मात्रिक छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Matrik Chhand Ki Paribhasha in Hindi

मात्रिक छंद की परिभाषा : Matrik Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘मात्रिक छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप मात्रिक छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

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मात्रिक छंद की परिभाषा : Matrik Chhand in Hindi

वह छंद, जो मात्रा की गणना के आधार पर बनते है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है। मात्रिक छंद में वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, लेकिन उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।

मात्रिक छंद में वर्णों की गणना होती है। इसमें 4 चरण होते है और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु-गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। मात्रिक छंद को ‘सम छंद’ भी कहा जाता है।

साधारण शब्दों में:- वह छंद, जिनकी रचना मात्रा की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक छन्द’ कहते है।

मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या एकसमान रहती है, लेकिन लघु तथा गुरु स्वर के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

मात्रिक छंद में वर्णिक छन्द के विपरीत, वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न हो सकती है और वार्णिक वृत्त के अनुसार यह गणबद्ध भी नहीं होते है, अपितु यह गणपद्धति अथवा वर्णसंख्या को छोड़कर सिर्फ चरण की कुल मात्रा संख्या के आधार पर ही नियमित होते है।

‘दोहा’ और ‘चौपाई’ जैसे छन्द ‘मात्रिक छंद’ में गिने जाते है। ‘दोहा’ के प्रथम चरण से तृतीय चरण में 93 मात्राएँ और द्वितीय चरण से चतुर्थ चरण में 99 मात्राएँ होती है।

मात्रिक छंद के भेद

मात्रिक छंद के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

मात्रिक छंद के भेद
सममात्रिक छंद
अर्द्धसममात्रिक छंद
विषममात्रिक छंद

1. सममात्रिक छंद

वह छंद, जिनके चारों चरणों की संख्या तथा उनका नियोजन क्रम समान होता है, उन्हें ‘सममात्रिक छंद’ कहते है। जैसे- चौपाई, गीतिका, रोला, सरसी, हरिगीतिका, रूपमाला, तोमर, आल्हा आदि।

सममात्रिक छंद के उदाहरण

सममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

सममात्रिक छंद के उदाहरण
अहीर (11 मात्रा)
तोमर (12 मात्रा)
मानव (14 मात्रा)
अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा)
पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा)
राधिका (22 मात्रा)
रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा)
गीतिका (26 मात्रा)
सरसी (27 मात्रा)
सार (28 मात्रा)
हरिगीतिका (28 मात्रा)
तांटक (30 मात्रा)
वीर या आल्हा (31 मात्रा)

2. अर्द्धसममात्रिक छंद

वह छंद, जिनकी सम-सम तथा विषम-विषम चरणों की मात्राएँ समान होती है, उन्हें ‘अर्द्धसममात्रिक छंद’ कहते है।

अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण

अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

अर्द्धसममात्रिक छंद के उदाहरण
बरवै (विषम चरण में – 12 मात्रा, सम चरण में – 7 मात्रा)
दोहा (विषम चरण में – 13 मात्रा, सम चरण में 11 मात्रा)
सोरठा (दोहा का उल्टा)
उल्लाला (विषम चरण में – 15 मात्रा, सम चरण में – 13 मात्रा)

3. विषममात्रिक छंद

वह छंद, जिनकी सभी चरणों की मात्राएँ भिन्न-भिन्न होती है, उन्हें ‘विषममात्रिक छंद’ कहते है।

विषममात्रिक छंद के उदाहरण

विषममात्रिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

विषममात्रिक छंद के उदाहरण
कुंडलिया, छप्पय, आदि।

मात्रा की गणना के आधार पर की गई पद की रचना को ‘मात्रिक छंद’ कहते है अर्थात वह छंद, जिनकी रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है।

साधारण शब्दों में:- वह छंद, जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु -गुरु, यति-गति के आधार पर पद रचना की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है। जैसे:-

बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।

प्रमुख मात्रिक छंद

सभी प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित है:-

1. दोहा छंद

दोहा छंद ‘अर्द्धसम मात्रिक छंद’ होता है। यह छंद ‘सोरठा छंद’ के विपरीत होता है। इसमें प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 13-13 और द्वितीय चरण तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती है। दोहा छंद में चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है।

दोहा छंद के उदाहरण

दोहा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

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“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
lll Sl llll lS Sll SS Sl
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर।।

उदाहरण 2

तेरो मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय॥
श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥

2. सोरठा छंद

सोरठा छंद ‘अर्धसममात्रिक छंद’ होता है। यह ‘दोहा छंद’ के विपरीत होता है। सोरठा छंद में प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 11-11 और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती है।

यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। तुक प्रथम तथा तृतीय चरणों में होता है।

सोरठा छंद के उदाहरण

सोरठा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

lS l SS Sl SS ll lSl Sl
कहै जु पावै कौन, विद्या धन उद्दम बिना।
S SS S Sl lS lSS S lS
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।

उदाहरण 2

जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥

3. रोला छंद

रोला छंद एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से कुल 24 मात्राएँ होती है। इसके अंत में 2 गुरु तथा 2 लघु वर्ण होते है।

