वर्णिक छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

वर्णिक छंद की परिभाषा : Varnik Chhand in Hindi:- आज के इस लेख में हमनें ‘वर्णिक छंद की परिभाषा’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।
यदि आप वर्णिक छंद की परिभाषा से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-
वर्णिक छंद की परिभाषा : Varnik Chhand in Hindi
वह छंद, जिनमें वर्णों की संख्या, गणविधान, क्रम तथा लघु-गुरु स्वर के आधार पर पद रचना होती है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते है।
अन्य शब्दों में:- सिर्फ वर्णों की गणना के आधार पर रचे गए छन्द ‘वर्णिक छन्द’ कहलाते है। अथवा जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान होती है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते है।
वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या एकसमान रहती है तथा लघु व गुरु स्वर का क्रम समान रहता है।
‘वृत्तों’ की भांति वर्णिक छंद में लघु तथा गुरु स्वर का क्रम निश्र्चित नहीं होता है, सिर्फ वर्णों की संख्या ही निर्धारित रहती है और इसमें 4 चरणों का होना भी अनिवार्य नहीं होता है।
वर्णिक छंद के भेद
वर्णिक छंद के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
वर्णिक छंद के भेद |
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साधारण वर्णिक छंद |
दंडक वर्णिक छंद |
1. साधारण वर्णिक छंद
1 से 26 वर्ण तक के चरण रखने वाले को छंदों को ‘साधारण वर्णिक छंद’ कहते है।
साधारण वर्णिक छंद के उदाहरण
साधारण वर्णिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
11 वर्णों वाले | इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, शालिनी, भुजंगी, आदि। |
12 वर्णों वाले | द्रुतविलम्बित, तोटक, वंशस्थ, आदि। |
14 वर्ण वाला | वसंततिलका |
15 वर्ण वाला | मालिनी |
17 वर्ण वाले | मंद्रक्रांता, शिखरिणी, आदि। |
19 वर्ण वाला | शार्दूलविक्रीडित |
22 से 26 वर्ण वाला सवैया | मत्तगयंद, मदिरा, सुमुखी, मुक्तहरा, द्रुमिल, गंगोदक, किरीट, सुंदरी, अरविंद, आदि। |
2. दंडक वर्णिक छंद
26 वर्ण से अधिक चरण रखने वाले छंदों को दंडक वर्णिक छंद’ कहते है।
दंडक वर्णिक छंद के उदाहरण
दंडक वर्णिक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
26 वर्ण से अधिक वाले | मनहरण, घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, आदि। |
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प्रमुख वर्णिक छंद
सभी प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित है:-
1. सवैया छंद
सवैया छंद एक ‘वर्णिक संवृत्त छंद’ है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ‘लयमूलक छंद’ है। इस छंद में आरंभ से अंत तक कोई एक गण दोहराया जाता है। चरणों में अंत के 2 वर्णों में प्रथम वर्ण लघु (।) तथा द्वितीय वर्ण गुरु (ऽ) होता है।
सवैया छंद अनेक प्रकार के होते है और इनके नाम भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। सवैया छंद में एक ही वर्णिक गण को बार-बार आना चाहिए। इनका निर्वाह नहीं होता है।
सवैया छंद के उदाहरण
सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
लोरी सरासन संकट कौ,
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।
सवैया छंद के भेद
सवैया के सभी भेद निम्नलिखित है:-
सवैया छंद के भेद |
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मदिरा सवैया छंद |
मत्तगयंद सवैया छंद |
सुमुखी सवैया छंद |
मुक्तहरा सवैया छंद |
दुर्मिल सवैया छंद |
गंगोदक सवैया छंद |
किरीट सवैया छंद |
सुंदरी सवैया छंद |
अरविंद सवैया छंद |
(i). मदिरा सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते है। इस छंद में 7 भगण (ऽ।।) तथा अंत में गुरु (ऽ) होता है।
मदिरा सवैया छंद के उदाहरण
मदिरा सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
भासत गौरि गुसांइन को वर राम दुह धनु खंड कियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
मालिन को जयमाल गुहौ हरि के हिय जानकि मेल दियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ
रावण की उतरी मदिरा चुपचाप पयान जु लंक कियो।
ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ
राम वरी सिय मोद-भरी नभ में सुर जै जयकार कियो॥
(ii). मत्तगयंद सवैया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद को ‘मालती’ तथा ‘इन्दव’ भी कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते है। मत्तगयंद छंद में 7 भगण (ऽ।।) तथा अंत में 2 गुरु (ऽऽ) होते है। इसके चारों चरणों में तुकांत होता है।
मत्तगयंद सवैया छंद के उदाहरण
मत्तगयंद छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽऽ
सेस महेस गणेस सुरेस दिनेसहु जाहि निरंतर गावैं।
ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽऽ
जाहि अनादि, अनंत, अखंड, अछेद अभेद, सुवेद बतावैं।
