विरोधाभास अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

विरोधाभास अलंकार की परिभाषा : Virodhabhas Alankar in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘विरोधाभास अलंकार की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप विरोधाभास अलंकार से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
विरोधाभास अलंकार की परिभाषा : Virodhabhas Alankar in Hindi
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध नहीं होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।
साधारण शब्दों में:- जहाँ वास्तविक विरोध न होकर सिर्फ विरोध का आभास होता है, तो वहाँ ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण निम्न प्रकार है:-
उदाहरण 1
आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।
स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त पंक्ति में ‘आग हूँ’ और ‘शून्य हूं’ में विरोध दिखाई पड़ता है। सच तो यह है कि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं हो रहा है। यह विरोध तो प्रेम की तन्मयता का सूचक है। अतः यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।
उदाहरण 2
बैन सुन्या जबतें मधुर,
तबतें सुनत न बैन।
स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त पंक्ति में ‘बैन सुन्या’ और ‘सुनत न बैन’ में विरोध दिखाई पड़ता है। सच तो यह है कि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं हो रहा है। यह विरोध तो प्रेम की तन्मयता का सूचक है। अतः यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।
उदाहरण 3
या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त पंक्ति में श्याम रंग में डूबने पर चित्त के उज्ज्वल होने की बात कहकर विरोध का कथन है, लेकिन श्याम रंग का अभिप्राय कृष्ण (ईश्वर) के प्रेम से लेने पर अर्थ होगा कि जैसे-जैसे चित्त ईश्वर के अनुराग में डूबता है, वैसे-वैसे चित्त और भी अधिक निर्मल होता जाता है। अतः विरोध का आभास होने से यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।
उदाहरण 4
या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
स्पष्टीकरण:- उपर्युक्त पंक्ति में श्याम रंग में डूबने पर चित्त के उज्ज्वल होने की बात कहकर विरोध का कथन है, लेकिन श्याम रंग का अभिप्राय कृष्ण (ईश्वर) के प्रेम से लेने पर अर्थ होगा कि जैसे-जैसे चित्त ईश्वर के अनुराग में डूबता है, वैसे-वैसे चित्त और भी अधिक निर्मल होता जाता है। अतः विरोध का आभास होने से यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।
उदाहरण 5
विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
केसव जीवन हार को, असेस दुख हर लेत।।
उदाहरण 6
राजघाट पर पुल बँधत,
गयी पिया के साथ।
आज गये कल देखिके,
आज ही लौटे नाथ।।
उदाहरण 7
शीतल ज्वाला जलती है,
ईंधन होता दृग जल का।
यह व्यर्थ साँस चल चलकर,
करती है काम अनिल का।।
उदाहरण 8
धनि सूखै भरे भादों माहा।
अबहुँ न आये सींचने नाहा।।
उदाहरण 9
अचल हो उठते है चंचल,
चपल बन जाते अविचल।
पिघल पङते हैं पाहन दल,
कुलिश भी हो जाता कोमल।।
उदाहरण 10
सुलगी अनुराग की आग वहाँ,
जल से भरपूर तङाग जहाँ।
कत बेकाज चलाइयत,
चतुराई की चाल।
कहे देत यह रावरे,
सब गुन बिन गुन माल।।
उदाहरण 11
भर लाऊँ सीपी में सागर,
प्रिय! मेरी अब हार विजय क्या?
विरोधाभास अलंकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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विरोधाभास अलंकार की परिभाषा क्या है?
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध नहीं होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।
साधारण शब्दों में:- जहाँ वास्तविक विरोध न होकर सिर्फ विरोध का आभास होता है, तो वहाँ ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।
अंतिम शब्द
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।
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