संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण

संधि की परिभाषा : Sandhi in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘संधि की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप संधि की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
संधि की परिभाषा : Sandhi in Hindi
दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को संधि कहते है। संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के आदि वर्ण का मेल होता है।
अन्य शब्दों में, दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल व जोड़ को संधि कहते है अर्थात दो वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते है।
हिंदी भाषा में संधि के द्वारा पूरे शब्दों को लिखने की परम्परा नहीं है। लेकिन, संस्कृत भाषा में संधि के बिना कोई काम नहीं होता है।
संस्कृत व्याकरण की परम्परा काफी प्राचीन है। संस्कृत भाषा को सही प्रकार से जानने के लिए व्याकरण का बोध होना अत्यंत आवश्यक है। शब्द रचना में भी संधियाँ काम करती है।
संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की भांति करना ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है। अर्थात जब दो शब्द आपस में जुड़कर किसी तीसरे शब्द का निर्माण करते है, तो शब्द में होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते है।
संधि के उदाहरण
संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
संधि के उदाहरण |
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सम् + तोष = संतोष |
देव + इंद्र = देवेंद्र |
सूर्य + उदय = सूर्योदय |
विद्या + आलय = विद्यालय |
सत् + आनंद =सदानंद |
संधि-विच्छेद
संधि के नियमों द्वारा जुड़े वर्णों को फिर से उनकी मूल अवस्था में परिवर्तित करना ‘सन्धि-विच्छेद’ कहलाता है।
संधि विच्छेद के उदाहरण
संधि विच्छेद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
संधि-विच्छेद के उदाहरण |
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परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी |
वाक + ईश = वागीश |
अन्तः + करण = अन्तःकरण |
संधि के भेद
हिंदी व्याकरण में संधि के मुख्य रूप से कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
संधि के भेद |
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स्वर संधि |
व्यंजन संधि |
विसर्ग संधि |
1. स्वर संधि
स्वर के साथ स्वर का मेल होने के बाद होने वाले परिवर्तन को ‘स्वर संधि’ कहते है। अन्य शब्दों में, दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को ‘स्वर सन्धि’ कहते है। हिंदी व्याकरण में स्वरों की कुल संख्या ‘ग्यारह’ होती है, शेष अक्षर व्यंजन होते है।
स्वर संधि के उदाहरण
स्वर संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
स्वर संधि के उदाहरण |
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सूर्य + अस्त = सूर्यास्त (अ + अ = आ) |
महा + आत्मा = महात्मा (आ + आ = आ) |
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र (इ + इ = ई) |
श्री + ईश = श्रीश (ई + ई = ई) |
गुरु + उपदेश = गुरुपदेश (उ + उ = ऊ) |
स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के कुल 5 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
स्वर संधि के भेद |
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दीर्घ स्वर संधि |
गुण स्वर संधि |
वृद्धि स्वर संधि |
यण स्वर संधि |
अयादि स्वर संधि |
(i). दीर्घ स्वर संधि
‘अक’ प्रत्याहार के पश्चात् यदि सवर्ण होता है, तो दोनों मिलकर दीर्घ बन जाती है। अन्य शब्दों में, जब दो सुजातीय स्वर आसपास आने से जो स्वर बनता है, उसे सुजातीय दीर्घ स्वर (दीर्घ स्वर संधि) कहते है। दीर्घ स्वर संधि को ‘ह्रस्व संधि’ भी कहा जाता है।
नियम:- जब (अ, आ) के साथ (अ, आ) होता है, तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) होता है, तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) होता है, तो ‘ऊ‘ बनता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है:-
अक: सवर्ण दीर्घ: |
दीर्घ स्वर संधि के उदाहरण
दीर्घ स्वर संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
दीर्घ स्वर संधि के उदाहरण |
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हिम + आलय = हिमालय |
विघा + अर्थी = विघार्थी |
शची + इन्द्र = शचीन्द्र |
सती + ईश = सतीश |
मुनी + इन्द्र = मुनींद्र |
अनु + उदित = अनुदित |
महि + इन्द्र = महिंद्र |
रवि + अर्थ = रवींद्र |
दीक्षा + अन्त = दीक्षांत |
भानु + उदय = भानूदय |
परम + अर्थ = परमार्थ |
महा + आत्मा = महात्मा |
गिरि + ईश = गिरीश |
(ii). गुण स्वर संधि
जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) होता है, तो ‘ए’ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) होता है, तो ‘ओ’ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) होता है, तो ‘अर’ बनता है, उसे ही ‘गुण स्वर संधि’ कहते है।