ऽ। ।ऽ। । ऽ।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। । ऽ। ।ऽऽ
ताहि अहीर कि छोहरियाँ छछिया भरि छाछ प नाच नचावैं।
(iii). सुमुखी सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के आदि में एक लघु (।) वर्ण जोड़ने से सुमुखी सवैया छंद बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते है। इसमें 11वें और 12वें वर्ण पर यति होती है। इसमें 7 जगण (।ऽ।) और चरणों के अंत के वर्णों में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
सुमुखी सवैया छंद के उदाहरण
सुमुखी सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ
हिये बनमाल रसाल धरे, सिर मोर-किरीट महा लसिबो।
।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कसे कटि पीत-पटी, लकुटी कर आनन पै मुरली रसिबो।
।ऽ। । ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ
कलिंदि के तीर खड़े बल-वीर अहीरन बाँह गये हँसिबो।
।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
सदा हमारे हिय-मंदिर में यह बानक सों करिये बसिबो॥
(iv). मुक्तहरा सवैया छंद
मुक्तहरा सवैया छंद को ‘मोतियदाम’ भी कहते है। मत्तगयंद छंद के आदि-अंत में एक-एक लघु (।) वर्ण जोड़ने से ‘मुक्तहरा सवैया छंद’ बनता है।
इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। मुक्तहरा छंद में 8 जगण (।ऽ।) होते है। इसमें 11वें और 13वें वर्ण पर यति होती है।
मुक्तहरा सवैया छंद के उदाहरण
मुक्तहरा सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न भूमि महान, न व्योम महान,
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। । ऽ।
न तीर्थ महान, न पुण्य, न दान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न शैल महान, न सिंधु महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न गंग, न संगम स्नान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न ग्रंथ महान, न पंथ महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न काव्य, न दर्शन ज्ञान।
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
महान सुकर्म, महान सुभाव,
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
सुदृष्टि महान, चरित्र महान।
(v). दुर्मिल सवैया छंद
दुर्मिल सवैया छंद को ‘चंद्रकला’ कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। दुर्मिल सवैया छंद में 12-12 वर्ण पर यति होती है। इसमें 8 सगण (।।ऽ) होता है।
दुर्मिल सवैया छंद के उदाहरण
दुर्मिल सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ
सखि नील-नभस्सर में उतरा,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
यह हंस अहा तरता तरता।
।। ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
अब तारक-मौक्तिक शेष नहीं,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
निकला जिनको चरता चरता।
।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ
अपने हिम-बिन्दु बचे तब भी,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
चलता उनको धरता धरता,
।। ऽ। । ऽ।। ऽ।। ऽ
गड़ जायँ न कंटक भूतल के,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कर डाल रहा डरता डरता।
(vi). गंगोदक सवैया छंद
गंगोदक सवैया छंद को ‘लक्ष्मी’ छंद’ भी कहते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। गंगोदक सवैया छंद में 8 रगण (ऽ।ऽ) होता है।
गंगोदक सवैया छंद के उदाहरण
गंगोदक सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
राम राजान के राज आये इहाँ,
ऽ। ऽऽ ।ऽऽ। ऽऽ ।ऽ
धाम तेरे महाभाग जागे अबै।
ऽ। ऽऽ।ऽ ऽ।ऽऽ। ऽ
देवि मंदोदरी कुम्भकर्णादि दै,
ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
मित्र मंत्री जिते पूछि देखो सबै।
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
राखिये जाति को, पाँति को वंश को,
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ
साधिये लोक मैं लोक पर्लोक को।
ऽ। ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
आनि कै पाँ परौ देस लै, कोस लै,
ऽ।ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽ
आसुहीं ईश सीताहि लै ओक को।
(vii). किरीट सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के अंत में 2 लघु (।) वर्ण जोड़ने से ‘किरीट सवैया छंद’ बनता है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है। इसमें 12-12 वर्णों पर यति होती है। इस छंद में 8 भगण (ऽ।।) होता है।
किरीट सवैया छंद के उदाहरण
किरीट सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
चूनर छीन गयो कित मोहन,
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ।।
ढूंढत हूँ तुझको मुरलीधर
ऽ। ।ऽ।। ऽ।। ऽ।।
बांह मरोरत गागर फोड़त,
ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।
आज उलाहन दूँ जसुदा घर
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