रोला छंद के उदाहरण

रोला छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

SSll llSl lll ll ll Sll S
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।

उदाहरण 2

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥

4. गीतिका छंद

गीतिका छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 14 और 12 के क्रम से कुल 26 मात्राएँ होती है। इसके अंत में लघु तथा गुरु वर्ण होता है।

गीतिका छंद के उदाहरण

गीतिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

S SS SlSS Sl llS SlS
हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।

5. हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें कुल चार चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में 16 और 12 के क्रम से कुल 28 मात्राएँ होती है। इसके अंत में लघु तथा गुरु वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

हरिगीतिका छंद के उदाहरण

हरिगीतिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

SS ll Sll S S S lll SlS llS
मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।

6. उल्लाला छंद

उल्लाला छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसके प्रत्येक चरण में 15 और 13 के क्रम से कुल 28 मात्राएँ होती है।

उल्लाला छंद के उदाहरण

उल्लाला छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

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करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।

7. चौपाई छंद

चौपाई छंद एक ‘मात्रिक छंद’ होता है। इसमें चार चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में कुल 16 मात्राएँ होती है। इसमें चरण के अंत में गुरु अथवा लघु वर्ण नहीं होता है, लेकिन दो गुरु तथा दो लघु हो सकते है। अंत में गुरु वर्ण के होने से छंद में रोचकता आती है।

चौपाई छंद के उदाहरण

चौपाई छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

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“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।

उदाहरण 2

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥

8. विषम छंद

विषम छंद के प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 12 और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 7 मात्राएँ होती है। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढ़ती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है।

विषम छंद के उदाहरण

विषम छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।

9. छप्पय छंद

छप्पय छंद में 6 चरण होते है। इसके प्रथम 4 चरण ‘रोला छंद’ के होते है और अंत के 2 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते है। इस छंद के प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और अंतिम 2 चरणों में 26-26 अथवा 28-28 मात्राएँ होती है।

छप्पय छंद के उदाहरण

छप्पय छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।

10. कुंडलियाँ छंद

कुंडलियाँ छंद ‘विषममात्रिक छंद’ होता है। इसमें कुल 6 चरण होते है। इसके प्रथम 2 चरण दोहा छंद तथा अंतिम 4 चरण ‘उल्लाला छंद’ के होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।

कुंडलियाँ छंद के उदाहरण

कुंडलियाँ छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

उदाहरण 1

घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध, उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा, घर का जोगी।।

उदाहरण 2

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

उदाहरण 3

रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥

11. दिगपाल छंद

दिगपाल छंद के प्रत्येक चरण में 12-12 के विराम से कुल 24 मात्राएँ होती है।

दिगपाल छंद के उदाहरण

दिगपाल छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।

12. आल्हा या वीर छंद

आल्हा छंद एक ‘सममात्रिक छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में कुल 31 मात्राएँ होती है। इसमें 16-15 की यति से कुल 31 मात्राएँ होती है। इस छंद में अंतिम वर्ण ‘लघु’ होता है।

आल्हा छंद को ‘वीर छंद’ भी कहते है। वीर रस की रचनाओं के लिए यह छंद अधिक उपयुक्त होता है। जगनिक ने ‘आल्हा खंड’ को आल्हा या वीर छंद में लिखा है।

आल्हा या वीर छंद के उदाहरण

आल्हा या वीर छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-

।।।।   ऽ  ऽऽ।  ।।।   ।।   ऽ।  ।ऽ  ऽ   ऽ।।  ऽ।
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
ऽ। ।।।  ऽऽ   ।।ऽ   ऽ  ऽ।  ।ऽ ऽ   ।।।  ।ऽ।
एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।

13. सार छंद

सार छंद को ‘ललित पद’ भी कहते है। सार छंद में कुल 28 मात्राएँ होती है। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में 2 गुरु होते है।

14. ताटंक छंद

तांटक छंद के प्रत्येक चरण में 16-14 की यति से कुल 30 मात्राएँ होती है।

15. रूपमाला छंद

रूपमाला छंद एक ‘सममात्रिक छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसमें 14वीं तथा 10वीं मात्रा पर यति होती है। इस छंद के प्रारंभ में रगण (ऽ।ऽ) तथा अंतिम वर्ण गुरु-लघु (ऽ।) होता है।

16. त्रिभंगी छंद

त्रिभंगी छंद के प्रत्येक चरण में 32 मात्राएँ होती है। इसमें 10, 8, 8, 6 पर यति होती है और अंत में ‘गुरु’ होता है।

मात्रिक छंद से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. मात्रिक छंद की परिभाषा क्या है?

    वह छंद, जो मात्रा की गणना के आधार पर बनते है, उन्हें ‘मात्रिक छंद’ कहते है। मात्रिक छंद में वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, लेकिन उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।
    मात्रिक छंद में वर्णों की गणना होती है। इसमें 4 चरण होते है और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु-गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। मात्रिक छंद को ‘सम छंद’ भी कहा जाता है।

  2. मात्रिक छंद के कितने भेद है?

    मात्रिक छंद के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. सममात्रिक छंद
    2. अर्द्धसममात्रिक छंद
    3. विषममात्रिक छंद

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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