गुण स्वर संधि के उदाहरण
गुण स्वर संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
गुण स्वर संधि के उदाहरण |
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देव + ईश = देवेश |
नर + इन्द्र = नरेन्द्र |
महा + इन्द्र = महेन्द्र |
भाग्य + उदय = भाग्योदय |
सूर्य + उदय = सूर्योदय |
भव + ईश = भवेश |
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र |
राजा + ईश = राजेश |
पर + उपकार = परोपकार |
गज + इन्द्र = गजेन्द्र |
(iii). वृद्धि स्वर संधि
जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) होता है, तो ‘ऐ’ बनता है और जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) होता है, तो ‘औ’ बनता है, उसे ही ‘वृद्धि स्वर संधि’ कहते है।
वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण
वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण |
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मत + ऐक्य = मतैक्य |
महा + ऐश्वर्य = माहेश्वर्य |
परम + ओषधि = परमौषधि |
जल + ओघ = जलौघ |
महा + औदार्य = महौदार्य |
एक + एक = एकैक |
सदा + एव = सदैव |
तथा + एव = तथैव |
(iv). यण स्वर संधि
जब (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर होता है, तो ‘य’ बन जाता है, जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर होता है, तो ‘व्’ बन जाता है, जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर होता है, तो ‘र’ बन जाता है। यण स्वर संधि के कुल तीन प्रकार के संधि युक्त पद होते है।
यण स्वर संधि के युक्त पद |
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‘य’ वर्ण से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। |
‘व्’ वर्ण से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। |
शब्द में ‘त्र’ वर्ण होना चाहिए। |
यण स्वर संधि में एक शर्त भी शामिल है कि ‘य’ वर्ण और ‘त्र’ वर्ण में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व सार्थक स्वर को ‘+’ के बाद लिखें, यही यण स्वर संधि कहलाती है।
यण स्वर संधि के उदाहरण
यण स्वर संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
यण स्वर संधि के उदाहरण |
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प्रति + एक = प्रत्येक |
यदि + अपि = यद्यपि |
इति + आदि = इत्यादि |
अभी + अर्थी = अभ्यर्थी |
अधि + आदेश = अध्यादेश |
अति + अन्त = अत्यन्त |
अति + अधिक = अत्यधिक |
प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण |
नि + ऊन = न्यून |
सु + आगत = स्वागत |
अधि + आहार = अध्याहार |
प्रति + आशा = प्रत्याशा |
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार |
अधि + अक्ष = अध्यक्ष |
(v). अयादि स्वर संधि
जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर होता है, तो ‘ए – अय, ‘ऐ – ‘आय’, ‘ओ – अव’ में, ‘औ – आव’ जाता है। ‘य, व्’ से पहले व्यंजन पर ‘अ, आ’ की मात्रा होती है, तो अयादि संधि हो सकती है, लेकिन यदि और कोई विच्छेद नहीं निकलता है, तो ‘+’ के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखा जाता है, उसे अयादि संधि कहते है।
अयादि संधि के उदाहरण
अयादि संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
अयादि संधि के उदाहरण |
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पौ + अन = पावन |
शे + अन = शयन |
शै + अन = शायक |
नै + अक = नायक |
पौ + अक = पावक |
ने + अन = नयन |
चे + अन = चयन |
भो + अन = भवन |
2. व्यंजन संधि
व्यंजन को व्यंजन अथवा स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे ‘व्यंजन संधि’ कहते है।
व्यंजन संधि के उदाहरण
व्यंजन संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
व्यंजन संधि के उदाहरण |
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जगत् + नाथ = जगन्नाथ (त् + न = न्न) |
सत् + जन = सज्जन (त् + ज = ज्ज) |
उत् + हार = उद्धार (त् + ह = द्ध) |
सत् + धर्म = सद्धर्म (त् + ध = द्ध) |
आ + छादन = आच्छादन (आ + छा = च्छा) |
व्यंजन संधि के नियम
व्यंजन संधि के सभी नियम निम्न प्रकार है:-
(i). वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन
जब किसी वर्ग के पहले वर्ण ‘क्, च्, ट्, त्, प्’ का मिलन किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण ‘य्, र्, ल्, व्, ह’ से या फिर किसी स्वर से हो जाता है, तो ‘क्’ को ‘ग्’, ‘च्’ को ‘ज्’, ‘ट्’ को ‘ड्’, ‘त्’ को ‘द्’, तथा ‘प्’ को ‘ब्’ में परिवर्तित कर दिया जाता है।
यदि स्वर मिलता है, तो जो स्वर की मात्रा होगी, वह हलन्त वर्ण में लग जाएगी, लेकिन यदि व्यंजन का मिलन होता है, तो वह हलन्त ही रहेंगे। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘क्’ के ‘ग्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘क्’ के ‘ग्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘क्’ के ‘ग्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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दिक् + अम्बर = दिगम्बर |
