OSOWOG क्या है? जानें पूरी जानकारी

OSOWOG क्या है? जानें पूरी जानकारी:- वर्तमान समय में मनुष्य को अपना जीवनयापन करने के लिए हवा, पानी व भोजन के अलावा बहुत अधिक ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है।
वर्तमान समय में ऊर्जा के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है। आज पूरी दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है।
जिस कारण सभी को पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध करा पाना एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। इसके साथ-साथ सभी क्षेत्रों को भी ऊर्जा उपलब्ध करवाना आवश्यक है।
यह समस्या लगातार बढ़ रही है। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही One Sun, One World, One Grid (OSOWOG) को सामने रखा गया है।
इस लेख में आपको OSOWOG से जुड़े सभी प्रश्नों के हल प्राप्त होंगे। तो इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना होगा।
“OSOWOG” = One Sun, One World, One Grid
OSOWOG क्या है?
यह एक प्रकार का विचार है, जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली विधानसभा बैठक में रखा गया था।
इसका मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया की ऊर्जा की आपूर्ति को पूरा करने वाले सोलर ट्रांस नेशनल बिजली ग्रिड को तैयार करना है। इस योजना में भारत में तैयार की गई सौर ऊर्जा को पूरे विश्व में सप्लाई किया जाएगा।
भारत की Ministry of New and Renewable Energy द्वारा एक रोडमेप तैयार किया गया। जिसके अनुसार OSOWOG में विश्व के 140 देशों को एक ग्रिड के माध्यम से जोड़ा जाएगा।
इसमें सभी देशों में स्थित नए ऊर्जा स्त्रोतों को एक ग्रिड में जोड़कर ऊर्जा का एक वैश्विक परिस्थितिक तंत्र का निर्माण किया जाएगा।
जैसा कि आप जानते है कि सूर्य कभी नहीं डूबता है। पृथ्वी ही अपने अक्ष पर लगातार घूमती रहती है। जिसके कारण ही रात-दिन संभव हो पाते है।
इसका अर्थ यह है कि हर समय सूर्य की रोशनी पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में पहुँचती रहती है।
OSOWOG क्यों आवश्यक है?
इस योजना की आवश्यकता मुख्यतः ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करना है। सन 2018 में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की मांग में 4% की वृद्धि व सन 2019 में 1.9% की वृद्धि देखी जा सकती है, जो प्रतिवर्ष लगातार बढ़ रही है।
वर्तमान समय में विश्व के ज्यादातर देश अपनी ऊर्जा की आपूर्ति को पूरा करने के लिए ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर रहे है। इससे पर्यावरण प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है।
उदारहण के लिए उत्सर्जित CO2 में 42% का योगदान अकेले विधुत उत्पादन संयंत्रों का होता है।
यदि भारत की बात की जाए तो भारत अपनी कुल ऊर्जा की आपूर्ति का 50% से अधिक कोयले से चलने वाले विधुत संयंत्रों पर निर्भर करता है। जबकि, इसमें नवीनीकरण स्रोतों का योगदान मात्र 23% है।
भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा के उत्पादन को 28000 मेगावाट से बढ़ाकर 175 गीगाबाइट का लक्ष्य रखा है।
ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण करने व उन्हें चलाने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। जिससे गरीब देशों के लिए इस खर्च का वहन कर पाना बहुत मुश्किल होता है।
इसलिए, उन्हें दुसरे बड़े देशों से ऊर्जा लेनी पड़ती है, जो उन्हें मनमाने तरीके से ऊर्जा देते है। अनवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों से पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुँच रहा है और यह स्त्रोत लगातार ख़त्म भी हो रहे है।
इनकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए सौर ऊर्जा व नवीनीकरण ऊर्जा स्त्रोतों का विकास करना बहुत आवश्यक है।
OSOWOG योजना में क्या होगा?
इस कार्यक्रम में क्षेत्रीय स्तर व अंतर्राष्ट्रीय स्तर को एक दूसरे से ग्रिड के माध्यम से जोड़ा जाएगा। इस ग्रिड के द्वारा सभी देशों के मध्य ऊर्जा आपूर्ति का संतुलन स्थापित किया जाएगा।
इस योजना को तीन चरणों के माध्यम से लागू किया जाएगा। जो कि निम्नलिखित है:-
- प्रथम चरण:- इस चरण के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया व दक्षिण एशिया के देशों को ग्रिड से जोड़ा जाएगा।
- दूसरा चरण:- इस चरण में प्रथम चरण में जोड़े गए एशियाई देशों को अफ्रीका के ‘पवार पूल्स’ से जोड़ा जाएगा।
- तीसरा चरण:- इस चरण में इन विद्युत ग्रिडों को पूरे विश्व से जोड़ा जाएगा।
OSOWOG योजना का क्या महत्व है?
