कवित्त छंद ‘वर्णिक सम छंद’ होता है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण होते है तथा अंत में 3 लघु वर्ण होते है। इस छंद में 16वें तथा 17वें वर्ण पर विराम होता है।
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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Hlo Suraj thora easy example doge iss prr
Sir thoda esay or chota example batao iske liye .
Ji Humne Update Kar diya hain! aap check kijiye…