दिक् + गज = दिग्गज |
वाक् +ईश = वागीश |
‘च्’ के ‘ज्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘च्’ के ‘ज्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘च्’ के ‘ज्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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अच् +अन्त = अजन्त |
अच् + आदि =अजादी |
‘ट्’ के ‘ड्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘ट्’ के ‘ड्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘ट्’ के ‘ड्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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षट् + आनन = षडानन |
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र |
षट् + दर्शन = षड्दर्शन |
षट् + विकार = षड्विकार |
षट् + अंग = षडंग |
‘त्’ के ‘द्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘त्’ के ‘द्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ के ‘द्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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तत् + उपरान्त = तदुपरान्त |
सत् + आशय = सदाशय |
तत् + अनन्तर = तदनन्तर |
उत् + घाटन = उद्घाटन |
जगत् + अम्बा = जगदम्बा |
‘प्’ के ‘ब्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘प्’ के ‘ब्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘प्’ के ‘ब्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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अप् + द = अब्द |
अप् + ज = अब्ज |
(ii). वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ण में परिवर्तन
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण ‘क्, च्, ट्, त्, प्’ का मिलन ‘न’ अथवा ‘म’ वर्ण ‘ङ,ञ ज, ण, न, म’ के साथ होता है, तो ‘क्’ वर्ण को ‘ङ्’, ‘च्’ वर्ण को ‘ज्’, ‘ट्’ वर्ण को ‘ण्’, ‘त्’ वर्ण को ‘न्’, तथा ‘प्’ वर्ण को ‘म्’ में परिवर्तित कर दिया जाता है। जिसके उदाहरण निम्न लिखित है:-
‘क्’ के ‘ङ्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘क्’ के ‘ङ्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘क्’ के ‘ङ्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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वाक् + मय = वाङ्मय |
दिक् + मण्डल = दिङ्मण्डल |
प्राक् + मुख = प्राङ्मुख |
‘ट्’ के ‘ण्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘ट्’ के ‘ण्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘ट्’ के ‘ण्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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षट् + मास = षण्मास |
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति |
षट् + मुख = षण्मुख |
‘त्’ के ‘न्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘त्’ के ‘न्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ के ‘न्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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उत् + नति = उन्नति |
जगत् + नाथ = जगन्नाथ |
उत् + मूलन = उन्मूलन |
‘प्’ के ‘म्’ में परिवर्तन के उदाहरण
‘प्’ के ‘म्’ में परिवर्तन के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘प्’ के ‘म्’ में परिवर्तन के उदाहरण |
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अप् + मय = अम्मय |
नियम 3
जब ‘त्’ वर्ण का मिलन ‘ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व’ से अथवा किसी स्वर से होता है, तो ‘द्’ वर्ण बन जाता है।
‘म’ वर्ण के साथ ‘क’ से ‘म’ तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘म’ वर्ण के स्थान पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जाएगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘क, ख, ग, घ, ङ’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘क, ख, ग, घ, ङ’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘क, ख, ग, घ, ङ’ के उदाहरण |
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सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प |
सम् + ख्या = संख्या |
सम् + गम = संगम |
शम् + कर = शंकर |
‘म्’ + ‘च, छ, ज, झ, ञ’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘च, छ, ज, झ, ञ’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘च, छ, ज, झ, ञ’ के उदाहरण |
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सम् + चय = संचय |
किम् + चित् = किंचित |
सम् + जीवन = संजीवन |