इस योजना का सबसे बड़ा महत्व है कि सभी देशों की ऊर्जा की आपूर्ति को पूरा किया जाएगा। अलग-अलग देशों के ग्रिडों को जोड़कर 24*7 विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।
विश्व के सभी महाद्वीपों में उत्पादित अतरिक्त ऊर्जा को पूरे विश्व में पहुँचाया जाएगा। इस सौर ऊर्जा के माध्यम से कम लागत में ऊर्जा की आपूर्ति की जाएगी।
OSOWOG योजना से उत्पन्न होने वाले रोजगार विकल्प क्या है?
इस योजना से पूरे विश्वभर में कम से कम 11 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार दिया जाएगा व इस कार्यक्रम से नवीनीकरण ऊर्जा क्षेत्रों में भविष्य में और अधिक रोजगार मिलने की संभावना बढ़ेगी।
OSOWOG योजना में होने वाली कुल लागत क्या है?
इस योजना को पूरी दुनिया में स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों से सहयोग लिया जाएगा व इसमें वर्तमान समय में बने ग्रिडों का भी उपयोग किया जाएगा।
OSOWOG योजना पर किसका स्वामित्व है?
इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें सभी सदस्य देशों की सहभागिता होगी व इसमें सभी देशों का समान अधिकार होगा।
इससे सभी देशों के बीच अच्छे संबंध स्थापित होंगे। जिससे भविष्य में ऐसे और अधिक कदम उठाए जा सकेंगे।
OSOWOG योजना में भारत का नेतृत्व क्या है?
इस कार्यक्रम का नेतृत्व भारत कर रहा है। इसे सन 2018 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ही रखा गया था।
इसके माध्यम से भारत वैश्विक स्तर पर पहली बार किसी समस्या के समाधान का हिस्सा बन रहा है एवं नेतृत्व कर रहा है।
इसके साथ-साथ इस कार्यक्रम में एशिया के साथ-साथ अफ्रीका देशों को भी जोड़ने की बात की जा रही है। जिससे इन देशों के साथ भी अच्छे संबंध स्थापित किये जा सकते है।
इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत अपनी नेतृत्व क्षमता को भी पूरी दुनिया के पटल पर रखेगा। इससे चीन के द्वारा चलाये गए वन बेल्ट वन रोड से चीन की बढ़ती आक्रमकता को कम किया जा सकता है।
यह मुख्य रूप से परस्पर एक-दूसरे का सहयोग व सतत विकास के मूल्यों पर आधारित है।
OSOWOG योजना की मुख्य चुनौतियाँ क्या-क्या है?
इसमें मुख्य चुनौती इस कार्यक्रम में प्रयुक्त होने वाली आवश्यक तकनीक का विकास करना व सम्पूर्ण विश्व से इसे जोड़ पाना है।
इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि सभी सदस्य राष्ट्र ऊर्जा का निर्माण करें व इसे सभी सदस्य देशों के साथ साझा किया जा सके।
आज के समय में खनिज तेल और गैर-नवीनीकरण ऊर्जा के माध्यम से ही ऊर्जा उपलब्ध कराई जाती है। ऊर्जा के क्षेत्र में इसका बाजार बहुत बड़ा है।
इससे उस बाजार को काफी नुकसान होगा, जिससे कईं देश इसका विरोध भी कर सकते है।
OSOWOG योजना की चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?
इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए विश्व बैंक द्वारा तकनीकी के विकास के लिए राशि मुहैया कराई जाएगी।
इस कार्यक्रम को उचित तरीके से चलाने के लिए वर्ल्ड सोलर बैंक का निर्माण किया जा रहा है।
विश्व बैंक व विश्व सोलर बैंक के माध्यम से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक मुहैया कराये जायेंगे। जिससे वित्तीय चुनौती काफी हद तक कम हो जाएगी।
ग्रिड क्या है?
इस लेख में आपने बहुत बार ‘ग्रिड’ का नाम सुना होगा। उत्पादक देशों से ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए एक नेटवर्क का निर्माण किया जाता है, जिसे ही ग्रिड कहा जाता है।
यह ग्रिड सोलर ऊर्जा उत्पादक के दौरान फोटोवोल्टेमिका (PU System) उर्जा तकनीक से बने हुए सौर पैनल में बने तत्वों को जोड़ा जाता है।
ऐसे ही सभी तत्वों को जोड़कर एक ऊर्जा जाल या विधुत जाल का निर्माण किया जाता है।
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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