वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा : Vakrokti Alankar in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप वक्रोक्ति अलंकार से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा : Vakrokti Alankar in Hindi
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकालता है, तो उसे ‘वक्रोक्ति अलंकार’ कहते है।
‘वक्रोक्ति’ का अर्थ ‘वक्र उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी उक्ति’ होता है। कहने वाले का अर्थ कुछ और होता है, लेकिन सुनने वाला उससे कुछ दूसरा ही अर्थ निकाल लेता है।
जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अर्थ न ग्रहण कर सुनने वाला व्यक्ति अन्य ही चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे, तो उसे ‘वक्रोक्ति अलंकार’ कहते है।
वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण
वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित है:-
उदाहरण 1
एक कह्यो वर देत सिव,
भाव चाहिए मीत।
सुनि कह कोउ,
भोले भवहिं भाव चाहिए मीत।।
स्पष्टीकरण:- एक ने कहा कि ‘शिव’ वर देते है, लेकिन मन में भाव होना चाहिए। यह सुनकर दूसरे ने कहा कि भोले शिव को भी क्या भाव चाहिए? अर्थात नहीं चाहिए, क्योंकि वे इतने भोले है कि बिना भाव के ही ‘वर’ दे डालते है। यहाँ ‘भाव चाहिए’ वाक्य का ‘भाव नहीं चाहिए’ यह दूसरा अर्थ कल्पित किया गया है।
उदाहरण 2
भिक्षुक गो कित को गिरिजे।
सो तो माँगन को बलिद्वार गयो री।।
स्पष्टीकरण:- माता लक्ष्मी ‘माता पार्वती’ से मजाक में पूछती है कि हे गिरिजा! तुम्हारा वह भिखारी (शिव) कहाँ गया? माता पार्वती माता लक्ष्मी के अर्थ को समझ लेती है, लेकिन विनोद का उत्तर मजाक में देने के लिए जानबूझकर भिखारी का दूसरा अर्थ (विष्णु) कल्पित करती है (लगाती है) और उत्तर देती है कि भिखारी कहाँ जायेगा? माँगने को गया है (राजा बलि के द्वार पर माँगने को विष्णु गये थे।) यहाँ माता लक्ष्मी द्वारा एक अर्थ में कहे गये भिक्षुक (शिव) शब्द का माता पार्वती ने दूसरा अर्थ (विष्णु) कल्पित किया।
उदाहरण 3
है पशुपाल कहाँ सजनी!
जमुना-तट धेनु चराय रहो री।
स्पष्टीकरण:- माता लक्ष्मी कहती है कि वह पशुपाल (पशुपति = शिव का नाम) कहाँ है? माता पार्वती पशुपाल का दूसरा अर्थ पशुओं का पालक कल्पित करके उत्तर देती है कि यमुना-तट के किनारे गायें चरा रहा होगा (विष्णु कृष्णावतार में यमुना-तट पर गायें चराते थे।)
उदाहरण 4
कौन द्वार पर? हरि मैं राधे!
क्या वानर का काम यहाँ?
स्पष्टीकरण:- राधा भीतर से पूछती है कि बाहर तुम कौन हो? कृष्ण उत्तर देते है कि राधे मैं हरि हूँ। राधा ‘हरि’ का अर्थ कृष्ण न लगाकर वानर लगाती है और कहती है कि इस नगर में वानर का क्या काम? कृष्ण द्वारा एक अर्थ में कहे गये ‘हरि’ शब्द का राधा दूसरा अर्थ ‘वानर’ कल्पित करती है।
उदाहरण 5
कौन द्वार पर,
राधे मैं हरि।
क्या कहा यहाँ?
जाओ वन में।।
उदाहरण 6
कौ तुम? घनश्याम मैं,
तो जाय काहूँ वर्षा करो।
चित्तचोर तेरा राधिके,
धन कहाँ चोरी करो।।
उदाहरण 7
एक कबूतर देख हाथ में,
पूछा अपर कहा है।
उसने कहा अपर कैसा?
उङ गया यह सपर है।।
उदाहरण 8
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मोकहँ भोगू।।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद
वक्रोक्ति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
वक्रोक्ति अलंकार के भेद |
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काकु वक्रोक्ति अलंकार |
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार |
1. काकु वक्रोक्ति अलंकार
जब वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का उसकी कंठ-ध्वनि के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकालता है, तो वहाँ पर ‘काकु वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।
काकु वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण
काकु वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
उदाहरण 1
कौन द्वार पर, राधे मैं हरि।
क्या कहा यहाँ? जाओ वन में।
उदाहरण 2
कौन तुम? मैं घनश्याम।
तो बरसो कित जाय।।
2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाता है, तो वहाँ ‘श्लेष वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो ।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।
वक्रोक्ति अलंकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा क्या है?
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकालता है, तो उसे ‘वक्रोक्ति अलंकार’ कहते है।
‘वक्रोक्ति’ का अर्थ ‘वक्र उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी उक्ति’ होता है। कहने वाले का अर्थ कुछ और होता है, लेकिन सुनने वाला उससे कुछ दूसरा ही अर्थ निकाल लेता है।
जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अर्थ न ग्रहण कर सुनने वाला व्यक्ति अन्य ही चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे, तो उसे ‘वक्रोक्ति अलंकार’ कहते है। -
वक्रोक्ति अलंकार के कितने भेद है?
वक्रोक्ति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. काकु वक्रोक्ति अलंकार
2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार -
काकु वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा क्या है?
जब वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का उसकी कंठ-ध्वनि के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकालता है, तो वहाँ पर ‘काकु वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।
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श्लेष वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा क्या है?
जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाता है, तो वहाँ ‘श्लेष वक्रोक्ति अलंकार’ होता है।
अंतिम शब्द
अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।