दृश्य काव्य की परिभाषा, भेद और उदाहरण

Drishya Kavya Ki Paribhasha in Hindi

दृश्य काव्य की परिभाषा : Drishya Kavya in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘दृश्य काव्य की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप दृश्य काव्य से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

दृश्य काव्य की परिभाषा : Drishya Kavya in Hindi

जिस काव्य अथवा साहित्य को आँखों से देखकर, प्रत्यक्ष दृश्यों का अवलोकन कर रसभाव की अनुभूति की जाती है, उसे ‘दृश्य काव्य’ कहते है। इस आधार पर दृश्य काव्य की अवस्थिति मंच और मंचीय होती है।

साधारण शब्दों में:- जिस काव्य की आनंदानुभूति अभिनय को देखकर तथा पात्रों से कथोपकथन को सुनकर होती है, उसे ‘दृश्य काव्य’ कहते है।

जिस काव्य को रंगमंच पर देखकर उसका आनंद लिया जाता है, तो वह ‘दृश्य काव्य’ कहलाता है। दृश्य काव्य का अर्थ:- ‘देखने के योग्य’ होता है अर्थात जिसका वर्ण्य विषय मंच पर देखने योग्य होता है।

इस प्रकार से काव्य के कथानक को अभिनय द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है और व्यक्ति उस अभिनय को देखकर आनंदित हो उठता है, इसी आधार पर इसे ‘दृश्य काव्य’ कहते है।

लेकिन, वर्तमान समय में दृश्य काव्य को सिर्फ ‘दृश्य काव्य’ कहना अनुचित होगा, क्योंकि नाटक को रेडियो पर सुनकर भी आनंद की प्राप्ति होती है।

इसलिए, इसे ‘दृक-श्राव्य काव्य’ भी कह सकते है। आज रेडियो नाटक रूप प्रचलित है, लेकिन रंगमंच पर प्रत्यक्ष प्रदर्शन से ही नाटक अधिक प्रभावी होता है।

दृश्य काव्य के उदाहरण

दृश्य काव्य के उदाहरण निम्नलिखित है:-

दृश्य काव्य के उदाहरण
नाटक
चलचित्र
रामायण
महाभारत
कृष्ण लीला

दृश्य काव्य के भेद

दृश्य काव्य के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

दृश्य काव्य के भेद
रूपक काव्य
उपरूपक काव्य

1. रूपक काव्य

रूपक काव्य की परिभाषा देते हुए:- ‘तदूपारोपात तु रूपम्।’ कहा गया है।

रूपक काव्य के भेद

भारतीय आचार्यों ने वस्तु, नेता तथा रस के तारतम्य वैभिन्य और वैविध्य के आधार पर रूपक काव्य के कुल 10 भेद स्वीकार किए है, जो कि निम्नलिखित है:-

रूपक काव्य के भेद
नाटक
प्रकरण
भाषा
प्रहसन
डिम
व्यायोग
समवकार
वीथी
अंक
ईहामृग

रूपक काव्य के इन 10 भेदों में से ‘नाटक’ भी एक भेद है। लेकिन प्रायः ‘नाटक’ को रूपक की संज्ञा भी दी जाती है। नाट्यशास्त्र में भी रूपक काव्य के लिए नाटक शब्द प्रयोग हुआ है।

अग्नि पुराण के अनुसार रूपक काव्य के भेद

अग्नि पुराण के अनुसार रूपक काव्य के कुल 28 भेद बताए गए है, जो कि निम्नलिखित है:-

अग्नि पुराण के अनुसार रूपक काव्य के भेद
नाटक
प्रकरण
डिम
ईहामृग
समवकार
प्रहसन
व्यायोग
भाव
विथी
अंक
त्रोटक
नाटिका
सदृक
शिल्पक
विलासीका
दुर्मल्लिका
प्रस्थान
भाणिक
भाणी
गोष्ठी
हल्लीशका
काव्य
श्रीनिगदित
नाट्यरूपक
रासक
उल्लाव्यक
प्रेक्षण

2. उपरूपक काव्य

कुछ विद्वान इसके अंतर्गत गद्य काव्य, पद्य काव्य तथा चंपू काव्य को उपरूपक काव्य में शामिल करते है।

अग्नि पुराण के अनुसार उपरूपक काव्य के भेद

अग्नि पुराण के अनुसार उपरूपक के कुल 18 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-

अग्नि पुराण के अनुसार उपरूपक काव्य के भेद
नाटिका
त्रोटक
गोष्ठी
सदृक
नाट्यरासक
प्रस्थान
उल्लासटय
काव्य
प्रेक्षणा
रासक
संलापक
श्रीगदित
शिंपल
विलासीका
दुर्मल्लिका
परकणिका
हल्लीशा
भणिका

दृश्य काव्य से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. दृश्य काव्य की परिभाषा क्या है?

    जिस काव्य अथवा साहित्य को आँखों से देखकर, प्रत्यक्ष दृश्यों का अवलोकन कर रसभाव की अनुभूति की जाती है, उसे ‘दृश्य काव्य’ कहते है। इस आधार पर दृश्य काव्य की अवस्थिति मंच और मंचीय होती है।
    साधारण शब्दों में:- जिस काव्य की आनंदानुभूति अभिनय को देखकर तथा पात्रों से कथोपकथन को सुनकर होती है, उसे ‘दृश्य काव्य’ कहते है।

  2. दृश्य काव्य के कितने भेद है?

    दृश्य काव्य के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. रूपक काव्य
    2. उपरूपक काव्य

  3. रूपक काव्य के कितने भेद है?

    भारतीय आचार्यों ने वस्तु, नेता तथा रस के तारतम्य वैभिन्य और वैविध्य के आधार पर रूपक काव्य के कुल 10 भेद स्वीकार किए है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. नाटक
    2. प्रकरण
    3. भाषा
    4. प्रहसन
    5. डिम
    6. व्यायोग
    7. समवकार
    8. वीथी
    9. अंक
    10. ईहामृग

  4. अग्नि पुराण के अनुसार उपरूपक काव्य के कितने भेद है?

    अग्नि पुराण के अनुसार उपरूपक काव्य के भेद कुल 28 बताए है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. नाटिका
    2.. त्रोटक
    3. गोष्ठी
    4. सदृक
    5. नाट्यरासक
    6. प्रस्थान
    7. उल्लासटय
    8. काव्य
    9. प्रेक्षणा
    10. रासक
    11. संलापक
    12. श्रीगदित
    13. शिंपल
    14. विलासीका
    15. दुर्मल्लिका
    16. परकणिका
    17. हल्लीशा
    18. भणिका

  5. अग्नि पुराण के अनुसार रूपक काव्य के कितने भेद है?

    अग्नि पुराण के अनुसार रूपक काव्य के कुल 28 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
    1. नाटक
    2. प्रकरण
    3. डिम
    4. ईहामृग
    5. समवकार
    6. प्रहसन
    7. व्यायोग
    8. भाव
    9. विथी
    10. अंक
    11. त्रोटक
    12. नाटिका
    13. सदृक
    14. शिल्पक
    15. विलासीका
    16. दुर्मल्लिका
    17. प्रस्थान
    18. भाणिक
    19. भाणी
    20. गोष्ठी
    21. हल्लीशका
    22. काव्य
    23. श्रीनिगदित
    24. नाट्यरूपक
    25. रासक
    26. उल्लाव्यक
    27. प्रेक्षण

अंतिम शब्द

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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