बोलत बाल सखा घर भीतर,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।।
श्याम रहो इत ही नट नागर
ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।
दर्शन पाकर धन्य भई अब,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।ऽ।।
रीझ गई प्रभु हे करुणाकर।
(viii). सुंदरी सवैया छंद
सुंदरी सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते है। इसमें 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। सुंदरी सवैया छंद में 8 सगण (।।ऽ) तथा अंत में 1 गुरु (।) होता है।
सुंदरी सवैया छंद के उदाहरण
सुंदरी सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
सुख शान्ति रहे सब ओर सदा,
।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
अविवेक तथा अघ पास न आवैं।
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
गुण शील तथा बल बुद्धि बढ़ें,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽऽ
हठ बैर विरोध घटै मिटि जावैं।
।। ऽ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ
सब उन्नति के पथ पे विचरे,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽऽ
रति पूर्ण परस्पर पुण्य कमावैं।
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।।
दृढ़ निश्चय और निरापद,
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ ।। ऽऽ
होकर निर्भय जीवन में जय पावैं।
(ix). अरविंद सवैया छंद
अरविंद सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते है। इसमें 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। अरविंद सवैया छंद में 8 सगण (।।ऽ) तथा अंत में 1 लघु (।) होता है।
अरविंद सवैया छंद के उदाहरण
अरविंद सवैया छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।।ऽ ।। ऽ।। ऽ।। ऽ
सबसों लघु आपुहिं जानिय जू,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।
यह धर्म सनातन जान सुजान।
।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
जबहीं सुमती अस आनि वसै,
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ।
उर संपत्ति सर्व विराजत आन।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
प्रभु व्याप करौं सचराचर में,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ।
तजि-बैर सुभक्ति सजौ मतिमान।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
नित राम पदै अरविंदन को,
।।ऽ। ।ऽ ।।ऽ। ।ऽ।
मकरंद पियो सुमिलिंद समान॥
2. मन हर, मनहरण, घनाक्षरी, कवित्त छंद
यह वर्णिक ‘सम छंद’ होता है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31से 33 वर्ण होते है तथा अंत में 3 लघु वर्ण होते है। इस छंद में 16वें तथा 17वें वर्ण पर विराम होता है।
मन हर, मनहरण, घनाक्षरी, कवित्त छंद के उदाहरण
कवित्त छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।
3. द्रुत विलम्बित छंद
द्रुत विलम्बित छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण, एक नगण, दो भगण तथा एक सगण होते है।
द्रुत विलम्बित छंद के उदाहरण
द्रुत विलम्बित छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।
4. मालिनी छंद
मालिनी छंद एक ‘वर्णिक सम वृत्त छंद’ है। इस छंद में 15 वर्ण होते हैं। इसमें दो तगण, एक मगण तथा दो यगण होते है। इसमें 8वें और 7वें वर्ण पर विराम होता है।
मालिनी छंद के उदाहरण
मालिनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।
5. मंदाक्रांता छंद
मंदाक्रांता छंद के प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है। इसमें एक भगण, एक नगण, दो तगण और दो गुरु होते है। इसमें 5वें, 6वें तथा 7वें वर्ण पर विराम होता है।
मंदाक्रांता छंद के उदाहरण
मंदाक्रांता छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।
6. इन्द्रव्रजा छंद
इन्द्रव्रजा छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, 2 जगण और बाद में 2 गुरु होते है।
इन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण
इन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
माता यशोदा हरि को जगावै।
प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
गोविन्द, दामोदर माधवेति।।
7. उपेन्द्रव्रजा छंद
उपेन्द्रव्रजा छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, 1 नगण, 1 तगण, 1 जगण और बाद में 2 गुरु होते है।
उपेन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण
उपेन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
पखारते हैं पद पद्म कोई,
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।
8. अरिल्ल छंद
अरिल्ल छंद के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है। इस छंद के अंत में लघु अथवा यगण होता है।
अरिल्ल छंद के उदाहरण
अरिल्ल छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
मन में विचार इस विधि आया।
कैसी है यह प्रभुवर माया।
क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।