‘म्’ + ‘ट, ठ, ड, ढ, ण’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘ट, ठ, ड, ढ, ण’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘ट, ठ, ड, ढ, ण’ के उदाहरण |
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दम् + ड = दण्ड/दंड |
खम् + ड = खण्ड/खंड |
‘म्’ + ‘त, थ, द, ध, न’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘त, थ, द, ध, न’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘त, थ, द, ध, न’ के उदाहरण |
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सम् + तोष = सन्तोष/संतोष |
किम् + नर = किन्नर |
सम् + देह = सन्देह |
‘म्’ + ‘प, फ, ब, भ, म’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘प, फ, ब, भ, म’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘प, फ, ब, भ, म’ के उदाहरण |
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सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण |
सम् + भव = सम्भव/संभव |
‘त्’ + ‘ग, घ, ध, द, ब, भ, य, र, व’ के उदाहरण
‘त्’ + ‘ग, घ, ध, द, ब, भ, य, र, व’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ + ‘ग, घ, ध, द, ब, भ, य, र, व’ के उदाहरण |
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सत् + भावना = सद्भावना |
जगत् + ईश =जगदीश |
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति |
तत् + रूप = तद्रूपत |
सत् + धर्म = सद्धर्म |
नियम 4
‘त्’ से परे ‘च्’ अथवा ‘छ्’ होने पर ‘च, ज् एवं झ्’ होने पर ‘ज्, ट् एवं ठ्’ होने पर ‘ट्, ड् एवं ढ्’ होने पर ‘ड्’ और ‘ल’ होने पर ‘ल्’ बन जाता है।
‘म्’ के साथ ‘य, र, ल, व, श, ष, स, ह’ में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘य, र, ल, व, श, ष, स, ह’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘य, र, ल, व, श, ष, स, ह’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘य, र, ल, व, श, ष, स, ह’ के उदाहरण |
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सम् + रचना = संरचना |
सम् + लग्न = संलग्न |
सम् + वत् = संवत् |
सम् + शय = संशय |
‘त्’ + ‘च, ज, झ, ट, ड, ल’ के उदाहरण
‘त्’ + ‘च, ज, झ, ट, ड, ल’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ + ‘च, ज, झ, ट, ड, ल’ के उदाहरण |
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उत् + चारण = उच्चारण |
सत् + जन = सज्जन |
उत् + झटिका = उज्झटिका |
तत् + टीका =तट्टीका |
उत् + डयन = उड्डयन |
उत् +लास = उल्लास |
नियम 5
जब ‘त्’ वर्ण का मिलन यदि ‘श्’ वर्ण से होता है, तो ‘त्’ वर्ण को ‘च्’ और ‘श्’ वर्ण को ‘छ्’ में परिवर्तित कर दिया जाता है।
जब ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘च’ वर्ण अथवा ‘छ’ वर्ण का मिलन होता है, तो ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर पर ‘च्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
उत् + चारण = उच्चारण |
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र |
उत् + छिन्न = उच्छिन्न |
‘त्’ + ‘श्’ के उदाहरण
‘त्’ + ‘श्’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ + ‘श्’ के उदाहरण |
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उत् + श्वास = उच्छ्वास |
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट |
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र |
नियम 6
जब ‘त्’ वर्ण का मिलन ‘ह्’ वर्ण से होता है, तो ‘त्’ वर्ण को ‘द्’ वर्ण और ‘ह्’ वर्ण को ‘ध्’ वर्ण में परिवर्तित कर दिया जाता है। ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘ज’ वर्ण या ‘झ’ वर्ण का मिलन होता है, तो ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘ज्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
सत् + जन = सज्जन |
जगत् + जीवन = जगज्जीवन |
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार |
‘त्’ + ‘ह’ के उदाहरण
‘त्’ + ‘ह’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘त्’ + ‘ह’ के उदाहरण |
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उत् + हार = उद्धार |
उत् + हरण = उद्धरण |
तत् + हित = तद्धित |
नियम 7
जब स्वर के बाद यदि ‘छ्’ वर्ण आता है, तो ‘छ्’ वर्ण से पहले ‘च्’ वर्ण बढ़ा दिया जाता है। ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘ट’ वर्ण अथवा ‘ठ’ वर्ण का मिलन होने पर ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘ट्’ वर्ण बन जाता है।
जब ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘ड’ वर्ण अथवा ‘ढ’ वर्ण का मिलन होने पर ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर पर ‘ड्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
तत् + टीका = तट्टीका |
वृहत् + टीका = वृहट्टीका |
भवत् + डमरू = भवड्डमरू |
‘अ, आ, इ, ई, उ, ऊ’ + ‘छ’ के उदाहरण
‘अ, आ, इ, ई, उ, ऊ’ + ‘छ’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘अ, आ, इ, ई, उ, ऊ’ + ‘छ’ के उदाहरण |
