कुंडलियाँ छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

कुंडलियाँ छंद की परिभाषा : Kundaliya Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘कुंडलियाँ छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप कुंडलियाँ छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
कुंडलियाँ छंद की परिभाषा : Kundaliya Chhand in Hindi
कुंडलियाँ एक विषम मात्रिक छंद होता है। इस छंद का निर्माण ‘मात्रिक छंद’ के ‘दोहा छंद’ और ‘रोला छंद’ के योग से होता है।
इसमें कुल 6 चरण होते है। इसके प्रथम 2 चरण दोहा छंद तथा अंतिम 4 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।
पहले एक दोहा और उसके बाद दोहा के चतुर्थ चरण से यदि एक रोला रख दिया जाए, तो वह ‘कुंडलिया छंद’ बन जाता है। एक नियम है कि जिस शब्द से कुंडलियाँ छंद प्रारंभ होता है, समाप्ति में भी वह शब्द ही रहना चाहिए।
कुंडलियाँ छंद के उदाहरण
कुंडलियाँ छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध, उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा, घर का जोगी।।
उदाहरण 2
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
उदाहरण 3
रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
उदाहरण 4
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि कौ, ठाउँ न रहत निदान।।
ठाउँ न रहत निदान, जियन जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।।
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घर तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सब ही के दौलत।।
कुंडलियाँ छंद से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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कुंडलियाँ छंद की परिभाषा क्या है?
कुंडलियाँ एक विषम मात्रिक छंद होता है। इस छंद का निर्माण ‘मात्रिक छंद’ के ‘दोहा छंद’ और ‘रोला छंद’ के योग से होता है।
इसमें कुल 6 चरण होते है। इसके प्रथम 2 चरण दोहा छंद तथा अंतिम 4 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।
पहले एक दोहा और उसके बाद दोहा के चतुर्थ चरण से यदि एक रोला रख दिया जाए, तो वह ‘कुंडलिया छंद’ बन जाता है। एक नियम है कि जिस शब्द से कुंडलियाँ छंद प्रारंभ होता है, समाप्ति में भी वह शब्द ही रहना चाहिए।
अंतिम शब्द
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।