9. लावनी छंद
लावनी छंद के प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती है और चरण के अंत में गुरु होते है।
लावनी छंद के उदाहरण
लावनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
धरती के उर पर जली अनेक होली।
पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।
10. राधिका छंद
राधिका छंद के प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती हैं। इसमें 13वें और 9वें वर्ण पर विराम होता है।
राधिका छंद के उदाहरण
राधिका छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
बैठी है वसन मलीन पहिन एक बाला।
बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।
11. त्रोटक छंद
त्रोटक छंद के प्रत्येक चरण में 12 मात्राएँ और 4 सगण होते है।
त्रोटक छंद के उदाहरण
त्रोटक छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।
12. भुजंगी छंद
भुजंगी छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण, तीन सगण, एक लघु और एक गुरु होता है।
भुजंगी छंद के उदाहरण
भुजंगी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।
13. वियोगिनी छंद
वियोगिनी छंद के सम चरण में 11-11 वर्ण और विषम चरण में 10 वर्ण होते है। विषम चरणों में दो सगण, एक जगण, एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते है।
वियोगिनी छंद के उदाहरण
वियोगिनी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
विधि ना कृपया प्रबोधिता,
सहसा मानिनि सुख से सदा
करती रहती सदैव ही
करुण की मद-मय साधना।।
14. वंशस्थ छंद
वंशस्थ छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण, एक नगण, एक तगण, एक जगण और एक रगण होते है।
वंशस्थ छंद के उदाहरण
वंशस्थ छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
गिरिन्द्र में व्याप्त विलोकनीय थी,
वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।
15. शिखरिणी छंद
शिखरिणी एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है। 6वें वर्ण पर यति होती है। शिखरिणी छंद में 1 यगण (।ऽऽ), 1 मगण (ऽऽऽ), 1 नगण (।।।), 1 सगण (।।ऽ), 1 भगण (ऽ।।) तथा लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
शिखरिणी छंद के उदाहरण
शिखरिणी छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
।ऽऽ ऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ ।।। ऽ
अनूठी आभा से सरस सुषमा से सुरस से।
।ऽ ऽ ऽऽ ऽ ।। ।।।ऽ ऽ ।।। ऽ
बना जो देती थी बहु गुणमयी भू-विपिन को॥
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निराले फूलों की विविध दल वाली अनुपमा।
।ऽ ऽऽ ऽऽ ।। ।।।ऽ ऽ ।।।ऽ
जड़ी-बूटी नाना बहु फलवती थी विलसती॥
16. शार्दुल विक्रीडित छंद
शार्दुल विक्रीड़ित एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते है। 12वें और 7वें वर्ण पर यति होती है। शार्दुल विक्रीड़ित छंद में 1 मगण (ऽऽऽ), 1 सगण (।।ऽ), 1 जगण (।ऽ।), 1 सगण (।।ऽ), 2 तगण (ऽऽ।) और एक गुरु (ऽ) होता है।
शार्दुल विक्रीडित छंद के उदाहरण
शार्दुल विक्रीडित छंद के उदाहरण निम्नलिखित है:-
ऽऽ ऽ।। ऽ। ऽ ।।। ऽ ऽऽ ।ऽ ऽ। ऽ
काले कुत्सित कीट का कुसुम में कोई नहीं काम था।
ऽऽ ऽ ।।ऽ। ऽ। ।। ऽ ऽ ऽ । ऽऽ ।ऽ
काँटे से कमनीय कंज कृति में क्या है न कोई कमी।
ऽऽ ऽ ।। ऽ। ऽ ।।।ऽ ऽ ऽ।ऽ ऽ ।ऽ
पोरों में कब ईख की विपुलता है ग्रंथियों की भली।
ऽ ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।।।ऽ ऽऽ ।ऽ ऽ ।ऽ
हा! दुर्दैव प्रगल्भते! अपटुता तूने कहाँ की नहीं॥
17. मत्तगयंग छंद
मत्तगयंग छंद में 23 वर्ण होते है। इस छंद के प्रत्येक चरण में सात सगण और दो गुरु होते है
वर्णिक छंद से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
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वर्णिक छंद की परिभाषा क्या है?
वह छंद, जिनमें वर्णों की संख्या, गणविधान, क्रम तथा लघु-गुरु स्वर के आधार पर पद रचना होती है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते है।
अन्य शब्दों में:- सिर्फ वर्णों की गणना के आधार पर रचे गए छन्द ‘वर्णिक छन्द’ कहलाते है। अथवा जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान होती है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते है।
वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या एकसमान रहती है तथा लघु व गुरु स्वर का क्रम समान रहता है।
‘वृत्तों’ की भांति वर्णिक छंद में लघु तथा गुरु स्वर का क्रम निश्र्चित नहीं होता है, सिर्फ वर्णों की संख्या ही निर्धारित रहती है और इसमें 4 चरणों का होना भी अनिवार्य नहीं होता है। -
वर्णिक छंद के कितने भेद है?
वर्णिक छंद के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है:-
1. साधारण वर्णिक छंद
2. दंडक वर्णिक छंद
अंतिम शब्द
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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।