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स्व + छंद = स्वच्छंद |
आ + छादन = आच्छादन |
संधि + छेद = संधिच्छेद |
अनु + छेद = अनुच्छेद |
नियम 8
यदि ‘म्’ वर्ण के बाद ‘क्’ वर्ण से लेकर ‘म्’ वर्ण तक कोई व्यंजन होता है, तो ‘म्’ वर्ण अनुस्वार में बदल जाता है।
‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ जब ‘ल’ वर्ण का मिलन होता है, तो ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘ल्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
उत् + लास = उल्लास |
तत् + लीन = तल्लीन |
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा |
‘म्’ + ‘च्, क, त, ब, प’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘च्, क, त, ब, प’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘च्, क, त, ब, प’ के उदाहरण |
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किम् + चित = किंचित |
किम् + कर = किंकर |
सम् +कल्प = संकल्प |
सम् + चय = संचयम |
सम +तोष = संतोष |
सम् + बंध = संबंध |
सम् + पूर्ण = संपूर्ण |
नियम 9
‘म्’ वर्ण के बाद ‘म’ वर्ण का द्वित्व हो जाता है। ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘ह’ वर्ण के मिलन पर ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ के स्थान पर ‘द्’ वर्ण तथा ‘ह’ वर्ण के स्थान पर ‘ध’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
उत् + हार = उद्धार/उद्धार |
उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत |
पद् + हति = पद्धति |
‘म्’ + ‘म’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘म’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘म’ के उदाहरण |
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सम् + मति = सम्मति |
सम् + मान = सम्मान |
नियम 10
‘म्’ वर्ण के बाद ‘य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह्’ वर्ण में से कोई व्यंजन आने पर ‘म्’ वर्ण का अनुस्वार हो जाता है।
‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के साथ ‘श’ वर्ण के मिलन पर ‘त्’ वर्ण अथवा ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘च्’ वर्ण तथा ‘श’ वर्ण के स्थान पर ‘छ’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
उत् + श्वास = उच्छ्वास |
उत् + शृंखल = उच्छृंखल |
शरत् + शशि = शरच्छशि |
‘म्’ + ‘य, र, व, श, ल, स’ के उदाहरण
‘म्’ + ‘य, र, व, श, ल, स’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘म्’ + ‘य, र, व, श, ल, स’ के उदाहरण |
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सम् + योग = संयोग |
सम् + रक्षण = संरक्षण |
सम् + विधान = संविधान |
सम् + शय = संशय |
सम् + लग्न = संलग्न |
सम् + सार = संसार |
नियम 11
‘ऋ, र्, ष्’ वर्ण से परे ‘न्’ वर्ण का ‘ण्’ वर्ण हो जाता है। लेकिन ‘च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग, ‘श’ वर्ण और ‘स’ वर्ण का व्यवधान हो जाने पर ‘न्’ वर्ण का ‘ण्’ वर्ण नहीं होता है। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ वर्ण के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ वर्ण के बीच ‘च्’ वर्ण आ जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
आ + छादन = आच्छादन |
अनु + छेद = अनुच्छेद |
शाला + छादन = शालाच्छादन |
स्व + छन्द = स्वच्छन्दृंखल |
‘र्’ + ‘न, म’ के उदाहरण
‘र्’ + ‘न, म’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘र्’ + ‘न, म’ के उदाहरण |
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परि + नाम = परिणाम |
प्र + मान = प्रमाण |
नियम 12
‘स्’ वर्ण से पहले ‘अ, आ’ से भिन्न कोई स्वर आ जाए, तो ‘स्’ वर्ण को ‘ष’ वर्ण बना दिया जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
वि + सम = विषम |
अभि + सिक्त = अभिषिक्त |
अनु + संग = अनुषंग |
‘भ्’ + ‘स्’ के उदाहरण
‘भ्’ + ‘स्’ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
‘भ्’ + ‘स्’ के उदाहरण |
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अभि + सेक = अभिषेक |
नि + सिद्ध = निषिद्ध |
वि + सम = विषम |
नियम 13
यदि किसी शब्द में कहीं भी ‘ऋ, र, ष’ वर्ण हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ वर्ण होता है तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर ‘क, ख, ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व’ वर्ण में से कोई भी वर्ण होता है, तो सन्धि होने पर ‘न’ वर्ण के स्थान पर ‘ण’ वर्ण हो जाता है।
जब ‘द्’ वर्ण के साथ ‘क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह’ वर्ण का मिलन होता है, तो ‘द’ के स्थान पर ‘त्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
राम + अयन = रामायण |
परि + नाम = परिणाम |
नार + अयन = नारायण |
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य |
तद् + पर = तत्पर |
सद् + कार = सत्कार |
3. विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद स्वर अथवा व्यंजन आने पर जो परिवर्तन होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते है।
विसर्ग संधि के उदाहरण
विसर्ग संधि के उदाहरण निम्नलिखित है:-
विसर्ग संधि के उदाहरण |
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मनः + ज = मनोज |
मनः + रथ = मनोरथ |
मनः + हर = मनोहर |
मनः + भाव = मनोभाव |
निः + फल = निष्फल |
निः + चय = निश्चित |
निः + छल = निश्छल |
निः + सन्देह = निस्संदेह |
निः + मल = निर्मल |
निः + चल = निश्चल |
निः + उपाय = निरुपाय |
निः + कपट = निष्कपट |
निः + विकार = निर्विकार |
अधः + गति = अधोगति |
यशः + अभिलाषा = यशोभिलाषा |
यशः + दा = यशोदा |
यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी |
यशः + गाथा = यशोगाथा |
पयः + धर = पयोधर |
दुः + गम = दुर्गम |
दुः + बल = दुर्बल |
दुः + साहस = दुस्साहस |
दुः + गन्ध = दुर्गन्ध |
दुः + कर = दुष्कर |
दुः + तर = दुष्कर |
दुः + चरित्र = दुष्चरित्र |
अतः + एव = अतएव |
नमः + ते = नमस्ते |
धनुः + टकार = धनुषटकार |
तेजः + मय = तेजोमय |
सरः + ज = सरोज |
प्रथमः + अध्याय = प्रथमोअध्याय |
पुरः + कार = पुरस्कार |
पुनः + उक्ति = पुनरुक्ति |
विसर्ग संधि के नियम
विसर्ग संधि के कुल 10 नियम है, जो कि निम्न प्रकार है:-
नियम 1
विसर्ग के साथ ‘च’ वर्ण अथवा ‘छ’ वर्ण के मिलन से विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ वर्ण बन जाता है।
विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ वर्ण और विसर्ग के बाद में भी ‘अ’ वर्ण अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण, अथवा ‘य, र, ल, व’ होता है, तो विसर्ग का ‘ओ’ वर्ण हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल |
अधः + गति = अधोगति |
मनः + बल = मनोबल |
निः + चय = निश्चय |
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र |
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र |
निः + छल = निश्छल |
तपः + चर्या = तपश्चर्या |
अन्तः + चेतना = अन्तश्चेतना |
हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र |
अन्तः + चक्षु = अन्तश्चक्षु |
नियम 2
विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा ‘आ’ वर्ण के अतिरिक्त कोई स्वर होता है और बाद में कोई स्वर होता है, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा ‘य, र, ल, व, ह’ में से कोई होता है, तो विसर्ग का ‘र’ अथवा ‘र्’ वर्ण हो जाता है।
विसर्ग के साथ ‘श’ वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
दुः + शासन = दुश्शासन |
यशः + शरीर = यशश्शरीर |
निः + शुल्क = निश्शुल्क |
निः + आहार = निराहार |
निः + आशा = निराशा |
निः + धन = निर्धन |
निः + श्वास = निश्श्वास |
चतुः + श्लोकी = चतुश्श्लोकी |
निः + शंक = निश्शंक |
नियम 3
विसर्ग से पहले यदि कोई स्वर होता है और बाद में ‘च, छ, श’ वर्ण होता है, तो विसर्ग का ‘श’ वर्ण हो जाता है। विसर्ग के साथ ‘ट, ठ, ष’ वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार |
चतुः + टीका = चतुष्टीका |
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि |
निः + चल = निश्चल |
निः + छल = निश्छल |
दुः + शासन = दुश्शासन |
नियम 4
विसर्ग के बाद यदि ‘त’ वर्ण अथवा ‘स’ वर्ण होता है, तो विसर्ग ‘स्’ वर्ण बन जाता है।
यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ वर्ण अथवा ‘आ’ वर्ण के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर होता है तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘क, ख, प, फ’ में से कोई भी होता है, तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ वर्ण बन जाएगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
निः + कलंक = निष्कलंक |
दुः + कर = दुष्कर |
आविः + कार = आविष्कार |
चतुः + पथ = चतुष्पथ |
निः + फल = निष्फल |
निः + काम = निष्काम |
निः + प्रयोजन = निष्प्रयोजन |
बहिः + कार = बहिष्कार |
निः + कपट = निष्कपट |
नमः + ते = नमस्ते |
निः + संतान = निस्संतान |
दुः + साहस = दुस्साहस |
नियम 5
विसर्ग से पहले यदि ‘इ’ तथा ‘उ’ वर्ण और विसर्ग के बाद में ‘क, ख, ट, ठ, प, फ’ में से कोई वर्ण होता है, तो विसर्ग का ‘ष’ वर्ण हो जाता है।
यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ अथवा ‘आ’ का स्वर होता है तथा विसर्ग के बाद ‘क, ख, प, फ’ वर्ण होता है, तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
अधः + पतन = अध:पतन |
प्रातः + काल = प्रात:काल |
अन्त: + पुर = अन्त:पुर |
वय: + क्रम = वय:क्रम |
रज: + कण = रज:कण |
तप: + पूत = तप:पूत |
पय: + पान = पय:पान |
अन्त: + करण = अन्त:करण |
विसर्ग संधि के अपवाद (1)
विसर्ग संधि के अपवाद निम्नलिखित है:-
भा: + कर = भास्कर |
नम: + कार = नमस्कार |
पुर: + कार = पुरस्कार |
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर |
बृह: + पति = बृहस्पति |
पुर: + कृत = पुरस्कृत |
तिर: + कार = तिरस्कार |
निः + कलंक = निष्कलंक |
चतुः + पाद = चतुष्पाद |
निः + फल = निष्फल |
नियम 6
विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ तथा ‘आ’ वर्ण होता है और विसर्ग के बाद में यदि कोई भिन्न व्यंजन होता है, तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
लेकिन, इस बात का ध्यान रहना चाहिए कि विसर्ग के साथ ‘त’ वर्ण अथवा ‘थ’ वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ वर्ण बन जाएगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
अन्त: + तल = अन्तस्तल |
नि: + ताप = निस्ताप |
दु: + तर = दुस्तर |
नि: + तारण = निस्तारण |
निः + तेज = निस्तेज |
नम: + ते = नमस्ते |
मन: + ताप = मनस्ताप |
बहि: + थल = बहिस्थल |
निः + रोग = निरोग |
निः + रस = नीरस |
नियम 7
यदि विसर्ग के बाद ‘क, ख, प, फ’ वर्ण होता है, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। विसर्ग के साथ ‘स’ वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ वर्ण बन जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
नि: + सन्देह = निस्सन्देह |
दु: + साहस = दुस्साहस |
नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ |
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न |
नि: + संतान = निस्संतान |
दु: + साध्य = दुस्साध्य |
मन: + संताप = मनस्संताप |
पुन: + स्मरण = पुनस्स्मरण |
अंतः + करण = अंतःकरण |
नियम 8
यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ, व, उ’ स्वर होता है तथा विसर्ग के बाद में ‘र’ वर्ण होता है, तो सन्धि होने पर विसर्ग का लोप हो जाएगा तथा साथ ही ‘इ, व, उ’ की मात्रा ‘ई, व, ऊ’ की हो जाएगी। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
नि: + रस = नीरस |
नि: + रव = नीरव |
नि: + रोग = नीरोग |
दु: + राज = दूराज |
नि: + रज = नीरज |
नि: + रन्द्र = नीरन्द्र |
चक्षु: + रोग = चक्षूरोग |
दु: + रम्य = दूरम्य |
नियम 9
यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर होता है तथा विसर्ग के साथ ‘अ’ वर्ण के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जाएगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
अत: + एव = अतएव |
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद |
पय: + आदि = पयआदि |
तत: + एव = ततएव |
नियम 10
यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर होता है तथा विसर्ग के साथ ‘अ, ग, घ, ङ, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह, वर्ण में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जाएगा। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा |
सर: + ज = सरोज |
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध |
यश: + धरा = यशोधरा |
मन: + योग = मनोयोग |
अध: + भाग = अधोभाग |
तप: + बल = तपोबल |
मन: + रंजन = मनोरंजन |
मन: + अनुकूल = मनोनुकूल |
मन: + हर = मनोहर |
तप: + भूमि = तपोभूमि |
पुर: + हित = पुरोहित |
यश: + दा = यशोदा |
अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र |
विसर्ग संधि के अपवाद (2)
विसर्ग संधि के अपवाद निम्नलिखित है:-
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन |
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण |
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार |
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण |
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व |
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय |
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी |
हिंदी की स्वतंत्र संधियाँ
उपर्युक्त तीनों संधियाँ (स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि) संस्कृत व्याकरण से हिंदी व्याकरण में ली गई है। हिंदी व्याकरण की कुल 6 प्रवृत्तियों वाली संधियाँ होती है, जो कि निम्नलिखित है:-
हिंदी की स्वतंत्र संधियाँ |
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महाप्राणीकरण |
घोषीकरण |
हस्वीकरण स्वर संधि |
आगम स्वर संधि |
व्यंजन लोपीकरण |
स्वर व्यंजन लोपीकरण |
1. पूर्ण स्वर लोप
जब दो स्वरों के मिलन होता है, तो वहाँ पर पूर्ण स्वर का लोप हो जाता है।
पूर्ण स्वर लोप के भेद
पूर्ण स्वर लोप के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
(i). अविकारी पूर्णस्वर लोप
अविकारी पूर्णस्वर लोप के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मिल + अन = मिलन |
लोप
छल + आवा = छलावा |
(ii). विकारी पूर्णस्वर लोप
विकारी पूर्णस्वर लोप के उदाहरण निम्नलिखित है:-
भूल + आवा = भुलावा |
लूट + एरा = लुटेरा |
लात + ईयल = लटियल |
2. हस्वकारी स्वर संधि
जब दो स्वरों के मिलन होता है, तो प्रथम खंड का अंतिम स्वर ‘हस्व’ हो जाता है।
(i). अविकारी हस्वकारी
अविकारी हस्वकारी के उदाहरण निम्नलिखित है:-
साधु + ओं = साधुओं |
डाकू + ओं = डाकुओं |
(ii). विकारी हस्वकारी
विकारी हस्वकारी के उदाहरण निम्नलिखित है:-
साधु + अक्कडी = सधुक्कडी |
बाबू + आ = बबुआ |
3. आगम स्वर संधि
आगम स्वर संधि की कुल 2 स्थितियां है, जो कि निम्नलिखित है:-
(i). अविकारी आगम स्वर
अविकारी आगम स्वर के अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं होता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
तिथि + आँ = तिथियाँ |
शक्ति + ओं = शक्तियों |
(ii). विकारी आगम स्वर
विकारी आगम स्वर का अंतिम स्वर विकृत हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
नदी + आँ = नदियाँ |
लड़की + आँ = लड़कियाँ |
4. पूर्णस्वर लोपी व्यंजन संधि
पूर्णस्वर लोपी व्यंजन संधि में प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
तुम + ही = तुम्हीं |
उन + ही = उन्हीं |
5. स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि
स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि में प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
कुछ + ही = कुछी |
इस + ही = इसी |
6. मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि
मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि में प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
वह + ही = वही |
यह + ही = यही |
7. पूर्ण स्वर हस्वकारी व्यंजन संधि
पूर्ण स्वर हस्वकारी व्यंजन संधि में प्रथम खंड का प्रथम वर्ण ‘हस्व’ हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
अकन + कटा = कनकटा |
पानी + घाट = पनघट/पनिघट |
8. महाप्राणीकरण व्यंजन संधि
महाप्राणीकारण व्यंजन संधि में यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ‘ब’ होता है तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ होता है, तो ‘ह’ वर्ण का ‘भ’ वर्ण हो जाता है और ‘ब’ वर्ण का लोप हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
अब + ही = कभी |
कब + ही = कभी |
सब + ही = सभी |
9. सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि
सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि में प्रथम खंड के अनुनासिक सब्जयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है। उसकी सिर्फ अनुनासिकता बची रहती है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
जहाँ + ही = जहीं |
कहाँ + ही = कहीं |
वहाँ + ही = वहीं |
10. आकारागम व्यंजन संधि
आकारागम व्यंजन संधि में संधि करने पर बीच में आकार का आगम हो जाता है। इसके उदाहरण निम्नलिखित है:-
सत्य + नाश = सत्यानाश |
मूसल + धार = मूसलाधार |
संधि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
संधि की परिभाषा क्या है?
दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को संधि कहते है। संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के आदि वर्ण का मेल होता है।
अन्य शब्दों में, दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल व जोड़ को संधि कहते है अर्थात दो वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते है।
संधि के कितने भेद है?
संधि के कुल 3 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि
स्वर संधि के कितने भेद है?
स्वर संधि के कुल 5 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. दीर्घ स्वर संधि
2. गुण स्वर संधि
3. वृद्धि स्वर संधि
4. यण स्वर संधि
5. अयादि स्वर संधि
‘जगदीश’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). अयादि स्वर संधि
(ब). गुण स्वर संधि
(स). व्यंजन संधि
(द). विसर्ग संधि
उत्तर:- व्यंजन संधि
‘उत्तरोत्तर’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). गुण स्वर संधि
(ब). दीर्घ स्वर संधि
(स). अयादि स्वर संधि
(द). व्यंजन संधि
उत्तर:- गुण संधि
‘वधुस्तव’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). दीर्घ स्वर संधि
(ब). गुण स्वर संधि
(स). यण स्वर संधि
(द). अयादि स्वर संधि
उत्तर:- दीर्घ स्वर संधि
‘अध्यादेश’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). गुण स्वर संधि
(ब). यण स्वर संधि
(स). वृद्धि स्वर संधि
(द). अयादि स्वर संधि
उत्तर:- यण स्वर संधि
निम्नलिखित में से किस शब्द में व्यंजन संधि है?
(अ). उज्ज्वल
(ब). मनोरथ
(स). पाव
(द). निस्सार
उत्तर:- उज्ज्वल
निम्नलिखित में से किस शब्द में अयादि संधि है?
(अ). भवन
(ब). सदैव
(स). इत्यादि
(द). जगन्नाथ
उत्तर:- भवन
‘अत्युक्ति’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). दीर्घ स्वर संधि
(ब). गुण स्वर संधि
(स). यण स्वर संधि
(द). वृद्धि स्वर संधि
उत्तर:- यण स्वर संधि
‘निराकार’ शब्द में कौनसी सन्धि है?
(अ). स्वर संधि
(ब). विसर्ग संधि
(स). व्यंजन संधि
(द). यण स्वर संधि
उत्तर:- विसर्ग संधि
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।